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________________ भगवई ३८३ श. १६ : उ.६ : सू. १०७ भाष्य सूत्र १०६ उदघाट्यमान। प्रस्तुत सूत्र में सुगंधित द्रव्यों के पुटों का वर्णन किया गया है। निन्भिज्जमाण-नीचे की ओर से दीर्यमान।' रायपसेणइय सूत्र में २१ पुटों का उल्लेख है-कोष्ठ, तगर, इलायची प्रस्तुत सूत्र में एक जिज्ञासा और उसका समाधान मिलता है। चोय, चंपक, दमनक, कुंकुम, चंदन, खस, मरुआ, गंधमालती, कोष्ठपुट आदि सुगंधी द्रव्य एक स्थान पर रखे हुए हैं। विवक्षित पुरुष यूथिका, बेला, स्नान-मल्लिका, केतकी, पाढल, नेवारी, अगर, लौंग, कुछ दूरी पर है। अनुकूल हवा चल रही है और वह दूर बैठा-बैठा सुगंधी वासक, कपूर। द्रव्य की सुरभि ले रहा है। यहां प्रश्न उपस्थित होता हैकोह-यह सुगन्धित द्रव्य है। क्या वह कोष्ठपुट की सुगंधी ले रहा है? कोष्ठपुट दूर है। उसकी केतकी-केवड़ा। द्रष्टव्य जैन आगम वनस्पति कोश। सुगंधी कैसे ले सकता है? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया-वह ___कोष्ठपुट से सुगंधी नहीं ले रहा है। कोष्ठपुट के सुगंधित परमाणु फैल अनुकूल वायु आ रही है', किया है।' मलयगिरि ने अनुवात का अर्थ रहे हैं। वे नाक के पास जा रहे हैं। वह घ्राण सहगत पुद्गलों की सुरभि 'विवक्षित आघ्रायक पुरुष की दिशा में हवा चल रही है', किया है। ले रहा है। उन्भिज्जमाण-प्रबलता से अथवा ऊपर की ओर से दीर्यमान, १०७. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥ तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त! इति। १०७. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही १. भ. वृ. १६/१०६ अनुकूलवातो यत्र देशे सोऽनुवातोऽतस्तत्र यस्माद्देशाद्- वायुरागच्छति तत्रेत्यर्थः। २. रायपसेणइय वृत्ति पत्र ६२ अनुवाते-आघ्रायकविवक्षितपुरुषाणामनुकूलं वाते वाति सति। ३. भ. वृ. ६/१०६ उभिज्जमाणाण व ति प्राबल्येनोद्भवं वा दीर्यमाणानाम्। ४. रायपसेणइय वृत्ति पत्र १२ उद्भिद्यमानानां उदघाट्यमानानाम्। ५. भ. वृ. १६/१०६ : निम्भिज्जमाणानां प्राबल्याभावे नाधो वा दीर्यमाणानाम्। ६. भ. दृ. १६/१०६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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