________________
भगवई
३८७
श. १६ : उ. ८ : सू. ११५
सेसं तहेव। एवं जहा गेवेज्जविमाणा तहा अणुत्तरविमाणा वि, ईसिंपन्भारा वि॥
उपरितन-अधस्तनेषु चरमान्तेषु देशेषु पञ्चेद्रियाणाम् अपि मध्यमविरहितः चैव, शेषं तथैव। एवं यथा ग्रैवेयकविमानानि तथा अनुत्तरविमानानि अपि, ईषत्प्राग्भारा अपि।
सौधर्म यावत् अच्युत की वक्तव्यता। ग्रैवेयक विमानों की पूर्ववत् वक्तव्यता, इतना विशेष है-ऊर्ध्व एवं अधोवर्ती चरमान्तों में पंचेन्द्रियों के देशों में मध्यम विकल्प विरहित। शेष पूर्ववत्। ग्रैवेयक विमानों की भांति अनुत्तर विमान और ईषत् प्रागभारा की वक्तव्यता।
जीव है
नहीं
totoo
भाष्य सूत्र ११०-११५
२. अनेक एकेन्द्रिय व अनेक अनिन्द्रिय के अनेक देश, एक द्रष्टव्य भगवई १०/१-७ का भाष्य।
द्वीन्द्रिय का एक देश। लोक के छह चरमान्त हैं
३. अनेक एकेन्द्रिय व अनेक अनिन्द्रिय के अनेक देश, अनेक पूर्व चरमान्त, दक्षिण चस्मान्त, पश्चिम चरमान्त, उत्तर चरमान्त, द्वीन्द्रिय के अनेक देश। ऊर्ध्व चरमान्त, अधः चरमान्त।
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के विकल्प ज्ञातव्य - इन छह चरमान्तों में जीव और अजीव की अवस्थिति के नियमों हैं। का निरूपण किया गया है
अनेक एकेन्द्रिय व अनेक अनिन्द्रिय के अनेक प्रदेश। पूर्व चरमान्त अवस्थिति
अनेक एकेन्द्रिय व अनेक अनिन्द्रिय के अनेक प्रदेश, एक
द्वीन्द्रिय के अनेक प्रदेश। जीव देश है
अनेक एकेन्द्रिय व अनेक अनिन्द्रिय के अनेक प्रदेश, अनेक जीव प्रदेश है
द्वीन्द्रिय के अनेक प्रदेश। अजीव है
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के विकल्प ज्ञातव्य अजीव देश है अजीव प्रदेश है
अधश्चरमान्त १. अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश है।
अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश २. अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक द्वीन्द्रिय का एक देश है। अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक द्वीन्द्रिय का एक देश। ३. अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक द्वीन्द्रिय के अनेक देश अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, अनेक द्वीन्द्रिय के अनेक देश।
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय व अनिन्द्रिय की ४.अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश,अनेक द्वीन्द्रिय के अनेक देश वक्तव्यता।
अनेक एकेन्द्रिय के अनेक प्रदेश इसी तरह त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय की वक्तव्यता।
अनेक एकेन्द्रिय के अनेक प्रदेश, एक द्वीन्द्रिय के अनेक प्रदेश। अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक अनिन्द्रिय का एक देश अनेक एकेन्द्रिय के अनेक प्रदेश, अनेक द्वीन्द्रिय के अनेक प्रदेश। नहीं।
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय व अनिन्द्रिय की अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक अनिन्द्रिय के अनेक देश। वक्तव्यता।
इसी प्रकार दक्षिण चरमान्त, पश्चिम चरमान्त, उत्तर चरमान्त रत्नप्रभा पृथ्वी की वक्तव्यता
पूर्व चरमान्त अनेक एकेन्द्रिय के अनेक प्रदेश है।
जीव नहीं हैं अनेक एकेन्द्रिय के अनेक प्रदेश, एक द्वीन्द्रिय के अनेक प्रदेश जीव देश हैं
जीव प्रदेश हैं अनेक एकेन्द्रिय के अनेक प्रदेश, अनेक द्वीन्द्रिय के अनेक प्रदेश अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश
अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक द्वीन्द्रिय का एक देश। इसी तरह त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय व अनिन्द्रिय की अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, एक द्वीन्द्रिय के अनेक देश। वक्तव्यता।
अनेक एकेन्द्रिय के अनेक देश, अनेक द्वीन्द्रिय के अनेक देश। उपरि चरमान्त
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय व अनिन्द्रिय की १. अनेक एकेन्द्रिय व अनेक अनिन्द्रिय के अनेक देश।
वक्तव्यता।
श्री
the
the
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org