________________
७४
भगवई
श. १२ : उ. ७ : सू. १४३-१४६ १४३. अयण्णं भंते ! जीवे तिसु वि
अट्ठासुत्तरेसु गेविज्जविमाणावाससयेसु एवं चेव॥
अयं भदन्त! जीवः त्रिषु अपि अष्टादशोत्तरेषु ग्रैवेयकविमानावासशतेषु एवं चैव।
१४३. भंते ! क्या यह जीव तीन सौ अठारह
ग्रैवेयक विमानावासो में.....? इसी प्रकार पूर्ववत्।
१४४. अयण्णं भंते ! जीवे पंचसु
अणुत्तरविमाणेसु एगमेगसि अणुत्तर विमाणंसि पुढविकाइयत्ताए ? तहेब जाव असई, अदुवा अणंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए वा देवीत्ताए बा। एवं सब्बजीवा वि॥
अयं भदन्त! जीवः पञ्चसु अनुत्तर- विमानेषु एकैकस्मिन् अनुत्तरविमाने पृथिवीकायिकत्वेन? तथैव यावत् असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः, नो चैव देवत्वेन वा देवीत्वेन वा। एवं सर्वे जीवाः अपि।
१४४. भंते! क्या यह जीव पांच अनुत्तरविमानों में से प्रत्येक अनुत्तरविमान में रहने वाले पृथ्वीकायिक के रूप में.....? वैसे ही यावत् अनेक अथवा अनंत बार। देव के रूप में अथवा देवी के रूप में नहीं। इसी प्रकार सब जीवों की वक्तव्यता।
१४५. भंते! क्या यह जीव सब जीवों के
माता, पिता, भाई, भगिनी, भार्या, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधु के रूप में उपपन्न पूर्व है ?
१४५. अयण्णं भंते ! जीवे सब्बजीवाणं
माइत्ताए, पितित्ताए, भाइत्ताए, भगिणित्ताए, भज्जत्ताए, पुत्तत्ताए, धूयत्ताए, सुण्हत्ताए उववन्नपुब्वे ? हंता गोयमा! असई अदुवा अणंतखुत्तो॥
अयं भदन्त! जीवः सर्वजीवानां मातृत्वेन, पितृत्वेन, भ्रातृत्वेन, भगिनीत्वेन, भार्यात्वेन, पुत्रत्वेन, दुहितृत्वेन, स्नुषात्वेन उपपन्नपूर्वः? । हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः।
हां गौतम ! अनेक अथवा अनन्त बार।
१४६. भंते ! क्या सब जीव भी इस जीव के
माता, पिता, भ्राता, भगिनी, भार्या, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधु के रूप में उपपन्न पूर्व हैं ?
१४६. सब्बजीवा वि णं भंते ! इमस्स
जीवस्स माइत्ताए, पितित्ताए, भइत्ताए, भगिणित्ताए, भज्जत्ताए, पुत्तत्ताए, धूयत्ताए, सुण्हत्ताए उववन्नपुब्वे ? हंता गोयमा! असई अदुवा अणतखुत्तो॥
सर्वे जीवाः अपि भदन्त! अस्य जीवस्य मातृत्वेन, पितृत्वेन, भ्रातृत्वेन, भगिनीत्वेन, भार्यात्वेन, पुत्रत्वेन, दुहितृत्वेन, स्नुषात्वेन उपपन्नपूर्वः? हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः ।
हां गौतम ! अनेक अथवा अनन्त बार।
१४७. भंते ! क्या यह जीव सब जीवों के शत्रु,
वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक और प्रत्यमित्र के रूप में उपपन्न पूर्व है ?
१४७. अयण्णं भंते ! जीवे सब्वजीवाणं
अरित्ताए, वेरियत्ताए, घातगत्ताए, वहगत्ताए, पडिणीयत्ताए, पञ्चामित्तत्ताए उववन्नपुब्वे ? हंता गोयमा! असई अणंतखुत्तो॥
अयं भदन्त! जीवः सर्वजीवानाम् अरित्वेन, वैरित्वेन, घातकत्वेन, वधकत्वेन, प्रत्यनीकत्वेन, प्रत्यमित्रत्वेन उपपन्नपूर्वः? हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्त- कृत्वः ?
हां गौतम ! अनेक अथवा अनन्त बार।
१४८. भंते ! क्या सब जीव भी इस जीव के
शत्रु, वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक और प्रत्यमित्र के रूप में उपपन्न पूर्व हैं ?
१४८. सब्बजीवा वि णं भंते ! इमस्स
जीवस्स अरित्ताए, वेरियत्ताए, घातगत्ताए, वहगत्ताए, पडिणीयत्ताए, पचामित्तत्ताए उववन्नपुग्वे ? हंता गोयमा! असई अदुवा अणंतखुत्तो॥
सर्वे जीवाः अपि भदन्त! अस्य जीवस्य अरित्वेन, वैरित्वेन, घातकत्वेन, वधकत्वेन, प्रत्यनीकत्वेन, प्रत्यमित्रत्वेन उपपन्नपर्वः? हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्त- कृत्वः।
हां गौतम ! अनेक अथवा अनन्त बार।
१४६. अयण्णं भंते! जीवे सव्वजीवाणं अयं भदन्त! जीवः सर्वजीवानां
रायत्ताए जुवरायत्ताए तलवरत्ताए राजत्वेन, युवराजत्वेन, 'तलवर त्वेन माडंबियत्ताए कोडुंबियत्ताए इन्भत्ताए __माडम्बिकत्वेन, कौटुम्बिकत्वेन, सेट्टित्ताए सेणावइत्ताए सत्यवाहत्ताए इभ्यत्वेन, श्रेष्ठित्वेन, सेनापतित्वेन, उववन्नपुवे?
सार्थवाहत्वेन उपपन्नपूर्वः?
१४६. भंते ! क्या यह जीव सब जीवों के राजा,
युवराज, तलवर (कोटवाल), मडम्बपति, कुटुम्बपति, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह के रूप में उपपन्न पूर्व है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org