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________________ श. १२ : उ. ५ : सू. ११२-११३ ५८ भगवई गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, गौतम! अवर्णः, अगन्धः अरसः गौतम ! ये वर्ण-रहित, गंध-रहित, रसअफासे पण्णत्ते॥ अस्पर्शः प्रज्ञप्तः। रहित और स्पर्श-रहित प्रज्ञप्त है। भाष्य १. सूत्र १०८-१११ हेतु भी क्षयोपशम है। विरमण, विवेक, बुद्धि चतुष्टय और अवग्रह चतुष्क-ये सब फिर उत्पत्ति मात्र को ही हेतु कैसे माना जाए? इसके चेतना की अवस्थाएं हैं। इसी प्रकार उत्थान आदि भी आत्मिक हैं।' समाधान में उन्होंने लिखा-ज्ञानावरण का क्षयोपशम आंतरिक है। इसलिए ये वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से रहित हैं। वह बुद्धि के सभी प्रकारों के लिए समान है इसलिए यहां उसकी बुद्धि-चतुष्टय के लिए द्रष्टव्य नंदी सूत्र ३८ का टिप्पण। विवक्षा नहीं है। इस बुद्धि का कार्य किसी शास्त्र और कर्म के अवग्रह-चतुष्क के लिए द्रष्टव्य-नंदी ३६/५० का टिप्पण। अभ्यास से निरपेक्ष है इसलिए इसका हेतु उत्पत्ति ही बतलाया गया उत्थान-आदि के लिए द्रष्टव्य भगवई १/१४०-१४६ का है। भाष्य। पारिणामिकी बुद्धि का आधार है परिणाम। सुदीर्घ काल तक ___अभयदेवसूरि के अनुसार जिस बुद्धि में उत्पत्ति ही प्रयोजन पूर्वापर घटनाओं का अवलोकन करने से उत्पन्न होने वाला आत्मधर्म होता है, वह औत्पत्तिकी है। एक वितर्क उपस्थित हआ-इस बुद्धि का परिणाम कहलाता है। परिणाम से उत्पन्न बुद्धि है पारिणामिकी। ११२. सत्तमे णं भंते ! ओवासंतरे सप्तमः भदन्त! अवकाशान्तरः कतिवर्णः ११२. भंते ! सातवां अवकाशान्तर कितने वर्ण कतिवण्णे जाव कतिफासे पण्णत्ते ? यावत् कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः? यावत् कितने स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, गौतम! अवर्णः अगन्धः अरसः अस्पर्शः गौतम ! वर्ण-रहित, गंध-रहित, रस-रहित अफासे पण्णत्ते॥ प्रज्ञप्तः । और स्पर्श-रहित प्रज्ञप्त है। ११३. सत्तमे णं भंते ! तणुवाए कतिवण्णे सप्तमः भदन्त! तनुवातः कतिवर्णः ११३. भंते ! सातवां तनुवात कितने वर्ण, यावत् जाव कतिफासे पण्णत्ते ? यावत् कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः? कितने स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है। गोयमा! पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे गौतम! पञ्चवर्णः द्विगन्धः पञ्चरसः, गौतम ! पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और अट्ठफासे पण्णत्ते॥ अष्टस्पर्शः प्रज्ञप्तः। आठ स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है। एवं जहा सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे एवं यथा सप्तमः तनुवातः तथा सप्तमः इसी प्रकार जैसे सातवें तनुवात की घणवाए, घणोदधी, पुढवी। छठे घनवातः, घनोदधिः, पृथिवी। षष्ठः वक्तव्यता, वैसे ही सातवें घनवात, घनोदधि ओवासंतरे अवण्णे। तणुवाए जाव छट्ठी अवकाशान्तरः अवर्णः। तनुवातः यावत् और पृथ्वी की वक्तव्यता। छठा पुढवी-एयाइं अट्ठफासाई। एवं जहा ____षष्ठीपृथिवी-एतानि अष्टस्पर्शानि। एवं अवकाशान्तर वर्ण-रहित है। तनुवात सत्तमाए पुढवीए वत्तव्यया भणिया तहा ___ यथा सप्तम्याः पृथिव्याः, वक्तव्यता यावत् छठी पृथ्वी-इनमें आठ स्पर्श हैं। इसी जाब पढमाए पुढवीए भाणियब्वं । भणिता तथा यावत् प्रथमायाः पृथिव्याः प्रकार जैसे सातवीं पृथ्वी की वक्तव्यता, वैसे जंबुद्दीवे दीवे जाव सयंभूरमणे समुद्दे, । भणितव्यम्। जम्बूद्वीपः द्वीपः यावत् ही यावत् प्रथम पृथ्वी की वक्तव्यता। साहम्मे कप्पे जाव इंसिपब्भारा पुढवी, स्वयम्भूरमणः समुद्रः, सौधर्मः कल्पः जम्बूद्वीप द्वीप यावत् स्वयंभूरमण समुद्र, नेरइयावासा जाव वेमाणियावासा- यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथिवी, नैरयिका- सौधर्मकल्प यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, एयाणि सव्वाणि अट्ठफासाणि॥ वासाः यावत् वैमानिकावासाः-एतानि नैरयिकावास यावत् वैमानिकावास-ये सभी सर्वाणि अष्टस्पर्शानि । आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। भाष्य १. सूत्र ११२-११३ युक्त हैं। उनकी परिणति स्थूल ह इसलिए वे अष्टस्पर्शी हैं।" ____ अवकाशान्तर आकाश का एक विभाग है इसलिए वह वर्ण द्रष्टव्य भगवई १/२५६-२५७ का भाष्य तथा भगवई आदि से रहित है। तनुवात आदि पौद्गलिक हैं इसलिए वर्ण आदि से १/२८२-३०७ का भाष्य। १. भ. वृ.१२/१०८-वधादिविरमणानि जीवोपयोगस्वरूपाणि जीवोपयोगश्चा- ३. वही, १२/१०६-पारिणामिय ति परि:-समन्तानमनं परिणामः-सुदीर्घ मूर्तोऽमूर्त्तत्वाच तस्य वधादिविरमणानाममूर्तत्वं तस्माचा-वर्णादित्यमिति। कालपूर्वापरावलोकनादिजन्यआत्मधर्मः स कारणं यस्याः सा २. वहीं, १२/१०१-उप्पत्तिय त्ति उत्पत्तिरेव प्रयोजनं यस्याः सा औत्पत्तिकी, पारिणामिकी बुद्धिरिति वाक्यशेषः। ननु क्षयोपशमः प्रयोजनमस्याः? सत्यं, स खल्वंतरंगत्यात् सर्वबुद्धि- ४. भ. पृ. १२/११२-११३-तनुवातादीनां च पञ्चवर्णादित्वं पौद्गलिकत्वेन साधारण इति न विवक्ष्यते, न चान्यच्छास्त्रकर्माभ्यासादिकमपेक्षत इति। मूर्त्तत्वात् अष्टस्पर्शत्वं च बादरपरिणामत्वात्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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