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परिशिष्ट - ३ : भाष्य-1 - विषयानुक्रम
परमाणु - पुद्गल की गति १६ / ११६
परामनोविज्ञान में मनः प्रभाव १५/६५-६६
परिणामी नित्यवाद १४/४४-४७
पांच क्रिया १६ / ११७
पांच स्थावर काय के व्याप्ति का नियम १३/८४-८५
पाक्षिक पौषध १२ / ४-५
पुद्गल का स्वरूप १४/४४-४७
पुद्गल द्रव्य : अणु और स्कंध १२ / ६९-८०
पुद्गल - परिवर्त्त १२ / ८१-९६
पुद्गल - परिवर्त का कालमान १२ / ९८
पुद्गल - परिवर्त के निवर्तना निष्पत्ति काल १२/९९-१०० पुद्गलास्तिकाय के प्रदेश एवं षड्द्रव्य के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श १३/६४-६५
पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों का षड़द्रव्य के प्रदेशों से स्पृष्ट होना
१३/६६-७०
पोट्ट - परिहार का सिद्धांत १५/६५-६६,१४१
पौषध का स्वरूप १२/६
पौषध में भोजन करने की आज्ञा देना १२/१३
४१४
प्रणीतभूमि में भगवान् महावीर का वर्षावास १५/५३-५६ प्रमाण योजन १४ / ९० प्रवृत्ति और निवृत्ति १५ /६५-६६
प्राण-शक्ति का आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक महत्त्व १५ / ६५-६६ प्राण-शक्ति की विद्युत् का चमत्कार १५ / ६५-६६
प्रियधर्मा- दृढधर्मा १२/१९
बंध स्थिति १३ / १४७
ब्राह्मण १५/१५
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भावितात्मा अनगार १४ / १२३-१२५
भावितात्मा अनगार की बहुविध विक्रिया १३/१४९-१६६ भावितात्मा अनगार के असुरकुमार के आयुष्य का बंध कैसे ?
१४/२
भाषा का स्वरूप १३ / १२४
म
मन का स्वरूप १३ / १२६
मरण एवं उसके प्रकार १३/१३०-१४५
महानिमित्त १५/४
महावीर और गौतम के वार्तालाप १४ /७८-७९
महावीर और गोशालक का तुलनात्मक जीवन-दर्शन १५/७७ मुनि की शल्य क्रिया १६/४८-४९
मेंढियग्राम के प्रसंग में रायगिह का उल्लेख १५/१६०
र
रत्नप्रभा पृथ्वी में कापोत लेश्या १३/३ रत्नप्रभा में विद्यमान नारक जीव १३/५ रहसिरेण और नोल्लावेइ १५/१७९ राहू और चन्द्रमा १२ / १२३ राहू के दो भेद १२ / १२४
लवसप्तम देव १४ / ८४-८८ लेश्या १३/३३
ल
भ
भक्त-प्रत्याख्यान ( अनशन) १४ / ८२-८३
भगवान् महावीर का महत्त्वपूर्ण जीवन- प्रसंग १५/१४१ भगवान् महावीर का विहार, वर्षावास आदि का काल-क्रम के साथ पूर्ण विवरण १५/१४१
वायुकाय १६/१-४
विक्रिया १४ / ६८-६९
भगवान् महावीर को विजय गृहपति द्वारा प्रदत्त दान १५/२२-२६ भगवान् महावीर तथा गोशालक (उपलब्ध काल-विषयक सामग्री एवं महत्त्वपूर्ण जीवन प्रसंग ) १५ / १४१
विग्रह गति १४ / ३
भगवान् महावीर द्वारा सत्योद्घाटन एवं गोशालक द्वारा तेजोलेश्या वृक्ष का पुनर्भव १४ / १०१-१०६
का घातक प्रयोग १५/१०५-११९
भवसिद्धिक १२ / ४९-५२
भव्य द्रव्य देव की उत्पत्ति १२/१६९-१७७
भगवई
लेश्यानुसारी उपपात १४/१,२
लोक के चरमान्तों में जीव अजीव की वक्तव्यता १६ / ११०-११५
लोक में समस्त जीवों का जन्म-मृत्यु पद १२/१३०-१३२
लोक स्वरूप १३/८८-९१
लोकोपचार विनय १४/२९-३९
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व
वर्षा के दो कारण १४/२१-२४
वस्तु में सदृशता और विसदृशता का गुण धर्म १४/८०-८१ वाणमंतर देवों के आवास १३ / २९
वैरानुबंध के कारण सम्यग्दृष्टि से विरहित १३ / ११०-१२१
श
शक्र का अवग्रह- अनुज्ञापन पद १६ / ३३-३४
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