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________________ अट्ठमो उद्देसो : आठवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद लोक के चरमान्त में जीव-अजीव आदि का मार्गणा पद ११०. भंते! लोक कितना बड़ा प्रज्ञप्त है? लोगस्स चरिमंते जीवाजीवादिमग्गणा- लोकस्य चरमान्ते जीवाजीवादि-मार्गणा पदम ११०. केमहालए णं भंते! लोए कियन्महन् भदन्त! लोकः प्रज्ञप्तः? पण्णते? गोयमा! महतिमहालए लोए पण्णत्ते, गौतम! महन्महान् लोकः प्रज्ञप्तः, यथा जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ। द्वादशमशते तथैव असंख्येयाः योजनजोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं॥ कोटाकोट्यः परिक्षेपण। गौतम! लोक विशालतम प्रज्ञप्त है, जैसे बारहवें शतक में वैसे ही यावत परिधि में असंख्येय योजन कोड़ाकोड प्रमाण है। १११. लोयस्स णं भंते ! पुरथिमिल्ले लोकस्य भदन्त! पौरस्त्ये चरमान्ते किं १११. भंते! लोक के पूर्व चरमान्त में क्या जीव चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीव- जीवाः, जीवदेशाः, जीवप्रदेशाः हैं? जीव-देश हैं? जीव-प्रदेश हैं? अजीव पदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीव- अजीवाः, अजीवदेशाः, अजीव- हैं? अजीव-देश हैं? अजीव-प्रदेश हैं? पदेसा? प्रदेशाः? गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीव- गौतम! नो जीवाः, जीवदेशाः अपि, गौतम! जीव नहीं हैं। जीव के देश भी हैं, पदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, जीव-प्रदेशाः अपि, अजीवाः अपि, जीव के प्रदेश भी हैं। अजीव भी हैं, अजीव अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं अजीवदेशाः अपि, अजीवप्रदेशाः । के देश भी हैं, अजीव के प्रदेश भी हैं। जो एगिदियदेसा य, अहवा एगिदियदेसा य अपि। ये जीवदेशाः ते नियमम् जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय के देश बेइंदियस्स य देसे-एवं जहा दसमसए एकेन्द्रियदेशाः च, अथवा एकेन्द्रियदेशाः हैं अथवा एकेन्द्रिय के देश और द्वीन्द्रिय का अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं-देसेसु च द्वीन्द्रियस्य च देश:-एवं यथा देश है-इस प्रकार दसवें शतक में आग्नेयी अणिंदियाण आइल्लविरहिओ। जे दशमशते आग्नेयी दिशा तथैव, दिशा की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष अरूवी अजीवा ते छब्बिहा, अद्धासमयो नवरम्-देशेषु अनिन्द्रियाणाम् आदिम- है-देशों में प्रथम विकल्प विरहित अनिन्द्रियों नत्थि। सेसं तं चेव निरवसेसं॥ विरहितः। ये अरूपिणः अजीवाः ते की वक्तव्यता। जो अरूपी अजीव हैं, उनके षड्विधाः, अध्वासमयः नास्ति। शेष छह प्रकार हैं। अध्वा समय नहीं है। शेष तत् चैव निरवशेषम्। पूर्ववत् निरवेशष वक्तव्य है। ११२. लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले लोकस्य भदन्त! दाक्षिणात्ये चरमान्ते चरिमंते किं जीवा ? किं जीवाः? एवं चेव। एवं पञ्चथिमिल्ले वि, एवं चैव। एवं पाश्चात्ये अपि, औदीच्ये उत्तरिल्ले वि॥ अपि। ११२. भंते! लोक के दक्षिण चरमान्त में क्या जीव हैं? पूर्ववत्। इसी प्रकार पश्चिम चरमान्त, इसी प्रकार उत्तर चरमान्त की वक्तव्यता। ११३. लोगस्स णं भंते ! उवरिल्ले चरिमंते लोकस्य भदन्त ! उपरितने चरमान्ते किं किं जीवा-पुच्छा। जीवाः? पृच्छा। गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव गौतम! नो जीवाः, जीवदेशाः अपि अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं यावत् अजीवप्रदेशाः अपि। ये जीवएगिदियदेसा य अणिंदियदेसा य, अहवा देशाः ते नियमम् एकेन्द्रियदेशाः, च एगिदियदेसा य अणिदियदेसा य अनिन्द्रियदेशाः च अथवा एकेन्द्रिय ११३. भंते! लोक के उर्ध्व चरमान्त में क्या जीव हैं-पृच्छा। गौतम! जीव नहीं हैं। जीव के देश भी हैं यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं। जो जीव के देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय के देश हैं और अनिन्द्रिय के देश हैं। अथवा एकेन्द्रिय के देश For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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