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भगवई
श. १६ : उ. २ : सू. ३५-३६ जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए।
दिशा से आया था, उसी दिशा में लौट गया।
आरोहति, आरुह्य यस्याः एव दिशः प्रादुर्भूतः तस्यामेव दिशि प्रतिगतः।
भाष्य
१. सूत्र ३३-३४
इस आलापक में भगवान महावीर के जीवन का एक विशिष्ट प्रसंग है। एक बार सौधर्म स्वर्ग के अधिपति देवेन्द्र शक्र भगवान् महावीर के पास आए और अवग्रह के विषय में जिज्ञासा की। भगवान् ने पांच प्रकार के अवग्रह बतलाए। उस समय सौधर्मेन्द्र शक्र ने कहा-मैं आर्य
रूप में विद्यमान श्रमण निग्रंथों को अवग्रह की अनुज्ञा करता हूं।
अवग्रह के अनेक अर्थ हैं-आश्रय, आवास, पात्र, अपने अधिकार की वस्तु के उपभोग की आज्ञा आदि।
दक्षिण भरत पर सौधर्मेन्द्र शक्र का अधिकार है। उसने अपनी अधिकार-भूमि का उपयोग करने की अनुज्ञा दी।
सक्क-संबंधि-वागरण-पदं
शक्र-सम्बन्धि-व्याकरण-पदम् ३५. भंतेति! भगवं गोयमे समणं भंगवं भदन्त इति! भगवान् गौतमः श्रमणं
महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता । भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, एवं वयासी-जण्णं भंते ! सक्के देविंदे वंदित्वा नमस्यित्वा एवमावादीत्-यत् देवराया तुब्भे एवं वदइ, सच्चे णं भदन्त! शक्रः देवेन्द्रः देवराजः युष्मान् एसमझे ?
एवं वदति, सत्यः एषः अर्थः? हंता सच्चे॥
हन्त सत्यः।
शक्र संबन्धी व्याकरण पद ३५. अयि भंते! भगवान् गौतम ने श्रमण
भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर इस प्रकार कहा-भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र ने आपसे जो कहा, क्या वह अर्थ सत्य है? हां, सत्य है।
३६. सक्के णं भंते! देविंद देवराया किं सम्मावादी ? मिच्छावादी ? गोयमा! सम्मावादी, नो मिच्छावादी॥
शक्रः भदन्त! देवेन्द्रः देवराजः किं सम्यगवादी? मिथ्यावादी? गौतम! सम्यगवादी, नो मिथ्यावादी।
३६. भंते ! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या सम्यगवादी है? मिथ्यावादी है? गौतम! सम्यगवादी है. मिथ्यावादी नहीं है।
३७. सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सचं भासं भासति ? मोसं भासं भासति? सच्चामोसं भासं भासति? असच्चामोसं भासं भासति? गोयमा! सचं पि भासं भासति जाव असचामोसं पि भासं भासति॥
३७. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या सत्य भाषा बोलता है? मृषा भाषा बोलता है? सत्यामृषा भाषा बोलता है? असत्यामृषा भाषा बोलता
शक्रः भदन्त! देवेन्द्रः देवराजः किं सत्यां भाषां भाषते? मृषां भाषां भाषते? सत्यामृषां भाषां भाषते? असत्यामृषां भाषां भाषते? गौतम! सत्याम् अपि भाषां भाषते यावत् असत्यामृषां अपि भाषां भाषते।
गौतम! सत्य भाषा भी बोलता है यावत् असत्यामृषा भाषा भी बोलता है।
३५. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या सावद्य भाषा बोलता है? अनवद्य भाषा बोलता है?
३८. सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सावज भासं भासति? अणवज्जं भासं भासति? गोयमा! सावज्ज पि भासं भासति, अणवज्जं पि भासं भासति॥
शक्रः भदन्त! देवेन्द्रः देवराजः किं सावद्यां भाषां भाषते? अनवद्यां भाषां भाषते? गौतम! सावद्याम् अपि भाषां भाषते, अनवद्याम् अपि भाषां भाषते।
गौतम ! सावध भाषा भी बोलता है, अनवद्य भाषा भी बोलता है।
३६. से केणट्टेणं भंते! एवं बुचइ-सक्के तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-शक्रः देविंद देवराया सावपि भासं भासति, देवेन्द्रः देवराजः सावद्याम् अपि भाषां अणवज्ज पि भासं भासति?
भाषते, अनवद्याम् अपि भाषां भाषते? गोयमा! जाहे णं सक्के देविंद देवराया गौतम! यदा शक्र: देवेन्द्रः देवराजः सुहुमकाय अणिज्जूहित्ता णं भासं __सूक्ष्मकायम् अनि!ह्य भाषां भाषते तदा भासति ताहे णं सक्के देविंद देवराया शक्र: देवेन्द्रः देवराजः सावद्यां भाषां सावज्जं भासं भासति, जाहे णं सक्के भाषते, यदा शक्र: देवेन्द्रः देवराजः देविंद देवराया सुहमकायं निज्जूहित्ता णं सूक्ष्मकायम् नि!ह्य भाषां भाषते तदा
३६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-देवराज देवेन्द्र शक्र सावध भाषा भी बोलता है, अनवद्य भाषा भी बोलता है? गौतम! जब देवराज देवेन्द्र शक्र सूक्ष्मकाय का नि!हण किए बिना बोलता है, तब देवराज देवेन्द्र शक्र सावध भाषा बोलता है। जय देवराज देवेन्द्र शक्र सूक्ष्मकाय का नि!हण कर बोलता है, तब देवराज देवेन्द्र
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