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________________ भगवई ४१३ परिशिष्ट-३ : भाष्य-विषयानुक्रम गर्भ में वर्णादि १२/११९ द्रव्य, दाता और प्रतिग्राहक की शुद्धि १५/२२-२६ गोशालक का जीवन वृत्त १५/१४२ द्रव्यलेश्या एवं भावलेश्या १२/११७ गौतम स्वामी १४/७७ द्विशरीरी १२/१५४-१५८ द्वयणुक स्कंध के अवगाह का नियम १३/७९.८३ चतुःस्पर्शी १२/११७ चारों गति के जीवों के अनुश्रव १४/६१-६७ धर्मदव का संस्थान काल १२/१९१ चार गतियों के विभाग का हेतु-कर्म १२/१२० धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय का अमूर्त्तत्व १३/ चेतना की अवस्थाएं १२/१०८-१११ ८६-८७ चैतन्य-अचैतन्य कृत कर्म १६/४१-४२ धर्मास्तिकाय के प्रदेश एवं षड्द्रव्य के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श चौबीस वर्ष पर्याय वाला मंखलिपुत्र गोशाल १५/२ १३/६१-६२ न छह दिशाचर और गोमायुपुत्र १५/३ नरक में अग्निकाय १४/५४-५५ नरक में उपपत्ति के नियम १३/३ जागरिका एवं उसके प्रकार १२/२०-२१ नरक में तीन लेश्याएं १३/१८-२२ जीव और पुद्गल १२/१०२-१०७ नरक में तेजस्काय १३/४४,४६ जीव की अवस्थाएं १२/१०२-१०७ नरक में पृथ्वी, अप आदि कायों का स्पर्श १३/४४ जीव के नाना रूपों में संसार में भ्रमण १२/१३३-१५२ नरक में पृथ्वी आदि छह काय १३/४६ जीवास्तिकाय के प्रदेश एवं षड्द्रव्य के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श | नरकावास १३/४३ १३/६४-६५ नरकावासों की मोटाई आदि १३/४५ जीवों के जरा-शोक पद १६/२८-३१ निर्जरा के तारतम्य का हेतु १६/५१-५२ जंभक देव एवं उनके प्रकार १४/११७-१२१ नैरयिक का अनंतर उपन्नक आदि १४/४-५ नैरयिक का अनंतर खेद उपन्नक आदि १४/१४ तमस्काय का निर्माण १४/२५-२७ नैरयिक का अनंतर निर्गत आदि १४/९-१३ तीन गमक १३/६ नैरयिक का आहार आदि १४/७१,७२-७३ तेजोलेश्या १५/६५-६६ नैरयिक के आयुष्य का बंध १४/६-८,९.१३ नैरयिक के आहार एवं शरीर १३/४० दया १५/६५-६६ नैरयिक के वीचि द्रव्यों एवं अवीचि द्रव्यों का आहार १४/७२. दिव्य सर्प का दरसाव १२/१५४-१५८ ७३ दिशा १३/४७-५५ नैरयिकों की गति १४/३ दिशाचर १५/७७ दुर्बलता, बलवत्ता, आलस्य, दक्षता १२/५५-५८ पंचविध देवों का अन्तर काल १२/१९२-१९६ देवायुष्य का बंध १५/२२-२६ पंचविध देवों का उद्वर्तन १२/१८५-१९० देवों का असंज्ञी के रूप में उद्वर्तन १३/२७ पंचविध देवों की विक्रिया १२/१८३-१८४ देवों की सहस्रभाषा १४/१३०-१३१ पंचविध देवों की स्थिति १२/१७८-१८२ देवों के पांच प्रकार १२/१६३-१६८ पंचास्तिकाय १३/५५-६० देवों द्वारा नाट्य विधि १६/६१-६३ पंचास्तिकाय की सत्ता में होने वाली प्रवृत्तियां १३/५५-६० देवों में कषाय की विद्यमानता १३/२७ पउट्ट परिहार १५/६५-६६ देवों में लेश्याएं १३/३१ परमाणु-पुद्गल का चरम-अचरम रूप १४/५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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