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________________ मूल बलिस्स सभा - पदं १२१. कहिणं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सभा सुहम्मा पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तिरियमसंखेज्जे जहेब चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिंदे नामं उप्पायपव्वए पण्णत्ते । सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए - एवं पमाणं जहेब तिगिच्छिकूडस्स पासायवडेंसगस्स वितं चैव पमाणं, सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं, अट्ठो तहेव, नवरं - रुयगिंदप्पभाई- रुयगिंदप्पभाई- रुयगिंदप्पभाई। सेसं तं चैव जाव बलिचंचाए रायहाणीए अण्णेसिं च जाव रुयगिंदस्स णं उपायपव्वयस्स उत्तरे णं छक्कोडिसए तहेव जाव चत्तालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं बलिस्स वइरोयजिंदस्स वइरोयणरण्णो बलिचंचा नामं रायहाणी पण्णत्ता । एगं जोयणसयसहस्सं पमाणं, तहेव जाव बलिपेटस्स उववाओ जाव आयरक्खा सव्वं तब निरवसेसं, नवरं - सातिरेगं सागरोवमं ठिती पण्णत्ता । सेसं तं चैव जाव बली वइरोयणिंदे, बली बइरोयणिंदे ॥ १२२. सेवं भंते! सेवं भंते! जाब बिहरइ ॥ Jain Education International नवमो उद्देसो : नौवां उद्देशक संस्कृत छाया बलिनः सभा-पदम् कुत्र भदन्त ! बलिनः वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य सभा सुधर्मा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे तिर्यग् असंख्येयान् यथैव चमरस्य यावत् द्विचत्वारिंशद् योजनसहस्राणि अवगाह्य, अत्र बलिनः वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य रुचकेन्द्रः नाम उत्पातपर्वतः प्रज्ञप्तः । सप्तदश एकविंशतिः योजनशतानि एवं प्रमाणं यथैव तिगिच्छकूटस्य प्रासादावतंसकस्यापि तत् चैव प्रमाणम्, सिंहासनं सपरिवारं बलिनः परिचारेण, अर्थः तथैव, नवरम् - रुचकेन्द्रप्रभाणिरुचकेन्द्रप्रभाणि रुचकेन्द्रप्रभाणि । शेषं तत् चैव यावत् बलिचञ्चायाः राजधान्याः अन्येषां च यावत् रुचकेन्द्रस्य उत्पातपर्वतस्य उत्तरे षट्कोटिशतं तथैव यावत् चत्वारिंशद् योजनसहस्राणि अवगाह्य, अत्र च बलिनः वैरोचनेन्द्रस्य वेरोचनराजस्य बलिचञ्चा नाम राजधानी प्रज्ञप्ता । एकं योजनशतसहस्रं प्रमाणं तथैव यावत् बलिपीठस्य उपपातः यावत् आत्मरक्षकाः सर्वं तथैव निरवशेषम्, नवरम् - सातिरेकं सागरोपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता। शेषं तत् चैव यावत् बली वैरोचनेन्द्रः, बली वैरोचनेन्द्रः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! यावत् विहरति । For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद बलि का सभा-पद १२१. भंते! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की सभा कहां प्रज्ञप्त है? गौतम ! जंबूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत से उत्तर भाग में तिरछे असंख्य द्वीप समुद्र चमर की भांति यावत् बयालीस हजार योजन अवगाहन करने पर वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि का रुचकेन्द्र नाम का उत्पात पर्वत प्रज्ञप्त हैउसकी ऊंचाई सतरह सौ इक्कीस योजन प्रज्ञप्त है। प्रमाण तिगिच्छकूट प्रसादावतंसक की भांति वक्तव्य है। बलि का सिंहासन उसके परिवार के सिंहासनों सहित वक्तव्य है । इतना विशेष है - वे रुचकेन्द्र प्रभा वाले हैं, रुचकेन्द्र प्रभा वाले हैं, रुचकेन्द्र प्रभा वाले हैं। शेष पूर्ववत् यावत् बलिचंचा राजधानी में दूसरों पर यावत् उस रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत के उत्तर से छह सौ करोड़ उसी प्रकार यावत् चालीस हजार योजन अवगाहन करने पर वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज की बलिचंचा नामक राजधानी प्रज्ञप्त है- एक लाख योजन प्रमाण, उसी प्रकार यावत् बलिपीठ का उपपात यावत् सर्व आत्मरक्षक देव निरवशेष वक्तव्य हैं, इतना विशेष है- स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक प्रज्ञप्त है। शेष पूर्ववत् यावत् वैरोचनेन्द्र बलि वैरोचनेन्द्र बलि । १२२. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । यावत् विहरण करने लगे। www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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