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भगवई
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श. १२ : उ. ५ : सू. ११४-११६
११४. नेरइयाणं भंते ! कतिवण्णा जाव नैरयिकाणाम् भदन्त! कतिवर्णाः यावत् ११४. भंते ! नैरयिकों के कितने वर्ण यावत् कतिफासा पण्णत्ता? कतिस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः?
कितने स्पर्श प्रज्ञप्त हैं? गोयमा! वेउब्विय-तेयाइं पडुच्च गौतम! वैक्रिय-तैजसानि प्रतीत्य गौतम ! वैक्रिय और तैजस शरीर की पंचवण्णा, दुगंधा, पंचरसा, अट्ठफासा पञ्चवर्णाः, द्विगन्धः, पञ्चरसाः, अपेक्षा पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और पण्णत्ता। कम्मगं पडुच्च पंचवण्णा, अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः। कर्मकं प्रतीत्य आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। कर्म शरीर की दुगंधा, पंचरसा, चउफासा पण्णत्ता। पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः, पञ्चरसाः, अपेक्षा पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और जीवं पडुच्च अवण्णा जाव अफासा चतुस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः । जीवं प्रतीत्य चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। जीव की अपेक्षा पण्णत्ता। एवं जाव थणियकुमारा॥ अवर्णाः यावत् अस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः एवं वर्ण-रहित यावत् स्पर्श-रहित प्रज्ञप्त हैं। यावत् स्तनितकुमाराः।
इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों की वक्तव्यता।
११५. पुढविक्काइयाण-पुच्छा।
पृथिवीकायिकानां-पृच्छा। गोयमा! ओरालिय-तेयगाई पडुच गौतम! औदारिक-तैजसानि प्रतीत्य पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता। पञ्चवर्णाः यावत् अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः। कम्मगं पडुच्च जहा नेरइयाणं। जीवं कर्मकं प्रतीत्य यथा नैरयिकाणाम्। जीवं पडुच्च तहेव। एवं जाव चरिंदिया, प्रतीत्य तथैव। एवं यावत् चतुरिन्द्रियाः, नवरं-बाउक्काइया ओरालिय-वेउब्बिय- नवरम्-वायुकायिकाः औदारिकतेयगाई पडुच पंचवण्णा जाव अट्ठफासा वैक्रिय-तैजसानि प्रतीत्य पञ्चवर्णाः पण्णत्ता, सेसं जहा नेरइयाणं। यावत् अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः, शेषं यथा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नैरयिकाणाम्। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः वाउक्काइया॥
यथा वायुकायिकाः।
११५. पृथ्वीकायिकों की पृच्छा ।
गौतम ! औदारिक और तैजस शरीर की अपेक्षा पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। कर्म शरीर की अपेक्षा नैरयिकों की भांति वक्तव्यता। जीव की अपेक्षा नैरयिकों की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता, इतना विशेष है-वायुकायिक औदारिक, वैक्रिय
और तैजस शरीर की अपेक्षा पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं, शेष नैरयिकों की भांति वक्तव्य हैं। पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिक वायुकायिक की भांति वक्तव्य हैं।
११६. मणुस्साणं-पुच्छा।
मनुष्याणाम्-पृच्छा। ओरालिय - बेउब्बिय-आहारग-तेयगाई औदारिक-वैक्रिय-आहारक-तैजसानि पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा प्रतीत्य पञ्चवर्णाः यावत् अष्टस्पर्शाः पण्णत्ता। कम्मगं जीवं च पडुच्च जहा प्रज्ञप्ताः। कर्मकं जीवं च प्रतीत्य यथा नेरइयाणं। वाणमंतर-जोइसिय- नैरयिकाणाम्। वानमन्तर-ज्योतिष्कवेमाणिया जहा नेरइया।
वैमानिकाः यथा नैरयिकाः।
११६. मनुष्यों की पृच्छा।
वे औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस शरीर की अपेक्षा पांच वर्ण, यावत् आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। कर्म शरीर और जीव की अपेक्षा वे नैरयिकों की भांति वक्तव्य हैं। वाणमन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव नैरयिकों की भांति वक्तव्य हैं। धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय-ये सभी वर्ण-रहित हैं, इतना विशेष हैपुद्गलास्तिकाय पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है। ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय-ये चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं।
धम्मत्थिकाए जाव पोग्गलत्थिकाए- धर्मास्तिकायः यावत् पौद्गलास्तिएए सब्वे अवण्णा, नवरं-पोग्ग- कायः-एते सर्वे अवर्णाः, नवरम्लत्थिकाए पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, पौद्गलास्तिकायः पञ्चवर्णः, द्विगन्धः, अट्ठफासे पण्णत्ते।
पञ्चरसः, अष्टस्पर्शः प्रज्ञप्तः। नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए- ज्ञानावरणीयः यावत् आन्तरायिक:एयाणि चउफासाणि॥
एतानि चतुस्पर्शानि।
भाष्य
१. सूत्र ११४-११६
वैक्रिय और तैजस शरीर स्थूल पुद्गलों से निष्पन्न हैं इसलिए
वे अष्टस्पर्शी हैं। कर्म शरीर सूक्ष्म-पुदगलों से निष्पन्न है इसलिए वह चतुस्पर्शी है।
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