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________________ भगवई जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए --पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा ॥ ७. पुरिसे णं भंते! अयकोट्ठाओ अयोमएणं संडास एणं गहाय अहिकरणिसि उक्खिव्यमाणे वा निक्खिव्वमाणे वा कतिकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोट्टाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय अहिकरणिसि उक्खिवइ वा निक्खिव वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए - पंचहि किरियाहिं पुढे, जेसिं पि णं जीवाणं सरीरेहिंतो अयो निव्वत्तिए, संडासए निव्वत्लिए, चम्मेद्वे निष्पत्तिए, मुट्ठिए निव्वत्तिए, अधिकरणी निव्वतिया, अधिकरणिखोडी निव्वत्तिया, उदगदोणी निव्वत्तिया, अधिकरणसाला निव्वत्तिया, ते वि णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए - पंचहि किरियाहिं पुट्ठा ॥ ३४७ यस्या निर्वर्तिताः, ते अपि जीवाः कायिक्या यावत् प्राणातिपातक्रिययापञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः । वा पुरुषः भदन्त ! अयः अयस्कोष्ठात् अयोमयेन संदंशकेन गृहीत्वा अधिकरण्याम् उत्क्षिप्यमानः निक्षिप्यमानः वा कतिक्रियः ? गौतम ! यावत् च सः पुरुषः अयः अयस्कोष्ठात् अयोमयेन संदंशकेन गृहीत्वा अधिकरण्याम् उत्क्षिपति वा प्रक्षिपति वा तावत् सः पुरुषः कायिक्या यावत् प्राणातिपातक्रियया-पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टः येषाम् अपि जीवानां शरीरात् अयः निर्वर्तितः, संदंशकः निर्वर्तितः, चर्मेष्टः निर्वर्तितः; मुष्टिकः निर्वर्तितः, अधिकरणी निर्वर्तिता, अधिकरण 'खोडी' निर्वर्तिता, उदकद्रोणी निर्वर्तिता, अधिकरणशाला निर्बर्तिता, ते अपि जीवाः कायिक्या यावत् प्राणातिपातक्रियया-पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टाः । Jain Education International १. सूत्र ६-७ प्रस्तुत आलापक में पांच क्रिया से स्पृष्ट होने के दो विधान हैं१. लोहे की संडासी का प्रयोग करने वाला पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। २. जिन जीवों के शरीर से लोह और लोह की संडासी आदि निर्मित हुए हैं वे जीव भी पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। प्रथम विधान स्पष्ट है। लोह की संडासी आदि के जीव पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं, इसका हेतु वृत्तिकार ने अविरति भाव बतलाया तुलना के लिए द्रष्टव्य भगवई ५ / १३४ - १३५ का भाष्य । शरीर के दो प्रकार बतलाए गए हैं-बद्ध और मुक्त मुक्त शरीर निर्जीव होता है। इस विषय में चूर्णिकार ने एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया है-मुक्त शरीर के पुद्गल जीव के द्वारा निष्पादित औदारिक शरीर का प्रयोग से मुक्त नहीं होते, किसी दूसरे परिणाम से परिणत नहीं होते तब तक वे उसी जीव के शरीर कहलाते हैं।' इस सिद्धान्त के १. भ. वृ. १६/७ इह चायः प्रभृतिपदार्थनिर्वर्त्तकजीवानां पञ्चक्रियत्वमविरतिभावेनावसेयमिति । २. अनु. चू. पृ ६२-६३ ते य पोग्गला तं जीवणिव्यत्तियं ओरालिय भाष्य श. १६ : उ. १ : सू. ७ जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रियापांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। ७. भंते! लोहे के कोठे से लोहमय संडासी से तप्त लोह को लेकर अधिकरण में निकालता अथवा डालता हुआ पुरुष कितनी क्रियाओं से स्पृष्ट होता है? गौतम ! जब तक पुरुष लोहे के कोठे से लोहमय संडासी से लोह को निकालकर अधिकरणी में निकालता अथवा डालता है तब तक वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया-पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से लोह निष्पन हुआ, संडासी निष्पन्न हुई, घन निष्पन्न हुआ, हथौड़ा निष्पन्न हुआ, अहरन निष्पत्र हुई, अहरन की लकड़ी निष्पन्न हुई, उदक-द्रोणी निष्पन्न हुई, अधिकरण शाला निष्पन्न हुई, वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया-पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। आधार पर संभावना की जा सकती है मुक्त शरीर - पुद्गलों का परिणामान्तर नहीं होता तब तक उनके साथ ममत्व का सूक्ष्म धागा जुड़ा रहता है। अविरति और ममत्व पांच क्रिया से स्पृष्ट होने के निमित्त बन जाते हैं। शब्द विमर्श इंगालकडणी - अंगारा निकालने वाली ईषत् वक्र लोहमय यष्टि । भत्था - धौंकनी । मुट्ठिए-हथौड़ा। चम्मेहे - घन । अधिकरणी - अहरन । अधिकरणी खोडी - जिस काठ पर अहरन रखी जाती है। उदग दोणी-पानी की कुण्डी । अधिकरण शाला-लुहार शाला। For Private & Personal Use Only शरीरकायप्पयोगं ण मुयंति ण जाव अण्णपरिणामेण परिणमंति ताव ताई पत्तेयं तस्सरींराई भण्णन्ति । www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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