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________________ श. १२ : उ. ४ : सू. १०० ५२ भगवई अणंतगुणा, ओरालियपोग्गलपरियट्टा अनन्तगुणाः, औदारिकपुद्गलपरिवर्ताः अणतगुणा, तेयापोग्गलपरियट्टा अनन्तगुणाः, तैजसपुद्गलपरिवर्ताः अणंतगुणा, . कम्मगपोग्गलपरियट्टा अनन्तगुणाः, कर्मकपुद्गलपरिवर्ताः अणंतगुणा॥ अनन्तगुणाः । आनापान पुद्गल-परिवर्त मन पुद्गलपरिवर्त्त से अनंतगुण है, औदारिक पुद्गल परिवर्त्त आनापान पुद्गल-परिवर्त से अनंतगुण है, तैजस पुद्गल-परिवर्त औदारिक पुद्गल-परिवर्त से अनंतगुण है और कर्म पुद्गल-परिवर्त्त तैजस पुद्गल परिवर्त से अनंतगुण है। भाष्य १. सूत्र -१०० ४. यद्यपि औदारिक पुदगलों से आनापान के पुद्गल सूक्ष्म प्रस्तुत सूत्र में पुद्गल-परिवर्त के निर्वर्तना-निष्पत्ति काल पर और बहुप्रदेश वाले होते हैं फिर भी उनका ग्रहण केवल पर्याप्तक तुलनात्मक विमर्श किया गया है। अवस्था में होता है। पर्याप्तक अवस्था में भी औदारिक शरीर पुद्गल १. सात पुद्गल-परिवत्तों में कर्म पुद्गल-परिवर्त्त का निर्वर्तना की अपेक्षा उसका ग्रहण अल्प मात्रा में होता है। इस हेतु से काल सबसे कम है। वृत्तिकार के अनुसार इसका हेतु यह है-कर्म के औदारिक पुद्गल-परिवर्त निर्वर्तना-काल से आनापान पुद्गलपुद्गल-स्कंध सूक्ष्म और बहुतम परमाणुओं से निष्पन्न होते हैं परिवर्त निर्वर्तना-काल अनंत गुण अधिक होता है।' इसलिए एक बार में उनका ग्रहण बहु संख्या में होता है। नारक आदि ५. आनापान पुद्गलों से मनःपुद्गल सूक्ष्म और बहुप्रदेश वाले सभी स्थानों में वर्तमान जीव प्रति समय उनका ग्रहण करता है हैं इसलिए उनका अल्प काल में ग्रहण होता है। मन एकेन्द्रिय आदि इसलिए कर्म वर्गणा के समस्त पुद्गलों का ग्रहण स्वल्प काल में हो जीवों के नहीं होता। वह केवल गर्भज पञ्चेन्द्रिय के ही होता है। जाता है। बहकाल साध्य होने के कारण आनापान पुदगल-परिवर्त्त निर्वर्तना २. तैजस वर्गणा के पुद्गल कर्म वर्गणा के पुद्गलों से स्थूल हैं काल से मनः पुद्गल-परिवर्त्त निर्वर्तना-काल अनंत गुण अधिक और वे अल्प-प्रदेशों से निष्पन्न होते हैं। उनका एक बार ग्रहण होता होता है। है और अल्प परमाणु स्कंधों का ग्रहण होता है इसीलिए कर्म पुद्गल. ६. भाषा द्वीन्द्रिय आदि जीव जातियों में भी होती है फिर भी परिवर्त निर्वर्तना-काल से तैजस पुद्गल परिवर्त्त निर्वर्तना काल अनंत ___ मनः पुद्गलों की अपेक्षा भाषा के पुद्गल अति स्थूल होते हैं इसलिए गुण अधिक होता है। उनका ग्रहण एक साथ अल्प मात्रा में होता है इसलिए मनःपुद्गल३. औदारिक वर्गणा के पुद्गल अति स्थूल होते हैं, इसलिए परिवर्त्त निर्वर्तना-काल से भाषा पुदगल-परिवर्त निर्वर्तना-काल एक साथ उनके अल्प अणुओं का ही ग्रहण किया जाता है। अनंत गुण अधिक होता है। औदारिक शरीर वाला प्राणी ही उनका ग्रहण करता है इसलिए ७. वैक्रिय शरीर दीर्घकाल लभ्य है इसलिए भाषा पुद्गल तैजस पुद्गल-परिवर्त्त निर्वर्तना-काल से औदारिक पुद्गल- परिवर्त्त परिवर्त्त निर्वर्तना-काल से वैक्रिय पुद्गल परिवर्त्त निर्वर्तना-काल निर्वर्तना-काल अनंत गुण अधिक होता है। अनंत गुण अधिक होता है।' १. भ. वृ. १२/६८,६६-सर्वस्तोकः कार्मणपुद्गलपरिवर्तनिर्वर्तनाकालः ते हि सूक्ष्मा बहुतमपरमाणुनिष्पन्नाश्च भवन्ति, ततस्ते सकृदपि बहवो गृह्यन्ते, सर्वेषु च नारकादिपदेषु वर्तमानस्य जीवस्य तेऽनुसमयं ग्रहणमायान्तीति स्वल्पकालेनापि तत्सकलपुद्गलग्रहणं भवतीति। २. वही, १२/१८,६६-ततस्तैजसपुद्गलपरिवर्तनिर्वर्तनाकालोऽनन्तगुणो यतः स्थूलत्वेन तैजसपुद्गलानामल्पानामेकदा ग्रहणम्, एकग्रहणे चाल्पप्रदेश निष्पनत्वेन तेषामल्पानामेव तदणूनां ग्रहणं भवत्यतोऽनन्तगुणोऽसाविति। ३. वही, १२/६८,६६-तत औदारिकपुद्गलपरिवर्तनिर्वर्तनाकालोऽनन्तगुणो, यत औदारिकपुद्गला अतिस्थूराः, स्थूराणां चाल्पानामेवैकदा ग्रहणं भवति अल्पतरप्रदेशाश्च ते ततस्तद्ग्रहणेऽप्येकदाऽल्पा एवाणवो गृह्यन्ते, न च कार्मणतैजसपुद्गलवत्तेषां सर्वपदेषु ग्रहणमस्ति, औदारिकशरीरिणामेव तद्ग्रहणात् अतो बृहतैव कालेन तेषां ग्रहणमिति। ४. वही, १२/१८,६६-यद्यपि हि औदारिकपुद्गलेभ्य आनाप्राणपुद्गलाः सूक्ष्माः बहुप्रदेशिकाश्चेति तेषामल्पकालेन ग्रहणं संभवति, तथाऽप्य- पर्याप्तकावस्थायां तेषामग्रहणात् पर्याप्तकावस्थायामप्यौदारिक-शरीर पुद्गलापेक्षया तेषामल्पीयसामेव ग्रहणान्न शीघ्रं तद्ग्रहणमित्यौदारिकपुद्गलपरिवर्तनिर्वर्तनाकालादनन्तगुणताऽऽनाप्राणपुद्गलपरिवर्तनिर्वर्तना कालस्येति। ५. वही, १२/६८,६६-ततो मनःपुद्गलपरिवर्तनिवर्तनाकालोऽनन्तगुणः कथम् ? यद्यप्यानप्राणपुद्गलेभ्यो मनःपुद्गलाः सूक्ष्माः बहुप्रदेशाश्वेत्यल्पकालेन तेषां ग्रहणं भवति तथाऽप्येकेन्द्रियादिकायस्थितियशान्मनसश्चिरेण लाभान्मानसपुद्गलपरिवर्तों बहुकालसाध्य इत्यनन्तः गुणः उक्तः। ६. वही, १२/६८,६६-ततोऽपि वाक्पुद्गलपरिवर्तनिवर्तनाकालोऽनन्तगुणः कथम्? यद्यपि मनसः सकाशाद् भाषा शीघ्रतरं लभ्यते द्वीन्द्रियाद्यवस्थायां च भवति तथाऽपि मनोद्रव्येभ्यो भाषाद्रव्याणामति स्थूलतया स्तोकानामेवैकदा ग्रहणात्ततोऽनन्तगुणो वाक् पुद्गल परिवर्तनिर्वर्तनाकाल इति। ७. वही, १२/६८,६६-ततो वैक्रियपुद्गलपरिवर्तनिवर्तनाकालोऽनन्तगुणो वैक्रियशरीरस्यातिबहुकाललभ्यत्वादिति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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