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________________ मूल ४५. जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? कम्म- पदं कर्म-पदम् ४४. रायगिहे जाव एवं वयासी- कति णं राजगृहं यावत् एवमवादीत् कति भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? भदन्त ! कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः । गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ, गौतम ! अष्ट कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः, तं जहा - नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं । तद्यथा - ज्ञानावरणीयं यावत् एवं जाव वेमाणियाणं ॥ आन्तरायिकम्, एवं यावत् वैमानिकानाम् । गोयमा ! अट्ट कम्मप्पगडीओ - एवं जहा पण्णवणाए वेदावेउद्देसओ सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो । वेदाबंधो वि तहेव, बंधावेदो वि तहेव, बंधाबंधो वि तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं ति ॥ ४६. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरः ॥ ४७. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदायि रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमड़, पडिनिक्खमित्ता बहिय जणवयविहारं विहरइ ॥ अंसिया छेदणे वेज्जरस किरिया - पदं ४८. तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नाम नगरे होत्था - वण्णओ । तस्स णं उल्लुयतीरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं एगजंबुए नामं चेइए होत्था - वण्णओ । तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदायि Jain Education International तइओ उद्देसो : तीसरा उद्देशक संस्कृत छाया जीवः भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म वेदयन् कति कर्मप्रकृतीः वेदयति ? गौतम ! अष्ट कर्मप्रकृती:- एवं यथा प्रज्ञापनायां वेदावेदोद्देशकः सः चैव निरवशेषः भणितव्यः । वेदाबन्ध अपि तथैव, बन्धावेदः अपि तथैव, बन्धाबन्धः अपि तथैव भणितव्यः यावत् वैमानिकानाम् अपि । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावत् विहरति । ततः श्रमणः भगवान् महावीरः अन्यदा कदाचित् राजगृहात् नगरात् गुणशीलकात् चैत्यात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहिः जनपदविहारं विहरति । अर्शच्छेदने वैद्यस्य क्रिया-पदं तस्मिन् काले तस्मिन् समये उल्लुकातीरं नाम नगरम् आसीत्-वर्णकः । तस्य उल्लुकातीरस्य नगरस्य बहिः उत्तरपौरस्त्यः दिग्भागः, अत्र एक जम्बुकं नाम चैत्यम् आसीत् - वर्णकः । ततः श्रमणः भगवान् महावीरः अन्यदा कदाचित् For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद कर्म पद ४४. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा- भंते! कर्म प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! कर्म प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं जैसेज्ञानावरणीय यावत् आंतरायिक। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता । ४५. भंते! जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है? गौतम! आठ कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है - इस प्रकार जैसे प्रज्ञापना का वेदावेदक उद्देशक (पण्णवणा पद २७) निरवशेष वक्तव्य है । वेद-बंध पद (पण्णवणा २८) भी उसी प्रकार बंध-वेद पद (पण्णवणा २५) भी उसी प्रकार बंधा-बंध पद (पण्णवणा २४) भी उसी प्रकार वक्तव्य है, यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । ४६. भंते! वह ऐसा ही है, भंते वह ऐसा ही है, यह कहकर यावत् विहरण करने लगे। ४७. श्रमण भगवान् महावीर ने किसी दिन राजगृह नगर के गुणशीलक चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण किया। प्रतिनिष्क्रमण कर बाहर जनपद विहार करने लगे। अर्श छेदन में वैद्य का क्रिया पद ४८. उस काल उस समय उल्लूकातीर नामक नगर था - वर्णक । उस उल्लूकातीर नगर के बाहर उत्तर पूर्व दिशि भाग, वहां एकजम्बूक नाम का चैत्य था - वर्णक । श्रमण भगवान् महावीर किसी दिन क्रमानुसार विचरण, ग्रामानुग्राम परिव्रजन और सुखपूर्वक विहार www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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