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________________ ठाणं (स्थान) ७३ स्थान २ : सूत्र २३६-२४८ पिया चेव, अपिया चेव। मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव। मणामा चेव, अमणामा चेव । प्रियाश्चैव, अप्रियाश्चैव। मनोज्ञाश्चैव, अमनोज्ञाश्चेव । मन 'आमा' श्चैव, अमन 'आमा' श्चैव। प्रिय, अप्रिय मनोज्ञ, अमनोज्ञ मन के लिए प्रिय, मन के लिए अप्रिय । आयार-पदं आचार-पदम् आचार-पद २३६. दविहे आयारे पण्णत्ते, तं जहा- द्विविध: आचारः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- २३६. आचार दो प्रकार का है णाणायारे चेव, णोणाणायारे चेव। ज्ञानाचारश्चैव, नोज्ञानाचारश्चैव । ज्ञानाचार, नोज्ञानाचार"। २४०. णोणाणायारे दुविहे पण्णत्ते, नोज्ञानाचारः द्विविध: प्रज्ञप्तः, २४०. नोज्ञानाचार दो प्रकार का हैतं जहा—दसणायारे चेव, तद्यथा-दर्शनाचारश्चैव, दर्शनाचार णोदसणायारे चेव। नोदर्शनाचारश्चैव। नोदर्शनाचार"। २४१. णोदसणायारे दुविहे पण्णत्ते, नोदर्शनाचार: द्विविधः प्रज्ञप्तः, २४१. नोदर्शनाचार दो प्रकार का हैतं जहा...चरित्तायारे चेव, तद्यथा-चरित्राचारश्चैव, चरित्राचार णोचरित्तायारे चेव। नोचरित्राचारश्चैव । नोचरित्राचार । २४२. णोचरित्तायारे दुविहे पण्णत्ते, नोचरित्राचारः द्विविधः प्रज्ञप्तः, २४२. नोचरित्राचार दो प्रकार का हैतं जहातवायारे चेव, तद्यथा-तपआचारश्चैव, तप:आचार वीरियायारे चेव। वीर्याचारश्चैव। वीर्याचार । पडिमा-पदं प्रतिमा-पदम् २४३. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, द्वे प्रतिमे प्रज्ञप्ते, तद्यथा तं जहा—समाहिपडिमा चेव, समाधिप्रतिमा चैव, उवहाणपडिमा चेव। उपधानप्रतिमा चैव। २४४. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, द्वे प्रतिमे प्रज्ञप्ते, तद्यथा तं जहा—विवेगपडिमा चेव, विवेकप्रतिमा चैव, विउसग्गपडिमा चेव। व्युत्सर्गप्रतिमा चैव। २४५. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं द्वे प्रतिमे प्रज्ञप्ते, तद्यथा जहा—भद्दा चेव, सुभद्दा चेव। भद्रा चैव, सुभद्रा चैव। २४६. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, द्वे प्रतिमे प्रज्ञप्ते, तद्यथा तं जहा....महाभद्दा चेव, महाभद्रा चैव, सर्वतोभद्रा चैव। सव्वतोभद्दा चेव। २४७. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं द्वे प्रतिमे प्रज्ञप्ते, तद्यथा जहा—खुड्डिया चेव मोयपडिमा, क्षुद्रिका चैव 'मोय' प्रतिमा, महल्लिया चेव मोयपडिमा। महती चैव 'मोय' प्रतिमा। प्रतिमा-पद २४३. प्रतिमा दो प्रकार की है समाधिप्रतिमा उपधानप्रतिमा। २४४. प्रतिमा दो प्रकार की है विवेकप्रतिमा व्युत्सर्गप्रतिमा। २४५. प्रतिमा दो प्रकार की है भद्रा, सुभद्रा । ०२ २४६. प्रतिमा दो प्रकार की है महाभद्रा०३ सर्वतोभद्रा। २४७. प्रतिमा दो प्रकार की है क्षुद्रकप्रस्रवणप्रतिमा महत्प्रस्रवणप्रतिमा।०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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