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भगवई
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श. १५ : सू. १८६
जाव जाहगाणं चउप्पइयाणं, तेसु यथा-गोधानाम् नकुलानाम्, यथा अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता- प्रज्ञापनापदे यावत् जाहकानाम् उदाइत्ता तत्थेव-तत्येव भुज्जो-भुज्जो __ चतुष्पादिकानां, तेषु अनेकशतसहस्रकृत्वः पञ्चायाहिति।
उद्रुत्य-उद्धृत्य तत्रैव-तत्रैव भूयः-भूयः प्रत्याजनिष्यते।
सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए सर्वत्रापि शस्त्रवध्यः दाहावक्रान्तिकः कालमासे कालं किचा जाई इमाई कालमासे कालं कृत्वा यानि इमानि उरपरिसप्पविहाणाई भवंति, तं जहा- उरपरिसर्पविधानानि भवन्ति, तद् यथाअहीणं, अयगराणं, आसालियाणं, अहीनाम् अजगरणाम् आशालिकामहोरगाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो नाम्, महोरगाणाम्, तेषु अनेकशतउद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्येव भज्जो- सहस्रकृत्वः उद्रुत्य-उद्रुत्य तत्रैवभुज्जो पञ्चायाहिति।
तत्रैव भूयः-भूयः प्रत्याजनिष्यते। सम्वत्थ वि णं सत्थवज्ञ दाहवक्कंतीए सर्वत्रापि शस्त्रवध्यः दाहावक्रान्तिकः कालमासे कालं किचा जाई इमाई __ कालमासे कालं कृत्वा यानि इमानि चउप्पदविहाणाई भवंति, तं जहा- चतुष्पदविधानानि भवन्ति, तद् एगखुराणं, दुखुराणं, गंडीपदाणं, सण- यथा-एकखुराणाम्, द्विखुराणाम्, हप्पदाणं, तेसु अणेगसयहस्स खुत्तो उद्दा- ___ गण्डीपदानाम् सनखपदानाम्, तेषु इत्ता-उदाइत्ता तत्थेव-तत्येव भुज्जो- अनेकशतसहस्रकृत्वः उद्रुत्य-उद्रुत्य भुज्जो पञ्चायाहिति।
तत्रैव-तत्रैव भूयः-भूयः प्रत्याजनिष्यते।
सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए सर्वत्रापि शस्त्रवध्यः दाहावक्रान्तिक: कालमासे कालं किचा जाई इमाई कालमासे कालं कृत्वा यानि इमानि जलयरविहाणाई भवंति, तं जहा- जलचरविधानानि भवन्ति, तद् मच्छाणं कच्छभाणं जाव सुंसुमाराणं, यथा-मत्स्यानाम् कच्छपानाम् यावत् तेसु अणेगसयहस्स खुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दा- सुंसुमाराणाम्, तेषु अनेकशतइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो सहस्रकृत्वः उद्रुत्य-उद्रुत्य तत्रैवपञ्चायाहिति।
तत्रैव भूयः-भूयः प्रत्याजनिष्यते।
चलने वाले गोह आदि) जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे-गोह, नेवला, जैसा प्रज्ञापना (प्रथम) पद में बताया गया है यावत् जाहक तक चतुष्पद वाले प्राणी हैं, उनमें अनेक शतसहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा। इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो उरपरिसर्प जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे-सांप, अजगर, आशालिका और महोरग हैं, उनमें अनेक शतसहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा। इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो चतुष्पद जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे-एक खुर वाले (घोड़ा आदि), दो खुर वाले (बैल आदि), गण्डीपद (हाथी आदि) और सनख-पद (शेर आदि) हैं, उनमें अनेक शतसहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा। इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो जलचर जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसेमत्स्य, कछुआ यावत् सुसुमार (मगरमच्छ) तक हैं, उनमें अनेक शतसहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा। इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो चतुरिन्द्रिय जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे-अन्धिका, पोत्तिका, जैसा प्रज्ञापना (प्रथम) पद में बताया गया है यावत् गोमयकीटक (गोबर का कीड़ा) तक हैं, उनमें अनेक शतसहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा। इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो त्रीन्द्रिय जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे-उपचित यावत् हस्तिसुण्डी तक हैं, उनमें अनेक शतसहस्र
सब्बत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए सर्वत्रापि शस्त्रवध्यः दाहावक्रान्तिकः कालमासे कालं किच्चा जाई इमाइं कालमासे कालं कृत्वा यानि इमानि चउरिदियविहाणाई भवंति, तं जहा- चतुरिन्द्रियविधानानि भवन्ति, तद् अंधियाणं, पोत्तियाणं, जहा-पण्णवणा- यथा-अन्धिकानाम् 'पोत्तियाणं', यथा पदे जाव गोमयकीडाणं, तेसु अणेगसय- प्रज्ञापनापदे यावत् गोमयकीटानाम्, सहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव- तेषु अनेकशतसहस्रकृत्वः उद्रुत्यतत्थेव भुज्जो-भुज्जो पञ्चायाहिति॥ उद्रुत्य तत्रैव-तत्रैव भूयः-भूयः
प्रत्याजनिष्यते।
सम्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवकंतीए सर्वत्रापि शस्त्रवध्यः दाहावक्रान्तिकः कालमासे काल किचा जाई इमाई कालमासे कालं कृत्वा यानि इमानि तेइंदियविहाणाई भवंति, तं जहा- त्रीन्द्रियविधानानि भवन्ति, तद् यथाउवचियाणं जाव हथिसोंडाणं, तेसु उवचितानां यावत् हस्तिशौण्डानाम, अणेगसयसहस्सखुत्तो उदाइत्ता-उदा- तेषु अनेकशतसहस्रकृत्वः उद्रुत्य
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