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तइओ उद्देसो : तीसरा उद्देशक
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
पुढवी-पदं
६६. रायगिहे जाव एवं वयासी-कति णं
भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ?
पृथ्वी-पदम् राजगृहं यावत् एवमवादीत्-कति भदन्त! पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः?
पथ्वी पद ६६. राजगृह नाम का नगर था, यावत् गौतम
स्वामी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भंते ! पृथ्वियां कितने प्रकार की प्रज्ञप्त हैं? गौतम ! पृथ्वियां सात प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-प्रथम, द्वितीय यावत् सातवीं।
गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, गौतम! सप्त पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथातं जहा-पढमा, दोचा जाव सत्तमा॥ प्रथमा, द्वितीया यावत् सप्तमी।
६७. पढमा णं भंते! पुढवी किंगोत्ता
पण्णत्ता ? गोयमा ! घम्मा नामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं, एवं जहा जीवाभिगमे पढमो नेरइयउद्देसओ सो चेव निरवसेसो भाणियब्बो जाव अप्पाबहुगं ति॥
प्रथमा भदन्त! पृथिवी किं गोत्रा ६७. भंते ! प्रथम पृथ्वी का गौत्र क्या प्रज्ञप्त प्रज्ञप्ता? गौतम! घर्मा नाम्ना, रत्नप्रभा गोत्रेण, गौतम ! घम्मानामक प्रथम पृथ्वी का गौत्र एवं यथा जीवाभिगमे प्रथमः रत्नप्रभा है। इस प्रकार जैसे जीवाभिगम नैरयिकोद्देसकः सो चैव निरवशेषः (३) का प्रथम नैरयिक उद्देशक है, वह भणितव्यः यावत् अल्पबहुकम् इति। निरवशेष वक्तव्य है यावत् अल्प-बहुत्व।
भाष्य
१. सूत्र ६६-६७
द्रष्टव्य भगवई १/१११ का भाष्य।
६८. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति॥
६८. तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति।
६८. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही
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