SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद उदयणादीणं धम्मसवण-पदं उदयनादीनां धर्मश्रवण-पदम् उदयन आदि का धर्मश्रवण-पद ३०. तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी। तस्मिन् काले तस्मिन् समये कौशाम्बी ३०. उस काल और उस समय कौशाम्बी नाम नाम नगरी होत्था-वण्णओ। नाम नगरी आसीत्-वर्णकः। चन्द्रा- की नगरी थी-वर्णक। चंद्रावतरण चैत्यचंदोतरणे चेइए-वण्णओ। तत्थ णं वतरणं चैत्यम्-वर्णकः। तत्र कौशाम्ब्यां वर्णक। उस कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स नगर्यां सहस्रानीकस्य राज्ञः पौत्रः, राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, रण्णो पोत्ते, सयाणीयस्स रण्णो पुत्ते, शतानीकस्य राज्ञः पुत्रः, चेटकस्य राज्ञः चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती देवी का चेडगस्स रणो नत्तुए, मिगावतीए । नतृकः, मृगावत्याः देव्याः आत्मजः, आत्मज, श्रमणोपासिका जयन्ती का देवीए अत्तए, जयंतीए समणो- जयन्त्याः श्रमणोपासिकायाः 'भत्तिज्जए' भतीजा उदयन नामक राजा था-वर्णक। वासियाए भत्तिज्जए उदयणे नाम । उदयनः नाम राजा आसीत्-वर्णकः । उस कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा राया होत्था-वण्णओ। तत्थ णं तत्र कौशाम्ब्यां नगर्यां सहस्रानीकस्य की पुत्रवधु, शतानीक राजा की भार्या, कोसंबीए नयरीए सहस्साणीयस्स राज्ञः स्नुषा, शतानीकस्य राज्ञः भार्या, चेटक राजा की पुत्री, उदयन राजा की रण्णो सुण्हा, सयाणीयस्स रण्णो चेटकस्य राज्ञः दुहिता, उदयनस्य राज्ञः माता, श्रमणोपासिका जयन्ती की भाभी भज्जा, चेडगस्स रण्णो धूया, माता, जयन्त्याः श्रमणोपासिकायाः श्रमणोपासिका मृगावती नामक देवी थीउदयणस्स रणो माया, जयंतीए भातृव्या मृगावती नाम देवी आसीत्- सुकुमाल हाथ-पैर वाली, यावत् सुरूपा, समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती सुकुमारपाणिपादा यावत् सुरूपा जीव-अजीव को जानने वाली यावत् नामं देवी होत्था-सुकुमालपाणिपाया । श्रमणोपासिका अभिगतजीवाजीवा यथापरिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को जाव सुरूवा समणोवासिया। यावत् यथापरिगृहीतैः तपःकर्मभिः भावित करती हुई विहार कर रही थी। उस अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरि- आत्मानं भावयन्ती विहरति। तत्र कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की ग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं कौशाम्ब्यां नगर्यां सहस्रानीकस्य राज्ञः पुत्री, शतानीक राजा की बहन, उदयन भावेमाणी विहरइ। तत्थ ण कोसंबीए दुहिता, शतानीकस्य राज्ञः भगिनी, राजा की भुआ, मृगावती देवी की ननद, नगरीए सहस्साणीयस्स रण्णो धूया, उदयनस्य राज्ञः पितृष्वसा, मृगावत्याः वैशालिकश्रावकों-अर्हतों की पूर्व शय्यातर सयाणीयस्स रण्णो भगिणी, उदयणस्स देव्याः ननान्दा, वैशालिकश्रावकाणाम् रहने वाली जयंती नामक श्रमणोपासिका रण्णो पिउच्छा, मिगावतीए देवीए अर्हतां पूर्वशय्यातरी जयन्ती नाम थी-सुकुमाल हाथ पैर वाली यावत् सुरूपा, नणंदा, वेसालियसावयाणं अरहंताणं । श्रमणोपासिका आसीत्-सुकुमाल- जीव-अजीव को जानने वाली यावत् यथापुब्बसेज्जातरी जयंती नाम समणो- पाणिपादा यावत् सुरूपा अभिगत- परिगृहीत तपः कर्म के द्वारा अपने आपको वासिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया जीवाजीवा यावत् यथापरिगृहीतैः भावित करती हुई रह रही थी। जाव सुरूवा अभिगयजीवाजीवा जाव तपःकर्मभिः आत्मानं भावयन्ती अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं विहरति। भावेमाणी विहरइ॥ भाष्य १. सूत्र ३० जयन्ती को पूर्व शय्यातरी कहा गया है। सेज्जातर का अर्थ होता है साधुओं को आवास के लिए स्थान देने वाला। जयंती अर्हतों को स्थान देने वाली थी। मुनि के लिए अर्हत् शब्द का प्रयोग किया गया है। भगवान् महावीर के साधुओं के लिए मुख्यतः निग्रंथ शब्द का प्रयोग होता था। अर्हत् शब्द का प्रयोग भगवान् पार्श्व की शिष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy