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भगवई
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३४. तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए ततः सा मृगावती देवी जयन्त्या
समणोवासियाए एवं वुत्ता समाणी श्रमणोपासिकया एवम् उक्ता सती हतुट्ठचित्तमाणंदिया णंदिया पीइ- हृष्टतुष्टचित्ता आनन्दिता नन्दिता मणा परमसोमणस्सिया हरिसवस- प्रीतिमना परमसौमनस्यिता हर्षवशविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं विसर्पहृदया करतलपरिगृहीतं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट दशनखं शिरसावर्त मस्तके अञ्जलिं जयंतीए समणोवासियाए एयमह । कृत्वा जयन्त्याः श्रमणोपासिकायाः विणएणं पडिसुणेइ॥
एतमर्थं विनयेन प्रतिशृणोति।
श. १२ : उ. २ : सू. ३४-३६ ३४. श्रमणोपासिका जयंती के इस प्रकार कहने
पर वह मृगावती देवी हृष्ट-तुष्ट चित्तवाली, आनंदित, नंदित, प्रीतिपूर्ण मनवाली परम सौमनस्य युक्त और हर्ष से विकस्वर हृदय वाली हो गयी। दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकारवाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर श्रमणोपासिका जयंती के इस अर्थ को विनय पूर्वक स्वीकार किया।
३५. तए णं सा मिगावती देवी कोडुबिय- ततः सा मृगावती देवी कौटुम्बिक-
पुरिसे सदावेइ, सदावेत्ता एवं वयासी पुरुषान शब्दयति, शब्दयित्वा खिप्पामेव भो देवाणुपिया ! लहु- एवमवादीत्-क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! करणजुत्तजोइय जाव धम्मियं लघुकरणयुक्तयौगिक यावत् धार्मिक जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवेत्ता यानप्रवरं युक्तमेव उपस्थापयत मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह॥ उपस्थाप्य मां एतामाज्ञप्तिकां
प्रत्यर्पयत।
३५. मृगावती देवी ने कौटुम्बिक पुरुषों को
बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहादेवानुप्रियो ! शीघ्र गति-क्रिया की दक्षता से युक्त यावत् धार्मिक यानप्रवर को तैयार कर शीघ्र उपस्थित करो। उपस्थित कर मेरी इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो।
३६.तए णं ते कोडुंबियपुरिसा मिगावतीए
देवीए एवं वुत्ता समाणा धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति॥
ततः ते कौटुम्बिकपुरुषाः मृगावत्या देव्या एवम् उक्ताः सन्तः धार्मिकं यानप्रवरं युक्तमेव उपस्थापयन्ति, उपस्थाप्य ताम् आज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयन्ति।
३६. मृगावती देवी के इस प्रकार कहने पर उन
कौटुम्बिक पुरुषों ने धार्मिक यान प्रवर को शीघ्र उपस्थित कर उस आज्ञा को प्रत्यर्पित किया।
३७. तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए ततः सा मृगावती देवी जयन्त्या
समणोवासियाए सद्धिं बहाया श्रमणोपासिकया सार्धं स्नाता कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्या- कृतबलिकर्मा यावत् अल्पमहााभरणालंकिय-सरीरा बाहिं खुजाहिं भरणालंकृतशरीरा बहुभिः 'खुज्जाहिं' जाव चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-थेर- यावत् चेटिकाचक्रवाल-वर्षधरकंचुइज्ज - महत्तरगवंद - परिक्खित्ता । स्थविर-कञ्चुकीय-महत्तरकवृन्दअंतेउराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता परिक्षिप्ता अन्तः पुरात् निर्गच्छति, जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला जेणेव निर्गत्य यत्रैव बाहिरिका उपस्थानशाला धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, यत्रैव धार्मिकः यानप्रवरः तत्रैव उवागच्छित्ता धम्मिए जाणप्पवरं उपागच्छति, उपागम्य धार्मिकं यानप्रवरं दुरूढा॥
'दुरूढ़ा।
३७. मृगावती देवी ने श्रमणोपासिका जयंती के
साथ स्नान किया, बलिकर्म किया यावत् अल्पभार बहुमूल्य वाले आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। बहुत कुब्जा यावत् चेटिका समूह, वर्षधर (कृतनपुंसक पुरुष) स्थविर कंचुकी जनों और महत्तरक गण के वृंद से घिरी हुई अंतःपुर से निकली। निकलकर जहां बाहरी उपस्थान शाला है, जहां धार्मिक यानप्रवर है, वहां आई। वहां आकर धार्मिक यानप्रवर पर आरूढ़ हो गई।
३८. तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए ततः सा मृगादेवी देवी जयन्त्या
समणोवासियाए सद्धिं धम्मियं श्रमणोपासिकया सार्धं धार्मिकं यानप्रवरं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी 'दुरूढ़ा' सती निजकपरिवारसंपरिव्रता नियगपरियालसंपरिबुडा जहा यथा ऋषभदत्तः यावत् धार्मिकात् उसभदत्तो जाव धम्मियाओ यानप्रवरात् प्रत्यारोहति। जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ॥
३८. वह मृगावती देवी श्रमणोपासिका जयंती के
साथ धार्मिक यानप्रवर पर आरूढ़ होकर अपने परिवार से परिवृत होकर ऋषभदत्त की भांति वक्तव्यता (भ.६/१४५) यावत् धार्मिक यानप्रवर से नीचे उतरी।
३६. तए णं सा मिगावती देवी जयंतीए
ततः सा मृगावती देवी जयन्त्या ३६. वह मृगावती देवी श्रमणोपासिका जयंती के
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