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भगवई
श. १२ : उ. ४ : सू. ६५-६६
ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता ?
औदारिकपुद्गलपरिवर्ताः अतीताः?
नत्थि एक्कोवि। केवतिया पुरेक्खडा ? नत्थि एक्कोवि। थणियकुमारत्ते॥
नास्ति एकोऽपि। कियन्तः पुरस्कृताः? नास्ति एकोऽपि। एवं यावत् स्तनित कुमारत्वे ।
अतीत में कितने औदारिक पुद्गल-परिवर्त हुए हैं? एक भी नहीं। भविष्य में कितने होंगे? एक भी नहीं। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के रूप में।
एवं
जाव
६५. पुढविकाइयत्ते-पुच्छा।
पृथ्वीकायिकत्वे-पृच्छा। अणता ।
अनन्ताः केवतिया पुरेक्खडा ?
कियन्तः पुरस्कृताः? अणंता। एवं जाव मणुस्सत्ते। अनन्ताः। एवं यावत् मनुष्यत्वे। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियत्ते जहा वानमन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकत्वे यथा नेरइयत्ते । एवं जाव वेमाणियाणं । नैरयिकत्वे। एवं यावत् वैमानिकानां वेमाणियत्ते। एवं सत्त वि वैमानिकत्वे। एवं सप्त अपि पुद्गलपोग्गलपरियट्टा भाणियब्वा-जत्थ परिवर्ताः भणितव्याः-यत्र अस्ति तत्र अस्थि तत्थ अतीता वि पुरेक्खडा वि अतीताः अपि पुरस्कृता अपि अनन्ताः अणंता भाणियव्वा, जत्थ नत्थि तत्थ भणितव्याः, यत्र नास्ति तत्र द्वौ अपि दोवि नत्थि भाणियन्वा जाव
नास्ति भणितव्यौ यावत्
१५. पृथ्वीकायिक के रूप में-पृच्छा
अनंत। भविष्य में कितने होंगे? अनंत। इसी प्रकार यावत् मनुष्यत्व में। वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक के रूप में नैरयिकत्व की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के वैमानिक के रूप में। इसी प्रकार सात पुद्गल-परिवर्त वक्तव्य हैं-जहां हैं, वहां अतीत और भविष्य में अनंत वक्तव्य हैं। जहां नहीं हैं, वहां अतीत और भविष्य दोनों में वक्तव्य नहीं हैं यावत्
१६. वेमाणियाणं वेमाणियत्ते केवतिया वैमानिकानां वैमानिकत्वे कियन्तः १६. वैमानिकों के वैमानिक के रूप में अतीत में
आणपाणुपोग्गलपरियट्टा अतीता? आनापानपुद्गलपरिवर्ताः अतीताः? कितने आनापान पुद्गल-परिवर्त्त हुए हैं? अणंता। अनन्ताः ।
अनंत। केवतिया पुरेक्खडा ? कियन्तः पुरस्कृताः?
भविष्य में कितने होंगे? अणंता॥ अनन्ताः ।
अनंत।
भाष्य १. सूत्र ८१-६६
रूप में परिणमन करता है। यह औदारिक पुद्गल-परिवर्त्त है। पुद्गल-परिवर्त्त संसार भ्रमण का एक अद्भुत लेखा-जोखा इसी प्रकार शेष छह वर्गणा के प्रायोग्य सब पुद्गल द्रव्यों का है। एक परमाणु व्यणुक आदि अनंत अणुओं के साथ संयोग और अपने-अपने रूप में परिणमन करने पर वैक्रिय पुदगल-परिवर्त्त आदि वियोग करता हुआ अनंत परिवर्त (परिवर्तन) करता है। परमाणु प्रकार बनते हैं। नैरयिक से लेकर वैमानिक तक के चौबीस दंडकों में अनंत हैं और प्रत्येक परमाणु में (संयोग-वियोग जनित) अनंत सभी पुद्गल परिवर्त्त होते हैं। परिवर्त्त होते हैं। इस प्रकार परिवर्त्त अनंतानंत हो जाते हैं। अनादि व्यक्ति के विषय में अतीत और भविष्य-दो दृष्टियों से विचार काल से संसार में परिभ्रमण करने वाला जीव पुदगल का परिवर्तन किया गया है। नैरयिक व्यक्ति अतीत में अनंत पुद्गल-परिवर्त्त कर करता रहता है। पुद्गल की आठ वर्गणाएं होती हैं। आहारक शरीर चुका है। भविष्य में कोई नैरयिक पुद्गल-परिवर्त करता है, कोई नहीं केवल मुनि के ही होता है इसलिए उसके अनंतानंत परिवर्त नहीं करता। अभव्य और दूर भव्य (सुदूर काल से मोक्ष में जाने वाला) होते। प्रस्तुत प्रकरण में शेष सात वर्गणाओं के आधार पर सात नैरयिक जीव के पुद्गल-परिवर्त्त होंगे। जो नैरयिक जीव नरक से परिवर्त्त बतलाए गए हैं
निकल कर मनुष्य जन्म ले संख्येय अथवा असंख्येय भवों को पार कर औदारिक पुद्गल-परिवर्त्त-औदारिक शरीर में वर्तमान जीव मुक्त होगा, उसके पुद्गल-परिवर्त्त नहीं होगा। पुद्गल-परिवर्त्त औदारिक शरीर प्रायोग्य सब पुद्गल द्रव्यों का औदारिक शरीर के अनंतकाल से पूरित होता है इसलिए उसका निषेध किया गया है।" १. भ. वृ. १२/८१ : साहणण त्ति प्राकृतत्वात् संहननं-संघातो, भेदश्च- २. भ. १/१६-२४ का भाष्य। वियोजनं तयोरनुपातो-योगः संहननभेदानुपातस्तेन सर्वपुद्गलद्रव्यैः सह ३. भ. वृ. १२/८४-अतीतानंता अनादित्वात् अतीतकालस्य जीवस्य परमाणूनां संयोगेन वियोगेन चेत्यर्थः 'अणंताणंत ति अनंतेन गुणिता चानादित्वात् अपरापरपुद्गलग्रहणस्वरूपत्याचेति। अनंता अनंतानंताः, एकोऽपि हि परमाणुद्वर्यणुकादिभिरनन्ताणुकान्तै- ४. वही, १२/८४-कस्यापि जीवस्य दूरभव्यस्याभव्यस्य वा ते सन्ति, र्द्रव्यैः सह संयुज्यमानोऽनन्तान् परिवर्तान् लभते, प्रतिद्रव्यं परिवर्तभावात् कस्यापि न सन्ति, उद्धृत्य यो मानुषत्वमासाद्य सिद्धिं यास्यति अनंतत्याच परमाणूनां, प्रतिपरमाणु चानन्तत्वात् परिवर्तानां परमाणु- संख्ययैरसंख्येयैर्वा भवैर्यास्यति यः सिद्धिं तस्यापि परिवत्र्तो नास्ति पुद्गलपरिवर्तानामनन्तानंतत्वं द्रष्टव्यमिति।
अनंतकालपूर्यत्वात्तस्येति।
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