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________________ परिशिष्ट-३ भाष्य-विषयानुक्रम आर्य १४/१३६ अग्निकाय १६/५ आसंयति और संयति १३/९८ अग्निकाय का अतिक्रमण १४/५४-५५,५६-५७,५८-६० अद्धासमय (व्यावहारिक काल) १३/७१ अधःसप्तमी में तीन ज्ञान १३/१३ इन्द्रिय लोलुपता से कर्मबन्धन १२/५९-६३ अधर्मास्तिकाय के प्रदेश एवं षड्द्रव्य के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श १३/६१-६२ ईषत् प्राग्भारा १४-१०० अधिकरणी-अधिकरण पद १६/८-१६ अनुकंपा १५/६५-६६ उत्तर विक्रिया में बाहरी पुद्गलों का ग्रहण १६/५४-५५ अनुत्तर विमान १३/३५ उद्रायण के दो महारानियां १३/१०० अनुत्तरोपपातिक देव १४/८४-८८ उद्रायण के मानसिक द्वन्द्व और उत्तराधिकारी की नियुक्ति १३/ अम्मड परिव्राजक की चर्या १४/१०७-११२ १००-१२१ अर्हत्, निग्रंथ और वैशालिक १२/३० उद्वर्तना १३/४,६ अवकाशान्तर एवं तनुवात में वर्ण की पृच्छा १२/११२-११३ उन्माद के प्रकार १४/१६-२० अव्याबाध देव की दिव्य शक्ति १४/११३-११६ उपपद्यमान ही उत्पन्न होना १२/१५९-१६१ अष्टविध आत्मा का अल्प-बहुत्व १२/२०५ औ अष्टांग निमित्त १५/७७ औत्पत्तिकी बुद्धि एवं पारिणामिकी बुद्धि १२/१०८-१११ असुरकुमार देवों के आवास १३/२६ औदारिक पुद्गल परिवर्त १२/९७ अस्तिकायों की परस्पर स्पर्शना १३/७२-७३ आ | कर्म परिवर्तन १२/२२-२५ आकाशास्तिकाय के प्रदेश एवं षड्द्रव्य के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श | कवोय-सरीर, मज्जारकडए और कुक्कुडमंसए १५/१५२-१५५ १३/६३ काय (शरीर) का स्वरूप १३/१२८ आठ आत्माओं की उपलब्धि और अनुपलब्धि १२/२०१-२०४। कुंडलिनी जागरण के मार्ग १५/६५-६६ आठ-चरम १५/१२१ कुंडलिनी : स्वरूप और जागरण १५/६५-६६ आत्मा : ज्ञान और दर्शन १२/२०६-२१० केवली १४/१३८-१५४ आत्मा और शरीर १३/१२८ क्रिया पद १६/६-७ आत्मा के आठ प्रकार १२/२०० आप्त १४/१२६-१२९ गंध पुद्गल १६/१०६ आभामंडल एवं कर्मलेश्या १४/१२३-१२५ गति का सिद्धांत १३/५५-६० आयुष्य बंध का सिद्धांत १४/१ गति के नियम १६/११८-११९ क www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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