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________________ भगवई अत्थेगतिया सव्वदव्वा एगवण्णा, एगगंधा, एगरसा, दुफासा पण्णत्ता । अत्थेगतिया सव्वदव्वा अवण्णा जाव अफासा पण्णत्ता । एवं सव्वपएसा वि, सब्वपज्जवा वि । तीयद्धा अवण्णा जाव अफासा । एवं अणागयद्धा वि, सव्वद्धा वि ॥ १. सूत्र ११८ संबद्ध हैं। प्रस्तुत सूत्र में चार विकल्प हैं। उनमें प्रथम तीन पुद्गल से १. स्थूल परिणति वाले पुद्गल पांच वर्ण वाले यावत् आठ स्पर्श वाले हैं। ६१ अस्त्येककानि सर्वद्रव्याणि एकवर्णानि, एकगन्धानि, एकरसानि द्विस्पर्शानि प्रज्ञप्तानि । अस्त्येककानि सर्वद्रव्याणि अवर्णानि यावत् अस्पर्शानि प्रज्ञप्तानि । अतीताद्धा अवर्णा यावत् अस्पर्शा । एवम् अनागताद्धा अपि, सर्वाद्धा अपि । २. सूक्ष्म परिणति वाले पुद्गल पांच वर्ण वाले यावत् चार स्पर्श वाले हैं। ११६. जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे कतिवण्णं, कतिगंध, कतिरसं, कतिफासं परिणामं परिणमइ ? ३. परमाणु - पुद्गल एक वर्ण, एक गंध, एक रस और द्विस्पर्श वाला होता है। स्निग्ध- रूक्ष में से एक और शीत उष्ण में से एक - इस प्रकार दो स्पर्श वाला होता है।' द्विप्रदेशी स्कंध से लेकर अनंत प्रदेशी स्कंध तक के सूक्ष्म परिणति वाले स्कंध भी दो स्पर्श वाले हो सकते हैं। गोयमा ! पंचवण्णं, दुगंधं, पंचरसं, अट्ठफासं परिणामं परिणम । भाष्य १. सूत्र ११६ गर्भ में आने के समय जीव स्थूल शरीर का निर्माण करता है, Jain Education International जीवः भदन्त ! गर्भम् अवक्रामन् कतिवर्णं, कतिगन्धं, कतिरसं, कतिस्पर्श परिणामं परिणमति ? गौतम ! पञ्चवर्णं, द्विगन्धं, पञ्चरसं, अष्टस्पर्श परिणामं परिणमति । १. भ. वृ. १२/११६ - सव्वदव्व' त्ति सर्वद्रव्याणि धर्मास्तिकायादीनि अत्थेगइया सव्वदव्या पंचवन्नेत्यादि बादरपुद्गलद्रव्याणि प्रतीत्योक्तं, सर्वद्रव्याणां मध्ये कानिचित्पञ्चवर्णादीनीति भावार्थ:, चउफासा इत्येतच पुद्गलद्रव्याण्येव सूक्ष्माणि प्रतीत्योक्तं- 'एगगंधे' त्यादि परमाण्वादिद्रव्याणि प्रतीत्योक्तं यदाह - परमाणुद्रव्यमाश्रित्य - च कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसवर्णगंधो, द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च ॥ ४. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय - ये चारों द्रव्य अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श वाले हैं। * भाष्य इति च स्पर्शद्वयं च सूक्ष्मसंबंधिनां चतुर्णां स्पर्शानामन्यतरविरुद्धं भवति, तथा हि- स्निग्धोष्णलक्षणं स्निग्धशीतलक्षणं वा रूक्षशीतलक्षणं प्रदेश- द्रव्य का निर्विभाग अंश। पुद्गल मूर्त्त द्रव्य है। उसके प्रदेश वर्ण आदि से युक्त होते हैं। धर्मास्तिकाय आदि चार द्रव्य अमूर्त हैं। उनके प्रदेश वर्ण आदि से रहित होते हैं। इसी प्रकार मूर्त द्रव्य के पर्यव मूर्त और अमूर्त द्रव्य के पर्यव अमूर्त होते हैं। " द्रव्य, प्रदेश, पर्याय - तीनों का उल्लेख है। इस प्रकरण में गुण का उल्लेख नहीं है। इससे फलित होता है कि आगम काल में गुण और पर्याय की अभिन्नता रही है। प्रदेश और पर्यव के पश्चात् काल का निरूपण हुआ है। इससे परिलक्षित होता है कि काल प्रदेशयुक्त द्रव्य नहीं है। श. १२ : उ. ५ : सू. ११६ कुछ सर्वद्रव्य वर्ण-रहित यावत् स्पर्श-रहित प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार सर्वप्रदेश और सर्वपर्याय की वक्तव्यता । अतीत काल वर्णरहित यावत् स्पर्शरहित होता है। इसी प्रकार अनागत काल और सर्व काल की वक्तव्यता । ११६. भंते! गर्भ में उपपन्न होता हुआ जीव कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श के परिणाम से परिणत होता है। For Private & Personal Use Only गौतम ! पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श के परिणाम से परिणत होता है। आहार पर्याप्ति आदि पर्याप्तियों की रचना करता है। इस दृष्टि से वह सभी वर्ण, गंध, रस और स्पर्शो का परिणमन करता है। रूक्षोष्णलक्षणं वेति । २. भ. १८/११२-११६ ३. भ. वृ. १२ / ११६ - अवण्णेत्यादि च धर्मास्तिकायादिद्रव्याणि आश्रित्योक्तम् । ४. भ. वृ. १२/११८ - तत्र च प्रदेशा-द्रव्यस्य निर्विभागा अंशाः पर्यवास्तु धर्माः, तैश्चैवं करणादेवं वाच्याः सव्वपएसा णं भन्ते! कइ वण्णा ? पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगइया सव्वपएसा पंचवन्ना जाव अट्ठफासा इत्यादि । एवं च पर्यवसूत्रमपि, इह च मूर्तद्रव्याणां प्रदेशाः पर्यवाश्च मूर्त्तद्रव्यवत्पंचवर्णादयः, अमूर्तद्रव्याणां चामूर्त्तद्रव्यवदवर्णादय इति । www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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