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________________ भगवई ४६ श. १२ : उ. ४ : सू. ६६ १. एक नैरयिक के औदारिक पुद्गल-परिवर्तअतीतकाल भविष्यकाल अनन्त | किसी के होगा, किसी के नहीं, जिसके होगा ज. १,२,३ उ. संख्येय, असंख्येय, अनंत। २. एक असुरकुमार के औदारिक पुदगल-परिवर्तअतीतकाल भविष्यकाल अनन्त | किसी के होगा,किसी के नहीं, जिसके होगा | ज. १,२,३ उ. संख्येय, असंख्येय, अनंत। इसी तरह वैमानिक तक सभी दंडक वक्तव्य हैं। इसी तरह वैक्रिय आदि सातों ही पुद्गल-परिवर्त वक्तव्य हैं। ३. नैरयिकों के औदारिक पुद्गल-परिवर्तअतीतकाल | भविष्यकाल अनंत अनंत इसी तरह वैमानिकों तक सभी दंडक वक्तव्य हैं। इसी तरह वैक्रिय आदि सातों ही पुद्गल-परिवर्त वक्तव्य हैं। ४. एक नैरयिक के नैरयिक रूप में औदारिक पदगल-परिवर्तअतीतकाल भविष्यकाल नहीं नहीं ५. एक नैरयिक के असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार के रूप में औदारिक पुद्गल-परिवर्त अतीतकाल भविष्यकाल नहीं नहीं ६. एक नैरयिक के पृथ्वीकायिक रूप में औदारिक पुदगल-परिवर्तअतीतकाल | भविष्यकाल | किसी के होगा, किसी के नहीं, जिसके होगा ज. १,२,३, उ. संख्येय, असंख्येय, अनन्त। इसी तरह मनुष्य-रूप में तक दंडक (१३-२१) वक्तव्य हैं। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की रूप में असुरकुमार की भांति वक्तव्यता। ७. एक नैरयिक के नैरयिक रूप में वैक्रिय पुदगल-परिवर्तअतीतकाल | भविष्यकाल | किसी के होगा, किसी के नहीं, जिसके होगा | ज. १,२,३, उ. संख्येय, असंख्येय, अनंत। इसी तरह स्तनितकुमार रूप में तक वक्तव्य हैं। ८. एक नैरयिक के पृथ्वीकायिक रूप में वैक्रिय पदगल-परिवर्तअतीतकाल | भविष्यकाल नहीं नहीं इसी तरह अप्काय, तेजस्काय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय रूप में वक्तव्य है। वायुकायिक, तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय, मनुष्य, वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की रूप में नैरयिक की तरह वक्तव्यता। इसी तरह असुरकुमार से वैमानिक केवैमानिक रूप तक वक्तव्यता। ६. एक नैरयिक के नैरयिक-रूप में तैजस-कर्म-आनापान पुद्गल-परिवर्त्त | अतीतकाल | भविष्यकाल अनंत किसी के होगा, किसी के नहीं, जिसके होगा | ज. १,२,३, उ. संख्येय, असंख्येय, अनन्त। इसी तरह यावत् वैमानिक रूप में। इसी तरह शेष सभी दंडकों के सभी दंडकों के रूप में वक्तव्य हैं। १०. एक नैरयिक के नैरयिक रूप में मनःपुदगल-परिवर्तअतीतकाल भविष्यकाल अनंत किसी के होगा, किसी के नहीं। जिसके होगा ज. १,२,३, उ. संख्येय, असंख्येय, अनंत। इसी तरह एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय को छोड़ सभी दंडकों के रूप में वक्तव्य है। ११. एक नैरयिक के एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय रूप में मनः पुद्गल-परिवर्त्त अतीतकाल| भविष्यकाल नहीं नहीं इसी तरह शेष सभी दंडकों की सभी दंडकों के रूप में वक्तव्यता। १२. एक नैरयिक के नैरयिक रूप में वचन पुदगल-परिवर्त्त| अतीतकाल भविष्यकाल अनंत | किसी के होगा, किसी के नहीं, जिसके होगा ज. १,२,३, उ. संख्येय, असंख्येय, अनंत। इसी तरह एकेन्द्रिय को छोड़ सभी दंडकों में वक्तव्यता। १३. एक नैरयिक के एकेन्द्रिय रूप में वचन पदगल-परिवर्तअतीतकाल | भविष्यकाल नहीं नहीं इसी तरह एकेन्द्रिय को छोड़ सभी दंडकों में वक्तव्यता। १४. नैरयिक के नैरयिक रूप में औदारिक पुदगल-परिवर्तअतीतकाल| भविष्यकाल नहीं नहीं इसी तरह यावत् स्तनितकुमार रूप में। १५. नैरयिकों के पृथ्वीकायिक रूप में औदारिक पुदगल-परिवर्तअतीतकाल | भविष्यकाल नहीं नहीं इसी तरह यावत् मनुष्य रूप में। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक रूप में नैरयिक की तरह वक्तव्य हैं। १६. इसी तरह यावत् वैमानिकों के वैमानिक रूप में औदारिक पुद्गल-परिवर्त अतीतकाल | भविष्यकाल नहीं नहीं इसी तरह सातों पुद्गल-परिवर्त वक्तव्य हैं, जो जहां है वहां अतीतकाल व भविष्यकाल में अनंत। जहां नहीं है वहां दोनों ही नहीं, यावत वैमानिकों के वैमानिक रूप में आनापान पुदगल-परिवर्त्त अतीतकाल भविष्यकाल अनंत अनंत अनंत अनंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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