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________________ १६ भगवई श. १२ : उ. १ : सू. २८,२६ वेरमण - पच्चक्खाण - पोसहोववासेहिं विरमण-प्रत्याख्यान-पौषधोपवासैः अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं यथापरिगृहीतैः तपःकर्मभिः आत्मानं भावेमाणे बहूई वासाई समणोवासग- भावयन् बहुनि वर्षाणि श्रमणोपासकपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता पर्यायं प्राप्स्यति, प्राप्य मासिक्या मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेहिति, संलेखनया आत्मानं जोषिष्यति, झूसेत्ता सर्हि भत्ताई अणसणाए जोषित्वा षष्टि भक्तानि अनशनेन छेदेहिति, छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंते छेत्स्यति, छित्त्वा आलोचितसमाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा प्रतिक्रान्तः समाधि-प्राप्तः कालमासे सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए। कालं कृत्वा सौधर्मे कल्पे अरुणाभे उववज्जिहिति। तत्थ णं अत्यंगतियाणं विमाने देवत्वेन उपपत्स्यते। तत्र देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती अस्त्येककानां देवानां चत्वारि पण्णत्ता। तत्थ णं संखस्स वि देवस्स पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। तत्र चत्तारि पलिओवमाइंठिती भविस्सति॥ शङ्कस्यापि देवस्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः भविष्यति। प्रत्याख्यान और पौषधोपवास के द्वारा, यथा-परिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्ष तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन करेगा। पालन कर एक महीने की संलेखना के द्वारा अपने शरीर को कृश बनाएगा, कृश बना कर साठ भक्त का छेदन करेगा, छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर, समाधिपूर्ण दशा में कालमास में काल को प्राप्त कर सौधर्म कल्प में अरुणाभ विमान में देवरूप में उपपन्न होगा। वहां कुछ देवों की स्थिति चार पल्योपम प्रज्ञप्त है। वहां शंख देव की स्थिति भी चार पल्योपम होगी। भाष्य १. सूत्र २७ शीलव्रत आदि की जानकारी के लिए द्रष्टव्य भगवई २/१४ का भाष्य। २८. सेणं भंते ! संखे देवे ताओ देवलोगाओ सः भदन्त ! शङ्कः देवः तस्माद् आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं देवलोकाद् आयुःक्षयेण भवक्षयेण अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? स्थितिक्षयेण अनन्तरं च्यवं च्युत्वा कुत्र कहिं उववज्जिहिति ? गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति गौतम! महाविदेहवर्षे सेत्स्यति, बुझिहिति मुचिहिति परिणिव्वाहिति 'बुज्झिहिति' मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सब्वदुक्खाणं अंतं काहिति॥ सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यति। २८. भंते ! वह शंख देव आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनंतर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशांत, मुक्त और परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा। २६.सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावत् विहरति। २६. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। ऐसा कहकर यावत् भगवान् गौतम संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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