SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई तासिं अयाणं उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणेण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूएण वा सुक्केण वा सोणिएण वा चम्मेहिं वा रोमेहिं वा सिंगेहिं वा खुरेहिं वा नहेहिं वा अणोक्कतपुब्वे भवइ ? नो इणट्ठे समहे ॥ होज्जा वि णं गोयमा ! तस्स अयावयस्स केई परमाणुपोग्गलमेत्ते वि परसे, जेणं तासिं अयाणं उच्चारेण वा जाव नहेहिं वा अणोक्कंतपुव्वे, नो चेव णं एयंसि एमहालगंसि लोगंसि लोगस्स य सासयं भावं, संसारस्स य अणादिभावं जीवस्स य णिच्चभावं कम्मबहुत्तं, जम्ममरणबाहुल्लं च पडुच्च अत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुषोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि ॥ असई अदुवा अणंतखुत्तो उववज्जण-पदं १३३. कति णं भंते! पुढबीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, जहा पढमसए पंचमउद्देसए तहेब आवासा ठावेयव्वा जाव अणुत्तरविमाणेत्ति जाव अपराजिए सव्वट्टसिद्धे ॥ १. सूत्र १३०-१३२ लोक की महानता जीवों की उत्पत्ति के संदर्भ में बतलाई गयी है। इस लोक का छहों दिशाओं में प्रत्येक दिशा का आयाम - विष्कंभ असंख्य योजन कोटाकोटि का है। इतने विशाल लोक में एक परमाणु जितना भी प्रदेश खाली नहीं है, जहां इस जीव ने जन्म न लिया हो, मरण न किया हो। १३४. अयण्णं भंते! जीवे इमीसे रयणष्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास - ७१ प्रदेशः, यः तासाम् अजानाम् उच्चारेण वा प्रत्रवेण वा क्ष्वेलेन वा 'सिंघाणेण' वा वान्तेन वा पित्तेन वा पूयेन वा शुक्रेण वा शोणितेन वा चर्मभिः वा रोमभिः वा शृङ्गैः वा खुरैः वा नखैः वा अनवक्रान्तपूर्वः भवति? नो अयमर्थः समर्थः । भवेत् अपि गौतम! तस्य अजाव्रजस्य कश्चित् परमाणुपुद्गलमात्रम् अपि प्रदेशः, यः तासाम् अजानाम् उच्चारेण वा यावत् नखैः वा अनवक्रान्तपूर्वः, नो चैव एतस्मिन् इयन्महति लोके लोकस्य च शाश्वतं भावं, संसारस्य च अनादिभावं जीवस्य च नित्यभावं, कर्मबहुत्वं, जन्ममरणबाहुल्यं अस्ति कश्चित् परमाणुपुद्गलमात्रम् अपि प्रदेशः, यत्र अयं जीवः न जातः वा, न मृतः वा अपि । तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेएतस्मिन् इयन्महति लोके नास्ति कश्चित् परमाणुपुद्गलमात्रम् अपि प्रदेशः, यत्र अयं जीवः न जातः वा, न मृतः वा अपि । Jain Education International भाष्य असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः -पदम् कति भदन्त ! पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! सप्त पृथिव्याः, यथा प्रथमशते पञ्चमोद्देशे तथैव आवासाः स्थापितव्याः यावत् अनुत्तरविमानः इति यावत् अपराजितः सर्वार्थसिद्धः । पुनर्जन्म के विषय में होने वाली एक जिज्ञासा यह है - यह जीव अनादिकाल से जन्म मरण के अरण्य में पर्यटन कर रहा है। इतना कौनसा स्थान है जहां वह जन्म लेता और मरता नहीं है ? लोक की विशालता का प्रतिपादन कर इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है। अावज ( बकरियों का बाड़ा) के उदाहरण से इसे समझाया गया है। अयं भदन्त ! जीवः अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां निरयावास - त्रिंशत्षु श. १२ : उ. ७ : सू. १३० - १३४ है, जो उन बकरियों के उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, नाक का मैल, वमन, पित्त, पीव (रस्सी), शुक्र, शोणित, चर्म, रोम, सींग, खुर अथवा नखों से आक्रांत न हुआ हो ? For Private & Personal Use Only यह अर्थ संगत नहीं है। गौतम ! उस अजाव्रज का कोई परमाणु पुद्गल मात्र प्रदेश भी ऐसा नहीं है जो उन बकरियों के उच्चार यावत् अथवा नखों से आक्रांत नहीं होता। वैसे ही इस विशालतम लोक में लोक का शाश्वत भाव, संसार - जन्म-मरण का अनादि भाव, जीव का नित्य भाव, कर्म - बहुत्व और जन्म-मरण के बाहुल्य की अपेक्षा परमाणु पुद्गल मात्र प्रदेश भी ऐसा नहीं है, जहां पर इस जीव ने जन्म अथवा मरण न किया हो। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - इस विशालतम लोक में कोई परमाणु पुद्गल मात्र प्रदेश भी ऐसा नहीं है। जहां इस जीव ने जन्म अथवा मरण न किया हो । अनेक अथवा अनंत बार उपपात पद १३३. भंते ! पृथ्वियां कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है ? गौतम ! पृथ्वियां सात प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे प्रथम शतक के पांचवें उद्देशक (सूत्र ५ / २११ - २५५) की वक्तव्यता है वैसे ही आवासों की वक्तव्यता यावत् अनुत्तरविमान यावत् अपराजित सर्वार्थसिद्ध की वक्तव्यता । १३४. भंते ! क्या यह जीव इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy