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________________ भगवई ३५ श. १२: उ. ४ : सू. ७७ खंधे भवइ; अहवा एगयओ पंच स्कन्धः भवति, अथवा एकतः पञ्च परमाणुपोग्गला, एगयओ दो परमाणुपुद्गलाः, एकतः द्वौ द्विप्रदेशिको दुपएसिया खंधा भवंति। स्कन्धौ भवतः। अट्टहा कज्जमाणे एगयओ सत्त अष्टधा क्रियमाणः एकतः सप्त परमाणुपोग्गला, एगयओ दुपएसिए परमाणुपुद्गलाः, एकतः द्विप्रदेशिकः खंधे भवइ। स्कन्धः भवति। नवहा कज्जमाणे नव परमाणु- नवधा क्रियमाणः नव परमाणुपुद्गलाः पोग्गला भवंति॥ भवन्ति। त्रिप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर पांच स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर दो द्विप्रदेशी स्कंध होते हैं। आठ भागों में विभक्त होने पर एक ओर सात स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर द्विप्रदेशी स्कंध होता है। नौ भागों विभक्त होने पर-नौ स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल हो जाते हैं। ७७. दस भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ दश भदन्त ! परमाणुपुद्गलाः एकतः साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ ? संहन्यन्ते, संहत्य किं भवति? ७७. भंते ! दस परमाणु-पुद्गल एकत्र संहत होते हैं, उस संहति से क्या निष्पन्न होता गौतम ! दस प्रदेशी स्कंध निष्पन्न होता है। वह टूटने पर दो यावत दस भागों में विभक्त होता है। दो भागों में विभक्त होने पर-एक ओर स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल दूसरी ओर नौ प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर अष्टप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर त्रिप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर सात प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर चतुष्प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर छह प्रदेशी स्कंध होता है अथवा दो पांचप्रदेशी स्कंध होते हैं। गोयमा ! दसपएसिए खंधे भवइ। से गौतम! दशप्रदेशिकः स्कन्धः भवति।। भिज्जमाणे दुहा वि जाव दसहा वि सः भिद्यमानः द्विधा अपि यावत् दशधा कज्जइ अपि क्रियतेदुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणु- द्विधा क्रियमाणः एकतः परमाणुपोग्गले, एगयओ नवपएसिए खंधे पुद्गलः, एकतः नवप्रदेशिक: स्कन्धः भवइ अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे, भवति, अथवा एकतः द्विप्रदेशिक: एगयओ अट्ठपएसिए खंधे भवइ स्कन्धः, एकतः अष्टप्रदेशिकः स्कन्धः अहवा एगयओ तिपएसिए खंधे, भवति, अथवा एकतः त्रिप्रदेशिक: एगयओ सत्तपएसिए खंधे भवइ स्कन्धः, एकतः सप्तप्रदेशिक: स्कन्धः । अहवा एगयओ चउप्पएसिए खंधे, भवति, अथवा एकतः चतुष्प्रदेशिक: एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा स्कन्धः, एकतः षट्प्रदेशिक: स्कन्धः दो पंचपएसिया खंधा भवंति। भवति, अथवा द्वौ पञ्चप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो। त्रिधा क्रियमाणः एकतः द्वौ परमाणुपोग्गला, एगयओ अट्टपएसिए । परमाणुपुद्गलौ, एकतः अष्टप्रदेशिक: खंधे भवइ अहवा एगयओ स्कन्धः भवति, अथवा एकतः परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए परमाणुपुद्गलः, एकतः द्विप्रदेशिक: खंधे एगयओ सत्तपएसिए खंधे भवइ स्कन्धः, एकतः सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले भवति, अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः एगयओ तिपएसिए खंधे, एगयओ एकतः त्रिप्रदेशिक: स्कन्धः, एकतः छप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ षट्प्रदेशिकः स्कन्धः भवति, अथवा परमाणुपोग्गले, एगयओ चउप्पएसिए एकतः परमाणुपुद्गलः, एकतः खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भव: चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः अहवा एगयओ दो दुपएसिया खंधा पञ्चप्रदेशिक: स्कन्धः भवति, अथवा एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा एकतः द्वौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ, एकतः एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयओ षट्प्रदेशिक: स्कन्धः भवति, अथवा तिपएसिए खंधे, एगयओ पंचपएसिए एकतः द्विप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः खंधे भवइ; अहवा एगयओ दुपएसिए पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः भवति, अथवा खंधे, एगयओ दो चउप्पएसिया खंधा एकतः द्विप्रदेशिकः स्कन्धः, एकतः द्वौ भवंति अहवा एगयओ दो तिपएसिया चतुष्प्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, अथवा खंधा, एगयओ चउप्पएसिए खंधे एकतः द्वौ त्रिप्रदेशिको स्कन्धौ, एकतः भवइ। चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः भवति। तीन भागों में विभक्त होने पर-एक ओर दो स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर अष्टप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर द्विप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर सप्तप्रदेशी स्कन्ध होता है अथवा एक ओर स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर त्रिप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर छ: प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणुपुद्गल, दूसरी ओर चतुष्प्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर पंचप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर दो द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर छह प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर त्रिप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर पंचप्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर दो चतुष्प्रदेशी स्कंध होते हैं अथवा एक ओर दो त्रिप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर चतुष्प्रदेशी स्कंध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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