________________
श. १६ : उ. १ : सू. ८-१५
३४८
भगवई
अधिकरणी-अधिकरण-पदं ८. जीवे णं भंते! किं अधिकरणी?
अधिकरणं? गोयमा! जीवे अधिकरणी वि. अधिकरणं
अधिकरणी-अधिकरण पद ८. भंते! क्या जीव अधिकरणी है? अधिकरण
अधिकरणी-अधिकरण-पदम् जीवः भदन्त! किम् अधिकरणी? अधिकरणम्? गौतम! जीवः अधिकरणी अपि, अधिकरणम् अपि।
पपत्रणमा
गौतम! जीव अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है।
पि॥
१. से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-जीवे
अधिकरणी वि, अधिकरणं पि? गोयमा! अविरतिं पुडुच्च। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-जीवे अधिकरणी वि अधिकरणं पि॥
तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-जीवः१. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैअधिकरणी अपि, अधिकरणम् अपि? जीव अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है? गौतम! अविरतिं प्रतीत्य। तत् तेनार्थेन गौतम! अविरति की अपेक्षा। इस अपेक्षा से गौतम! एवमुच्यते-जीवः अधिकरणी । यह कहा जा रहा है-जीव अधिकरणी भी है, अपि, अधिकरणम् अपि।
अधिकरण भी है।
१०. नेरइए णं भंते! किं अधिकरणी?
अधिकरणं? गोयमा! अधिकरणी वि, अधिकरणं पि। एवं जहेव जीवे तहेव नेरइए वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए॥
नैरयिक: भदन्त! किम अधिकरणी? अधिकरणम् ? गौतम! अधिकरणी अपि, अधिकरणम् अपि। एवं यथैव जीवः तथैव नैरयिकाः अपि। एवं निरन्तरम् यावत् वैमानिकाः।
१०. भंते! क्या नैरयिक अधिकरणी है?
अधिकरण है? गौतम! अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है। इस प्रकार जैसे जीव, वैसे ही नैरयिक की वक्तव्यता। इस प्रकार निरन्तर यावत् वैमानिक की वक्तव्यता।
११. जीवे णं भंते! किं साहिकरणी? निरहिकरणी? गोयमा! साहिकरणी, नो निरहिकरणी॥
जीवः भदन्त! किं साधिकरणी? निरधिकरणी? गौतम! साधिकरणी, नो निरधिकरणी।
११. भंते! क्या जीव अधिकरणी सहित है?
अधिकरणी रहित है? गौतम! अधिकरणी सहित है, अधिकरणी रहित नहीं है।
१२. से केणटेणं-पुच्छा। गोयमा! अविरतिं पडुच्च। से तेणटेणं जाव नो निरहिकरणी। एवं जाव वेमाणिए॥
तत् केनार्थेन-पृच्छा। गौतम! अविरतिं प्रतीत्य। तत् तेनार्थेन यावत् नो निरधिकरणी। एवं यावत वैमानिकः।
१२. यह किस अपेक्षा से-पृच्छा। गौतम! अविरति की अपेक्षा। इस अपेक्षा से यावत अधिकरणी रहित नहीं है। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता।
१३. जीवे णं भंते! किं आयाहिकरणी? पराहिकरणी? तदुभयाहिकरणी? गोयमा! आयाहिकरणी वि, पराहिकरणी वि, तदुभयाहिकरणी वि॥
जीवः भदन्त! किम् आत्माधिकरणी? पराधिकरणी? तदुभयाधिकरणी? गौतम! आत्माधिकरणी अपि, पराधिकरणी अपि, तदुभयाधिकरणी अपि।
१३. भंते! क्या जीव आत्म-अधिकरणी है? पर-अधिकरणी है? तदुभय-अधिकरणी है? गौतम! आत्म-अधिकरणी भी है, परअधिकरणी भी है, तदुभय-अधिकरणी भी है।
१४. से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ-जाव
तदुभयाहिकरणी वि? गोयमा! अविरतिं पडुच । से तेणटेणं जाव तदुभयाहिकरणी वि। एवं जाव वेमाणिए॥
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-यावत् तदुभयाधिकरणी अपि? गौतम! अविरतिं प्रतीत्य। तत् तेनार्थेन यावत् तदुभयाधिकरणी अपि। एवं यावत् वैमानिकः ।
१४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-यावत् तदुभय अधिकरणी भी है? गौतम! अविरति की अपेक्षा। इस अपेक्षा से यावत् तदुभय-अधिकरणी भी है। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता।
१५. जीवाणं भंते! अधिकरणे किं
आयपयोगनिब्बत्तिए? परपयोग- निव्वत्तिए ? तदुभयप्पयोगनिव्वत्तिए ?
जीवानां भदन्त! अधिकरणं किम् आत्मप्रयोगनिर्वर्तितः? परप्रयोग- निर्वर्तितः? तदुभयप्रयोगनिर्वर्तितः?
१५. भंते! जीवों का अधिकरण क्या आत्म
प्रयोग से निष्पन्न होता है? पर-प्रयोग से निष्पन्न होता है? तदुभय-प्रयोग से निष्पन्न होता है?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org