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भगवई
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श. १२ : उ. २ : सू. ४३-४८ ४३. कहण्णं भंते ! जीवा संसारं आउली- कथं भदन्त ! जीवाः संसारम् आकुली ४३. भंते ! जीव संसार को अपरिमित कैसे करेंति ? कुर्वन्ति?
करते हैं? जयंती ! पाणाइवाएणं जाव मिच्छा- जयन्ति! प्राणातिपातेन यावत् जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनदसणसल्लेणं-एवं खलु जयंती! मिथ्यादर्शनशल्येन-एवं खलु जयन्ति ! शल्य के द्वारा जीव संसार को अपरिमित जीवा संसारं आउलीकरेंति॥ जीवाः संसारम् आकुलीकुर्वन्ति।
करते हैं।
४४. कहण्णं भंते ! जीवा संसारं परित्ती-
करेंति ?
जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं-एवं खलु जयंती ! जीवा संसारं परित्तीकरेंति॥
कथं भदन्त! जीवाः संसारं परीतीकुर्वन्ति? जयन्ति ! प्राणातिपातविरमणेन यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविरमणेन-एवं खलु जयन्ति ! जीवाः संसारं परीतीकुर्वन्ति।
४४. भंते ! जीव संसार को परिमित कैसे
करते हैं? जयंती! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विरमण से जीव संसार को परिमित करते हैं।
४५. कहण्णं भंते ! जीवा संसारं दीही- कथं भदन्त! जीवाः संसारं ४५. भंते ! जीव संसार को दीर्घकालिक कैसे करेंति ? दी/कुर्वन्ति?
करते हैं? जयंती ! पाणाइवाएणं जाव मिच्छा- जयन्ति ! प्राणातिपातेन यावत् जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनदसणसल्लेणं-एवं खलु जयंती! मिथ्यादर्शनशल्येन-एवं खलु जयन्ति ! शल्य के द्वारा जीव संसार को दीर्घजीवा संसारं दीहीकरेंति॥ जीवाः संसारं दीर्थीकुर्वन्ति।
कालिक करते हैं।
४६. कहण्णं भंते ! जीवा संसारं हस्सी- कथं भदन्त ! जीवाः संसारं ह्रस्वी- करेंति ?
कुर्वन्ति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं जाव। जयन्ति ! प्राणातिपातविरमणेन यावत् मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं-एवं खल मिथ्यादर्शनशल्येन-एवं खलु जयन्ति ! जयंती ! जीवा संसारं हस्सीकरेंति॥ जीवाः संसारं ह्रस्वीकुर्वन्ति।
४६. भंते ! जीव संसार को अल्पकालिक कैसे
करते हैं? जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विरमण के द्वारा जीव संसार को अल्पकालिक करते हैं।
४७. कहणं भंते ! जीवा संसारं अणुपरि- कथं भदन्त ! जीवाः संसारम् यति ?
अनुपरिवर्तन्ते? जयंती! पाणाइवाएणं जाव मिच्छा- जयन्ति! प्राणातिपातेन यावत् दसणसल्लेणं-एवं खलु जयंती ! मिथ्यादर्शनशल्येन-एवं खलु जयन्ति ! जीवा संसारं अणुपरियट्टति॥ जीवाः संसारम् अनुपरिवर्तन्ते।
४७. भंते ! जीव संसार में अनुपरिवर्तन कैसे
करते हैं? जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य के द्वारा जीव संसार में अनुपरिवर्तन करते हैं।
१८. कहण्णं भंते ! जीवा संसारं वीति- कथं भदन्त ! जीवाः संसारं ४८. भंते ! जीव संसार का व्यतिक्रमण कैसे वयंति ? व्यतिव्रजन्ति?
करते हैं? जयंती ! पाणाइवायवेरमणेणं जाव जयन्ति ! प्राणातिपातविरमणेन यावत्
जयंती ! प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनमिच्छादसणसल्लवेरमणेणं - एवं मिथ्यादर्शनशल्यविरमणेन-एवं खलु
शल्य विरमण से जीव संसार का जयंती ! जीवा ससारं वीतिवयंति॥ जयन्ति ! जीवाः संसारं व्यतिव्रजन्ति।
व्यतिक्रमण करते हैं।
भाष्य
१.सूत्र ४१-४८
जयंती ने भगवान् महावीर से उन्नीस प्रश्न पूछे। भगवान् महावीर ने उनके उत्तर दिए। संक्षिप्त प्रश्न और संक्षिप्त उत्तर। किसी श्रमणोपासिका द्वारा पूछे गए प्रश्नों की यह एक लंबी तालिका है।
प्रथम आठ प्रश्न गौतम स्वामी के द्वारा पूछे गए। जयंती द्वारा
भी ये ही प्रश्न पूछे गए। यह आश्चर्य की बात है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि उस समय ये प्रश्न बहुत चर्चित रहे हों।
इन प्रश्नों की जानकारी के लिए देखें-भगवई १/३८४-३६१ का भाष्य।
१. भ. १/३८४-३६१
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