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________________ बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद जीवाणं जरा-सोग-पदं २८. रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवाणं भंते ! किं जरा? सोगे? गोयमा! जीवाणं जरा वि, सोगे वि॥ जीवानाम् जरा-शोक-पदम राजगृहं यावत् एवमवादीत्-जीवानां भदन्त ! किं जरा? शोकः? गौतम! जीवानां जरा अपि, शोकः अपि। जीवों का जरा-शोक पद २८. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-क्या जीवों के जरा है? शोक है? गौतम! जीवों के जरा भी है, शोक भी है। २६. से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ-जीवाणं जरा वि, सोगे वि? गोयमा! जे णं जीवा सारीरं वेदणं वेदेति तेसि णं जीवाणं जरा, जे णं जीवा माणसं वेदणं वेदेति तेसि णं जीवाणं सोगे। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-जीवाणं जरा वि, सोगे वि। एवं नेरइयाण वि। एवं जाव थणियकुमाराणं॥ तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जी- वानां जरा अपि, शोकः अपि? गौतम! ये जीवाः शारीरां वेदनां वेदयन्ति, तेषां जीवानां जरा, ये जीवा मानसां वेदनां वेदयन्ति तेषां जीवानां शोकः। तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-जीवानां जरा अपि, शोक: अपि। एवं नैरयिकाणाम् अपि। एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम्। २६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीवों के जरा भी है, शोक भी है? गौतम! जो जीव शारीरिक वेदना का वेदन करते हैं, उन जीवों के जरा तथा जो जीव मानसिक वेदना का वेदन करते हैं, उन जीवों के शोक होता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीवों के जरा भी होती है, शोक भी होता है। इसी प्रकार नैरयिक की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। ३०, पुढविकाइयाणं भंते! किं जरा? पृथिवीकायिकानां भदन्त! किं जरा? सोगे? शोकः? गोयमा ! पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे॥ गौतम! पृथिवीकायिकानां जरा, नो शोकः। ३०. भंते! क्या पृथ्वीकायिक जीवों के जरा है? शोक है? गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा है, शोक नहीं है। ३१. से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ-पुढवि- काइयाणं जरा, नो सोगे? तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते- पृथिवीकायिकानां जरा, नो शोकः? ३१. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-पृथ्वीकायिक जीवों के जरा है, शोक नहीं गोयमा! पुढविकाइया णं सारीरं वेदणं वेदेति, नो माणसं वेदणं वेदेति। गौतम! पृथिवीकायिकाः शारीरां वेदनां वेदयन्ति, नो मानसां वेदनां वेदयन्ति। से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ- तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेपुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे। एवं जाव पृथिवीकायिकानां जरा, नो शोकः । एवं चउरिदियाणं। सेसाणं जहा जीवाणं ___ यावत् चतुरिन्द्रियाणाम्। शेषाणां यथा जाव वेमाणियाणं॥ जीवानां यावत् वैमानिकानाम्। गौतम! पृथ्वीकायिक जीव शारीरिक वेदना का वेदन करते हैं, मानसिक वेदना का वेदन नहीं करते। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, शोक नहीं होता। इस प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता। शेष जीवों की भांति वक्तव्य हैं यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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