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________________ एगादसमो उद्देसो : ग्यारहवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद दीवकुमारादि-पदं द्वीपकुमारादि-पदम् द्वीपकुमार आदि पद १२५. दीवकुमारा णं भंते! सब्वे द्वीपकुमाराः भदन्त! सर्वे समाहाराः? १२५. भंते! क्या सब द्वीपकुमार समान आहार समाहारा? सव्वे समुस्सासनिस्सासा? . सर्वे समोच्छ्रासनिःश्वासाः? वाले हैं? समान उच्छ्वास निःश्वास वाले हैं? नो इणढे समढे। एवं जहा पढमसए नो एषः अर्थः समर्थः। एवं यथा । यह अर्थ संगत नहीं है। इस प्रकार जैसे प्रथम वितियउद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्वया प्रथमशते द्वितीयोद्देशके द्वीपकुमाराणां शतक के द्वितीय उद्देशक (भगवई १/७४तहेब जाव समाउया, समुस्सास-निस्स- वक्तव्यता तथैव यावत् समायुषः ७५) में द्वीपकुमारों की वक्तव्यता, उसी सा॥ समोच्छ्रासनिःश्वासाः। प्रकार यावत् समान आयुष्य और समान उच्छ्वास निःश्वास वाले नहीं है। १२६. दीवकुमाराणं भंते! कति लेस्साओ द्वीपकुमाराणां भदन्त! कतिलेश्याः १२६. भंते! द्वीपकुमारों में कितनी लेश्याएं पण्णत्ताओ? प्रज्ञप्ताः? प्रज्ञप्त हैं? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ, गौतम! चतस्रः लेश्याः प्रज्ञप्ताः, गौतम! चार लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं, जैसेतं जहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, तद्यथा-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, काउलेस्सा, तेउलेस्सा॥ कापोतलेश्या, तेजोलेश्या। तेजोलेश्या। १२७. एएसि णं भंते! दीवकुमाराणं कण्ह एतेषां भदन्त! द्वीपकुमाराणां १२७. भंते! कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या लेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कृष्णलेश्यानां यावत् तेजोलेश्यानां कतरे वाले इन द्वीपकुमारों में कौन किससे अल्प, कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा? तुल्ला कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? वा ? विसेसाहिया वा? तुल्याः वा? विशेषाधिकाः वा? गोयमा! सव्वत्थोवा दीवकुमारा गौतम! सर्वस्तोकाः द्वीपकुमाराः गौतम! तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सबसे तेउलेस्सा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, तेजोलेश्याः, कापोतलेश्याः असंख्येय- अल्प हैं। कापोतलेश्या वाले उनसे असंख्येय नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा गुणाः, नीललेश्याः विशेषाधिकाः, गुण हैं। नीललेश्या वाले उनसे विशेषाधिक विसेसाहिया॥ कृष्णलेश्याः विशेषाधिकाः। हैं। कृष्णलेश्या वाले उनसे विशेषाधिक हैं। १२८. एएसि णं भंते! दीवकुमाराणं एतेषां भदन्त! दीपकुमाराणां कृष्ण- १२८. भंते! कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे लेश्यानां यावत् तेजोलेश्यानां च कतरे वाले इन द्वीपकुमारों में कौन किससे कयरेहितो अप्पिहिया वा? महिड्डिया कतरेभ्यः अल्पर्द्धिकाः वा? महर्द्धिकाः अल्पर्द्धिक अथवा महर्द्धिक हैं? वा? वा? गोयमा! कण्हलेस्साहितो नीललेस्सा गौतम! कृष्णलेश्येभ्यः नीललेश्याः । गौतम! नीललेश्या वाले कृष्णलेश्या वालों से महिड्डिया जाव सब्वमहिड्डिया महर्द्धिकाः यावत् सर्वमहर्द्धिकाः महर्द्धिक हैं यावत् तेजोलेश्या वाले सबसे तेउलेस्सा॥ तेजोलेश्याः। महर्द्धिक हैं। १२६. सेवं भंते ! सेवं भंते! जाव विहरइ॥ तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! यावत् विहरति। १२६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे। - For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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