________________
पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
वण्णादिं अवण्णादिं च पञ्च दब्ब- वर्णादि अवर्णादिं च प्रतीत्य द्रव्यवीमंसा-पदं
विमर्श-पदम् १०२. रायगिहे जाव एवं बयासी अह राजगृहं यावत् एवमवादीत्-अथ
भंते ! पाणाइवाए, मुसावाए,अदिण्णा- भदन्त! प्राणिपातः, मृषावादः, दाणे, मेहुणे, परिग्गहे-एस णं अदत्तादानं, मैथुनं, परिग्रह:-एष कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे, कतिवर्णः, कतिगन्धः, कतिरसः, कतिफासे पण्णत्ते?
कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः?
वर्णादि और अवर्णादि की अपेक्षा द्रव्यविमर्श पद १०२. राजगृह नाम का नगर यावत् गौतम
स्वामी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भंते! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह-ये कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं। गौतम ! पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, और चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं।
गोयमा ! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, गौतम! पञ्चवर्णः, द्विस्पर्शः, पञ्चचउफासे पण्णत्ते ॥
रसः, चतुस्पर्शः प्रज्ञप्तः।
१०३. अह भंते ! कोहे, कोवे, रोसे, दोसे, अथ भदन्त! क्रोधः, कोपः, रोषः, १०३. भंते ! क्रोध, कोप, रोष, दोष (द्वेष),
अखमा, संजलणे, कलहे, चंडिक्के, दोषः, अक्षमा, संज्वलनम्, कलहः, अक्षमा, संज्वलन, कलह, चाण्डिक्य, भंडणे, विवादे-एस णं कतिवण्णे जाव __ 'चंडिक्के', भण्डनम्, विवाद:-एष भण्डन और विवाद-ये कितने वर्ण यावत् कतिफासे पण्णते ?
कतिवर्णः यावत् कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः? स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं? गोयमा ! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, गौतम! पञ्चवर्णः, द्विस्पर्शः, पञ्च- गौतम ! पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और चउफासे पण्णत्ते॥ रसः, चतुस्पर्शः प्रज्ञप्तः।
चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं।
१०४. अह भंते ! माणे, मदे, दप्पे, थंभे, अथ भदन्त! मानं, मदः, दर्पः, स्तम्भः, १०४. भंते ! मान, मद, दर्प, स्तम्भ, गर्व
गब्बे, अत्तुक्कोसे, परपरिवाए, गर्वः, आत्मोत्कर्षः, परपरिवादः, आत्मोत्कर्ष, परपरिवाद, उत्कर्ष, अपकर्ष उक्कोसे, अवक्कोसे, उण्णते, उण्णामे, उत्क्रोषः, अवोत्कर्षः, उन्नतः, उन्नामः, (अवोत्कर्ष), उन्नत, उन्नाम और दुर्नाम-ये दुण्णाम-एस णं कतिवण्णे जाव दुर्नाम:-एषः कतिवर्णः यावत् कति- कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाले प्रज्ञप्त कतिफासे पण्णत्ते ?
स्पर्शः प्रज्ञप्तः? गोयमा ! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, गौतम! पञ्चवर्णः, द्विस्पर्शः, पञ्चरसः, गौतम ! पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और चउफासे पण्णत्ते॥ चतुस्पर्शः प्रज्ञप्तः।
चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं।
१०५. अह भंते ! माया, उवही, नियडी, अथ भदन्त! माया, उपधिः, निकृतिः, १०५. भंते ! माया, उपधि, निकृति, वलय,
वलए, गहणे, णूमे, कक्के, कुरुए, वलयः, गहनम् ‘णूमे', कल्कः, 'कुरुए' गहन, णूम, कल्क, कुरुए, जैम्ह, जिम्हे, किब्बिसे, आयरणया, गृहणया, जैम्हः, किल्विषः, आचरणं, गूहनं, । किल्विषक, आचरण, गूहन, वंचन, वंचणया, पलिउंचणया, सातिजोगे- वञ्चनं, परिकुञ्चनं, साचियोगः- एषः । परिकुंचन और साचियोग-ये कितने वर्ण एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे कतिवर्णः यावत् कतिस्पर्शः प्रज्ञप्तः? यावत् कितने स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं? पण्णत्ते? गोयमा! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, गौतम! पञ्चवर्णः, द्विगन्धः, पञ्चरसः, गौतम ! ये पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस चउफासे पण्णत्ते॥ चतुस्पर्शः प्रज्ञप्तः।
और चार स्पर्श वाले प्रज्ञप्त हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org