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भगवई
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श. १२ : उ. ४ : सू. १०१
सात पुद्गल-परिवत्र्तों के क्रम पूर्वोक्त क्रम से विपरीत हैं। वृत्ति में इसका संक्षिप्त उल्लेख है।' जयाचार्य ने उसका विवरण प्रस्तुत
किया है।
विशद जानकारी के लिए देखें यंत्र
पुद्गल-परिवर्त १ कर्म पुद्गल-परिवर्त २ तैजस पुद्गल-परिवर्त्त ३ औदारिक पुद्गल-परिवर्त
आनप्राण पुद्गल-परिवर्त्त ५ मन पुद्गल-परिवर्त ६ वचन पुद्गल परिवर्त ७ वैक्रिय पुद्गल-परिवर्त
निर्वर्तना-काल सबसे थोड़ा अनन्तगुणा अनन्तगुणा अनन्तगुणा अनन्तगुणा अनन्तगुणा अनन्तगुणा
पुद्गल-परिवर्त
अल्प-बहुत्व वैक्रिय पुद्गल-परिवर्त सबसे थोड़ा वचन पुद्गल-परिवर्त्त अनंत गुण अधिक मन पुद्गल-परिवर्त्त अनंत गुण अधिक आनप्राण पुद्गल-परिवर्त | अनंत गुण अधिक औदारिक पुद्गल परिवर्त | अनंत गुण अधिक तैजस पुद्गल-परिवर्त अनंत गुण अधिक कर्म पुद्गल-परिवर्त्त अनंत गुण अधिक
.
१०१. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं
जाव विहरइ ॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति भगवान् यावत् विहरति ।
१०१. भंते ! वह ऐसा ही है, भंते ! वह ऐसा ही
है। इस प्रकार भगवान यावत् विहरण करने लगे।
१. वही, १२/१००-सर्वस्तोका वैक्रियपुद्गलपरिवर्त्ता बहुतमकालनिर्वर्तनीयत्वात्तेषां,
ततोऽनन्तगुणावाविषया अल्पतरकालनिर्वत्येत्वात्। एवं पूर्वोक्तयुक्त्या
बहुबहुतराः क्रमेणान्येऽपि वाच्या इति। २. भ. जो. ४/२५७.६६-७२१. पूर्वे कही प्रतीत, अल्प बहु अद्धा तणु।
तेह थी ए विपरीत, अंतिम थकी पिछाणियै। २. जेहनो थोड़े काल, हुवै निवर्तन तेहनां।
पोग्गल-परियट्ट न्हाल, घणां हुवै छै ते सही॥ ३. कार्मण पुद्गल सोय, परावर्त निवर्तना।
तास काल अवलोय, सर्व थकी थोड़ो कह्यो।
४. इतरे थोड़ो काल, पूरो है छै कार्मण।
तो सर्व थकी बहु न्हाल, कम्मा पोग्गल-परियट्टा।। वैक्रिय पुद्गल देख, परिवर्तन नों काल जे।
सर्व थकी संपेख, बहु काले करि नीपजै॥ ६. तेहया पुद्गल. ताम, परावर्त वैक्रिय तणां।
न्याय विचारो आम, सर्व थकी थोड़ा कह्या॥ ७. जेहनों बहुलो काल, ते पुद्गल थोड़ा कह्या।
अल्प अद्धा जसु न्हाल,ते पुर्दगल-परिवर्त बहु॥
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