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भगवई
अगारात अनगारितां प्रव्रजिष्यति।
श. १५ : सू. १८६ भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइहिति। तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु असुर-कुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति।
तत्रापि विराधितश्रामण्यः कालमासे कालं कृत्वा दाक्षिणात्येषु असुरकुमारेषु देवेषु देवत्वेन उपपत्स्यते।
से णं तओहिंतो अणंतरं उबट्टित्ता सः तस्मात् अनन्तरम् उद्वर्त्य मानुष्यं माणसं विग्गहं लभिहिति, लभित्ता विग्रहं लप्स्यते, लब्ध्वा केवलां बोधिं केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे 'बुज्झिहिति', 'बुज्झित्ता' मुण्डः भूत्वा भवित्ता अगाराओ अणगारियं अगारात अनगारितां प्रव्रजिष्यति। पब्वइहिति। तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे काल- तत्रापि विराधितश्रामण्यः कालमासे मासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु नाग- कालं कृत्वा दाक्षिणात्येषु नागकुमारेषु कुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववन्जिहिति। देवेषु देवत्वेन उपपत्स्यते।
से णं तओहिंतो अणंतरं एवं एएणं सः तस्मात् अनन्तरम् एवम् एते अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवण्ण- अभिलापेन दाक्षिणत्येषु सुपर्णकुमारेषु, कुमारेसु, एवं विज्जुकुमारेसु, एवं एवं विद्युतकुमारेषु, एवम् अग्निअग्गिकुमारवज्ज जाव दाहिणिल्लेसु कुमारवर्जं यावत् दाक्षिणत्येषु थणियकुमारेसु।
स्तनितकुमारेषु।
से णं 'तओहितो अणंतरं' उबट्टित्ता सः तस्मात् अनन्तरम् उद्वर्त्य मानुष्यं माणुस्सं विग्गहं लभिहिति लभित्ता विग्रहं लप्स्यते, लब्ध्वा केवलां बोधिं केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे 'बुज्झिहिति' 'बुज्झिहित्ता' मुण्डः भवित्ता अगाराओ अणगारियं भूत्वा अगारात् अनगारिता पब्वइहिति। तत्थ वि य णं प्रव्रजिष्यति। तत्रापि विराधितश्रामण्यः विराहियसामण्णे जोइसिएसु देवेसु ज्योतिष्केषु देवेषु उपपत्स्यते। उववज्जिहिति। से णं तओहिंतो अणंतरं चयं चइत्ता सः तस्मात् अनन्तरं च्यवं च्युत्वा माणुस्सं विग्गहं लभिहति, लभित्ता मानुष्यं विग्रहं लप्स्यते, लब्ध्वा केवलां । केवलं बोहिं बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुंडे बोधिं 'बुज्झिहिति' बुज्झित्ता' मुण्डः भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्बइहिति भूत्वा अगारात् अनगारितां तत्थ वि णं अविरा-हियसामण्णे प्रव्रजिष्यति। तत्रापि अविराधितकालमासे कालं किचा सोहम्मे कप्पे श्रामण्यः कालमासे कालं कृत्वा सौधर्मे देवत्ताए उववज्जिहति।
कल्पे देवत्वेन उपपत्स्यते। से णं तओहितो अणंतरं चयं चइत्ता सः तस्मात् अनन्तरं च्यवं च्युत्वा माणुस्सं विग्गहं लभिहति। तत्थ वि णं मानुष्यं विग्रहं लप्स्यते। तत्रापि अविराहियसामण्णे कालमासे कालं अविराधितश्रामण्यः कालमासे कालं किच्चा सणंकूमारे कप्पे देवत्ताए कृत्वा सनत्कुमारे कल्पे देवत्वेन उववज्जिहति।
उपपत्स्यते। से णं तओहितो एवं जहा सणकुमारे तहा सः तस्मात् एवं यथा सनत्कुमारे तथा बंभलोए, महासुक्के, आणए, आरणे। ब्रह्मलोके, महाशुक्रे, आनते, आरणे।।
मुंड होकर अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना कर कालमास में काल को प्राप्त कर दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से मर कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना कर कालमास में काल को प्राप्त कर दाक्षिणात्य नागकुमार देवों में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से इस प्रकार अभिलाप से दाक्षिणात्य सुपर्ण कुमार देवों में, इसी प्रकार विद्युत् कुमार देवों में, इसी प्रकार अग्नि कुमार देवों को छोड़कर यावत् दाक्षिणात्य स्तनित कुमार देवों में (देव के रूप में उपपन्न होगा)। तदनन्तर वह जीव वहां से मर कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना कर ज्योतिष्क देवों में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार धर्म से अनगार धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना न कर कालमास में काल को प्राप्त कर सौधर्म कल्प में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना न कर कालमास में काल को प्राप्त कर सनत्कुमार कल्प में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से इसी प्रकार जैसे सनत्कुमार में वैसे ही ब्रह्मलोक में, महाशुक्र में, आनत में, आरण में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर मनुष्य
से णं तओहिंतो अणंतरं चयं चइत्ता
सः तस्मात् अनन्तरं च्यवं च्यत्वा
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