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________________ श. १२ : उ. ४ : सू. ७५ ३२ भगवई सिया खंधा भवंति। स्कन्धौ भवतः। छहा कज्जमाणे एगयओ पंच षड्ढा क्रियमाणः एकतः पञ्च परमाणुपरमाणुपोग्गला, एगयओ दुपएसिए पुद्गलाः, एकतः द्विप्रदेशिक: स्कन्धः खंधे भवइ। भवति। सत्तहा कज्जमाणे सत्त परमाणु- सप्तधा क्रियमाणः सप्तपरमाणुपुद्गलाः पोग्गला भवंति॥ भवन्ति । द्विप्रदेशी स्कंध होते हैं। छह भागों में विभक्त होने पर-एक ओर पांच स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर द्विप्रदेशी स्कंध होता है। सात भागों में विभक्त होने पर सात स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल हो जाते हैं। ७५, अट्ठ भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ ? अष्ट भदन्त! परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते, संहत्य किं भवति? ७५. भंते ! आठ परमाणु-पुद्गल एकत्र संहत होते हैं, उस संहति से क्या निष्पन्न होता गोयमा ! अट्ठपएसिए खंधे भवइ। से गौतम! अष्टप्रदेशिक: स्कन्धः भवति। गौतम ! अष्टप्रदेशी स्कन्ध निष्पन्न होता भिज्जमाणे दुहा वि जाव अट्टहा वि सः भिद्यमानः द्विधा अपि यावत् है। वह टूटने पर दो अथवा यावत् आठ कज्जइअष्टधा अपि क्रियते भागों में विभक्त होता हैदुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणु- द्विधा क्रियमाणः एकतः परमाणु- दो भागों में विभक्त होने पर-एक ओर एक पोग्गले, एगयओ सत्तपएसिए खंधे पुद्गलः, एकतः सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर सात भवइ; अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे, भवति, अथवा एकतः द्विप्रदेशिकः प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा स्कन्धः, एकतः षट्प्रदेशिकः स्कन्धः द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर छह प्रदेशी एगयओ तिपएसिए खंधे, एगयओ। भवति, अथवा एकत: त्रिप्रदेशिक: स्कंध होता है अथवा एक ओर तीन प्रदेशी पंचपएसिए खंधे भवइ; अहवा दो स्कन्धः, एकतः पञ्चप्रदेशिक: स्कन्धः स्कंध, दूसरी ओर पांच प्रदेशी स्कंध होता चउप्पएसिया खंधा भवंति। भवति, अथवा द्वौ चतुष्प्रदेशिको है अथवा दो चतुष्प्रदेशी स्कंध होते हैं। स्कन्धौ भवतः। तिहा कज्जमाणे एगयओ दो त्रिधा क्रियमाणः एकतः द्वौ परमाणु- तीन भागों में विभक्त होने पर-एक ओर दो परमाणुपोग्गला भवंति, एगयओ पुद्गलौ भवतः, एकतः षट्प्रदेशिकः . स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर छह छप्पएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ स्कन्धः भवति, अथवा एकतः प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर एक परमाणुपोग्गले, एगयओ दुष्पएसिए परमाणुपुद्गलः, एकतः द्विप्रदेशिक: स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर खंधे, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवइ स्कन्धः, एकतः पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः द्विप्रदेशी स्कन्ध, तीसरी ओर पंचप्रदेशी अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, भवति, अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः, स्कंध होता है अथवा एक ओर एक स्वतंत्र एगयओ तिपएसिए खंधे, एगयओ एकतः त्रिप्रदेशिक: स्कन्धः, एकतः परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर त्रिप्रदेशी चउप्पएसिए खंधे भवइ; अहवा चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः भवति, अथवा स्कन्ध, तीसरी ओर चतुष्प्रदेशी स्कंध होता एगयओ दो दुपएसिया खंधा, एगयओ एकतः द्विप्रदेशिक: स्कन्धः, एकतः द्वौ है अथवा एक ओर दो द्विप्रदेशी स्कन्ध, चउप्पएसिए खंधे भव; अहवा त्रिप्रदेशिकौ स्कन्धौ भवतः। दूसरी ओर चतुष्प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ दो एक ओर द्विप्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर दो तिपएसिया खंधा भवंति। त्रिप्रदेशी स्कंध होते हैं। चउहा कज्जमाणे एगयओ तिण्णि चतुर्धा क्रियमाणः एकतः त्रयः चार भागों में विभक्त होने पर-एक ओर परमाणुपोग्गला, एगयओ पंचपएसिए परमाणुपुदगलाः, एकतः पञ्चप्रदेशिक: तीन स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर खंधे भवइ; अहवा एगयओ दोण्णि स्कन्धः भवति, अथवा एकतः द्वौ पांच प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर परमाणुपोग्गला, एगयओ दुपएसिए परमाणुपुद्गलौ, एकतः द्विप्रदेशिक: दो स्वतंत्र परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर खंधे, एगयओ चउप्पएसिए खंधे स्कन्धः, एकतः चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः द्विप्रदेशी स्कंध, तीसरी ओर चतुष्प्रदेशी भवइ; अहवा एगयओ दो परमाणु- भवति, अथवा एकतः द्वौ परमाणु- स्कंध होता है अथवा एक ओर दो स्वतंत्र पोग्गला एगयओ दो तिपएसिया पुदगलौ, एकतः द्वौ त्रिप्रदेशिको स्कन्धौ परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर दो त्रिप्रदेशी खंधा भवंति; अहवा एगयओ भवतः, अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः स्कंध होते हैं अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणुपोग्गले, एगयओ दो एकतः द्वौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, परमाणु-पुद्गल, दूसरी ओर दो द्विप्रदेशी दुपएसिया खंधा, एगयओ तिपएसिए अथवा एकतः परमाणुपुद्गलः एकतः स्कंध, तीसरी ओर त्रिप्रदेशी स्कंध होता है खंधे भवः अहवा चत्तारि दुपएसिया द्वौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ, एकतः अथवा चार द्विप्रदेशी स्कंध होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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