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________________ छटो उद्देसो : छट्ठा उद्देशक संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद स्वप्न-पद ७६. भंते! स्वप्न-दर्शन कितने प्रकार का प्रज्ञप्त सुविण-पदं स्वप्न-पदम् ७६. कतिविहे णं भंते ! सुविणदंसणे कतिविधं भदन्त! स्वप्नदर्शनं प्रज्ञप्तम्? पण्णत्ते? गोयमा ! पंचविहे सुविणदंसणे पण्णत्ते, तं गौतम! पञ्चविधं स्वप्नदर्शनं प्रज्ञप्तम्, जहा-अहातचे, पताणे, चिंतासुविणे, तद्यथा-यथातथ्यम्, प्रतानम्, चिन्तातन्निवरीए, अव्वत्तदंसणे॥ स्वप्नम्,तविपरीतम्, अव्यक्तदर्शनम्। गौतम! स्वप्न-दर्शन पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-यथातथ्य, प्रतान, चिंता-स्वप्न, तविपरीत, अव्यक्त दर्शन। ७७. सुत्ते णं भंते! सुविणं पासति? सुप्तः भदन्त! स्वप्नं पश्यति? जागरः ७७. भंते! क्या जीव सुप्त अवस्था में स्वप्न जागरे सुविणं पासति ? सुत्तजागरे सुविणं स्वप्नं पश्यति? सुप्तजागरः स्वप्नं देखता है? जागृत अवस्था में स्वप्न देखता पासति? पश्यति? है? सुप्त-जागृत अवस्था में स्वप्न देखता है? गोयमा! नो सुत्ते सुविणं पासति, नो गौतम! नो सुप्तः स्वप्नं पश्यति, नो । गौतम! सुप्त अवस्था में स्वप्न नहीं देखता, जागरे सुविणं पासति, सुत्तजागरे सुविणं जागरः स्वप्नं पश्यति, सुप्तजागरः स्वप्नं । जागृत अवस्था में स्वप्न नहीं देखता, सुप्तपासति॥ पश्यति। जागृत अवस्था में स्वप्न देखता है। ७८. जीवा णं भंते! किं सुत्ता? जा- जीवाः भदन्त! किं सुप्ताः? जागराः? गरा ? सुत्तजागरा? सुप्त-जागराः? गोयमा! जीवा सुत्ता वि, जागरा वि, गौतम! जीवाः सुप्ताः अपि, जागराः सुत्तजागरा वि॥ अपि, सुप्तजागराः अपि। ७८. भंते! क्या जीव सुप्त हैं? जागृत हैं? सुप्त जागृत हैं? गौतम! जीव सुप्त भी हैं, जागृत भी हैं, सुप्तजागृत भी हैं। ७६. नेरइयाण भंते ! किं सुत्ता-पुच्छा। गोयमा! नेरइया मुत्ता, नो जागरा, नो सुत्तजागरा। एवं जाव चरिंदिया॥ नैरयिकाणाम् भदन्त ! किं सुप्ताः- पृच्छा। गौतम! नैरयिकाः सुप्ताः, नो जागराः, नो सुप्तजागराः । एवं यावत् चतुरिन्द्रियाः। ७६. भंते! नैरयिक सुप्त हैं-पृच्छा। गौतम! नैरयिक सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं, सुप्तजागृत नहीं हैं। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता। १०. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः भदन्त! किं ५०. भंते! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या सुप्त हैं? किं सुत्ता-पुच्छा। सुप्ता:-पृच्छा। पृच्छा । गोयमा! सुत्ता, गे जागरा, सुत्तजागरा गौतम! सुप्ताः, नो जागराः, सुप्तजागराः । गौतम ! सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं। सुप्त-जागृत भी वि। मणुस्सा जहा जीवा। वाणमंतर- अपि। मनुष्याः यथा जीवाः । वानमन्तर- हैं। मनुष्य की जीव की भांति वक्तव्यता। जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया॥ ज्योतिष्क-वैमानिकाः यथा नैरयिकाः। वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। ८१. भंते! क्या संवृत स्वप्न देखता है? असंवृत स्वप्न देखता है? संवृतासंवृत स्वप्न देखता ८१. संडे णं भंते! सुविणं पासति? संवृतः भदन्त! स्वप्नं पश्यति? असंवुडे सुविणं पासति ? संवुडासंबुडे असंवृतः स्वप्नं पश्यति? संवृतासंवृतः सुविण पासति? स्वप्नं पश्यति? गोयमा! संबुडे वि सुविणं पासति, गौतम! संवृतः अपि स्वप्नं पश्यति, गौतम! संवृत भी स्वप्न देखता है, असंवृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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