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भगवई
सव्वजीवा वि णं भंते ! एवं चेव । एवं जाव थणियकुमारेसु । नाणत्तं आवासे, आवासा पुव्वभणिया ॥
१४०. अयण्णं भंते! जीवे असंखेज्जेसु पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए उबवन्नपुव्वे ?
हंता गोयमा ! असई अदुवा अणतखुत्तो । एवं सव्वजीवा वि । एवं जाव वणस्सइकाइए ॥
१४१. अयण्णं भंते ! जीवे असंखेज्जेसु बेइंदियावाससयसहस्सेसु एगमेiसि बेइंदियावासंसि पुढविक्काइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए, बेदियत्ताए उवबन्नपुब्वे ?
हंता गोयमा ! असई अदुवा अनंतखुत्तो। सव्वजीवा विणं एवं चेव । एवं जाव मणुस्सेसु, नवरंतेइदिएसु जाव वणस्सइकाइयत्ताए तेइंदियत्ताए, चउरिंदिएसु चउरिंदियत्ताए, पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु पंचिंदितिरिक्खजोणियत्ताए
मणुस्सत्ताए, सेसं जहा बेइंदियाणं, वाणमंतर-जोइसिय-सोहम्मीसाणेसु य जहा असुरकुमाराणं ॥
१४२. अयण्णं भंते ! जीवे सणकुमारे कप्पे बारससु विमाणावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि वेमाणियावासंसि पुढवि - काइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए देवत्ताए आसण-सयण - भंडमत्तोवगरणत्ताए उववन्नपुव्वे ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। एवं सव्वजीवा वि । एवं जाव आणयपाणएसु, एवं आरणच्चुएसु वि ॥
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सर्वे जीवाः अपि भदन्त ! एवं तत् चैव । एवं यावत् स्तनितकुमारेषु । नानात्वम् आवासेषु, आवासाः पूर्वभणिताः ।
अयं भदन्त ! जीवः असंख्येयेषु पृथिवीकायिकावासशतसहस्रेषु एकैकस्मिन् पृथिवीकायिकावासे पृथिवीकायिकत्वेन यावत् वनस्पतिकायिकत्वेन उपपन्नपूर्वः ?
हन्त
गौतम! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः । एवं सर्वे जीवाः अपि । एवं यावत् वनस्पतिकायिकेषु ।
अयं भदन्त! जीवः असंख्येयेषु द्वीन्द्रियावासशतसहस्रेषु एकैकस्मिन् द्वीन्द्रियावासे पृथिवीकायिकत्वेन यावत् वनस्पतिकायिकत्वेन द्वीन्द्रियत्वेन उपपन्नपूर्वः ?
हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः । सर्वे जीवाः अपि एवं चैव । एवं यावत् मनुष्येषु, नवरम् - त्रीन्द्रियेषु यावत् वनस्पतिकायिकत्वेन त्रीन्द्रियत्वेन चतुरिन्द्रियेषु चतुरिन्द्रियत्वेन, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकत्वेन, मनुष्येषु मनुष्यत्वेन, शेषं यथा द्वीन्द्रियाणां वानमन्तर- ज्यौतिष्क- सौधर्मेशानेषु च यथा असुरकुमाराणाम् ।
अयं भदन्त ! जीवः सनत्कुमारे कल्पे द्वा विमानावासशतसहस्रेषु एकैकस्मिन् वैमानिकावासे पृथिवीकायिकत्वेन यावत् वनस्पतिकायिकत्वेन देवत्वेन आसन-शयन भाण्डामत्रोपकरणत्वेन उपपन्नपूर्वः ? हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः । एवं सर्वे जीवाः अपि । एवं यावत् आनतप्राणतेषु एवम् आरणाच्युतेषु अपि ।
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श. १२ : उ. ७ : सू. १४०-१४२ भंते! सब जीवों के लिए भी । पूर्ववत् वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक। उनके आवासों में नानात्व है, आवास पहले शतक (१/२११-२१५) में कहे जा चुके हैं।
१४०. भंते! क्या यह जीव असंख्येय लाख पृथ्वीकायिकावासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिक आवास में रहने वाले पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् वनस्पतिकायिक के रूप में उपपन्न पूर्व है ?
हां गौतम ! अनेक अथवा अनंत बार इसी प्रकार सब जीव भी वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों में।
१४१. भंते! क्या यह जीव असंख्येय लाख द्वीन्द्रियावासों में से प्रत्येक द्वीन्द्रियावास में रहने वाले पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् वनस्पतिकायिक के रूप में और द्वीन्द्रियकायिक के रूप में उपपन्न पूर्व है ? हां गौतम ! अनेक अथवा अनंत बार। इसी प्रकार सब जीव भी वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् मनुष्यों में, इतना विशेष है-त्रीन्द्रियों में यावत् वनस्पतिकायिक और त्रीन्द्रिय के रूप में, चतुरिन्द्रियों में चतुरिन्द्रिय के रूप में, पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों में पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिक के रूप में, मनुष्यों में मनुष्य के रूप में, शेष द्वीन्द्रियों की भांति वक्तव्य है। वानमंतर, ज्योतिष्क, सौधर्म और ईशानों में असुरकुमारों की भांति
वक्तव्यता ।
१४२. भंते ! क्या यह जीव सनत्कुमारकल्प के बारह लाख विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में रहने वाले पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् वनस्पतिकायिक के रूप में, देव के रूप म, आसन, शयन, भांड, अमत्र और उपकरण के रूप में उपपन्न पूर्व है ? हां गौतम ! अनेक अथवा अनंत बार इसी प्रकार समस्त जीव भी वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् आनत - प्राणत कल्पों में, इसी प्रकार आरण- अच्युत कल्पों में भी वक्तव्य हैं।
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