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ठाणं (स्थान)
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स्थान १०: टि०६१
केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद तीर्थकरों के कोई उपसर्ग नहीं होते। किन्तु भगवान महावीर को केवलज्ञान प्राप्ति के बाद गोशालक ने अपनी तेजोलब्धि से बहुत पीड़ित किया—यह एक आश्चर्य है।
२. गर्भापहरण-भगवान् महावीर देवानंदा ब्राह्मणी के गर्भ में आषाढ शुक्ला ६ को आए, तब उसने चौदह स्वप्न देखे थे। बयासी दिन के बाद सौधर्म देवलोक के इन्द्र ने अपने पैदल सेना के अधिपति 'हरिनैगमेषी' को बुला कर कहा'तीर्थकर सदा उग्र, भोग, क्षत्रिय, इक्ष्वाकू, ज्ञात, कौरव्य और हरिवंश आदि विशाल कुलों में उत्पन्न होते हैं। भगवान महावीर अपने पूर्व कर्मों के कारण ब्राह्मण कुल में आए हैं । तुम जाओ, और उस गर्भ को सिद्धार्थ क्षत्रिय की पत्नी त्रिशला के गर्भ में रख दो।' वह देव तत्काल वहां गया। उस दिन आश्विन कृष्णा त्रयोदशी थी। रात्रि का प्रथम प्रहर बीत चुका था। दूसरे प्रहर के अन्त में उसने हस्तोत्तरा नक्षत्र में गर्भ का संहरण कर त्रिशला के गर्भ में रख दिया।
गर्भ-संहरण का उल्लेख स्थानांग', समवयांग, कल्पसूत्र', आचारचूला और रायपसेणइय-इन आगमों तथा नियुक्ति साहित्य में मिलता है । भगवतीसूत्र में गर्भ-संहरण की प्रक्रिया का उल्लेख है, किन्तु महावीर के गर्भ-संहरण का उल्लेख नहीं है। देवानंदा के प्रकरण में भगवान महावीर ने देवानंदा को अपनी माता और स्वयं को उसका आत्मज बतलाया है। इसमें गर्भ-संहरण का संकेत अवश्य मिलता है फिर भी उसका प्रत्यक्ष उल्लेख वहां नहीं है।
दिगम्बर साहित्य में इस घटना का कोई उल्लेख नहीं है।
इस घटना का प्रथम स्रोत कल्पसूत्र प्रतीत होता है। अन्य सभी आगमों में वही स्रोत सक्रान्त हुआ है। कल्पसूत्रकार ने किस आधार पर इस घटना का उल्लेख किया, इसका पता लगाना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, किन्तु उसके शोध के उपादान अभी प्राप्त नहीं हैं । इस घटना का वर्णन कल्पसूत्र जितना प्राचीन तो है ही। कल्पसूत्र की रचना वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी में हुई है। यह काल श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के पृथक्करण का काल है । यह सम्भव है कि इस काल में लिखित आगम की घटनाओं को दिगम्बर आचार्यों ने महत्त्व न दिया हो। यह भी हो सकता है कि आगमों के अस्वीकार के साथ-साथ दिगम्बर साहित्य में अन्य घटनाओं की भांति इस घटना का विलोप हो गया हो । यह भी हो सकता है कि इस पौराणिक घटना का आगमों में संक्रमण हो गया हो। क्षत्रियों और ब्राह्मणों के बीच स्पर्धा चलती थी। ब्राह्मणों के जातिमद को खंडित करने के लिए इस घटना की कल्पना की गई हो, जैसा कि हरमन जेकोबी ने माना है।"
इस प्रकार इस घटना के विषय में अनेक सम्भावित विकल्प किये जा सकते हैं।
यहां गर्भ-संहरण का विषय विचारणीय नहीं है। उसकी पुष्टि आगम-साहित्य, आयुर्वेद-साहित्य, वैदिक-साहित्य और वर्तमान के वैज्ञानिक-साहित्य से भी होती है। यहां विचारणीय विषय है- महावीर का गर्भ-संहरण।
भगवान् महावीर का जीवनवृत्त किसी भी प्राचीन आगम में उल्लिखित नहीं है। आचारांग में उनके साधक जीवन का संक्षेप में बहुत व्यवस्थित वर्णन है। उनके गृहस्थ जीवन की घटनाओं का उस में वर्णन नहीं है । आयारचूला के 'भावना अध्ययन' में भगवान महावीर के गृहस्थ जीवन का वृत्त उल्लिखित है, पर वह कल्पसूत्र का ही परिवर्तित संस्करण प्रतीत होता है। क्योंकि भावनाध्ययन का वह मुख्य विषय नहीं है। कल्पसूत्र पहला आगम है, जिसमें महावीर का जीवनवृत्त संक्षिप्त किन्नु व्यवस्थित ढंग से मिलता है।
बौद्ध और वैदिक विद्वान अपने-अपने अवतारी पुरुषों के साथ दैवी चमत्कारों की घटनाएं जोड़ रहे थे। इस कार्य में जैन विद्वान् भी पीछे नहीं रहे। सभी परम्परा के विद्वानों ने पौराणिक साहित्य की सृष्टि की और अपने अवतारी पुरुषों को अलौकिक रूप प्रदान किया। हरिनगमेषी देवता के द्वारा भगवान् महावीर का गर्भ-संहरण होना उस पौराणिक युग का एक प्रतिविम्ब प्रतीत होता है।
१. विशेष विवरण के लिए देखें-आचारांग १।६; आवश्यक
नियुक्ति, अवचूणि, भाग १, पृष्ठ २७३-२६३ । २. आवश्यकनियुक्ति, अवचूर्णि, प्रथमभाग, पृष्ठ २६२, २६३ । ३. स्थानांग १०।१६० । ४. समवायांग, ८२,८३१ । ५. कल्पसूत्र, सू० २७ ।
६. आचारचूला १२१,३,५,६ । ७. रायपसेणियं, सूत्र ११२ । ८. भगवती, ५२७६,७७ ।। ६. भगवती, ६१४८ । 10. The Sacred Book. of the East, Vol.XXII:
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