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भगवई
श. १५ : सू. १८६
३३२ महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति। तत्थ । ग्रैवेयकविमानावासशतं व्यतिव्रज्य णं देवाणं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सर्वार्थसिद्धे महाविमाने देवत्वेन सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तत्थ णं उपपत्स्यते। तत्र देवानाम् अजघन्यासुमंगलस्स वि देवस्स अजहन्न- नुत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमानि मणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती स्थितिः प्रज्ञप्ता। तत्र सुमंगलस्यापि पण्णत्ता।
देवस्य अजघन्यानुत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता।
अपने आपको भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर एक मासिक संलेखना के द्वारा अपने आपको कृश बनाकर अनशन के द्वारा साठ भक्तों का छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्ण दशा में (दिवंगत होकर) ऊर्ध्वलोक में चन्द्रमा यावत् ग्रैवेयक विमानावास-शतक का व्यतिक्रमण कर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देवरूप में उपपन्न होगा। वहां देवताओं की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की प्रज्ञप्त है। वहां सुमंगल देव की स्थिति भी जघन्य और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की प्रज्ञप्त है। भंते! वह सुमंगल देव उस देवलोक से आयुक्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनन्तर च्यवन कर कहां जायेगा?, कहां उपपन्न
से णं भंते! सुमंगले देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति॥
सः भदन्त ! सुमंगल: देवः तस्मात् देवलोकात् आयुःक्षयेण भयक्षयेण स्थितिक्षयेण अनन्तरं च्यवं च्युत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यते? । गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति यावत् सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यति।
होगा?
गौतम! महाविदेह वास में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा।
१८६. विमलवाहणे णं भंते! राया विमलवाहनः भदन्त! राजा सुमंगलेन सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जाव अनगारेण सहयः यावत् भस्मराशिकृतः भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति? सन् कुत्र गमिष्यति? कुत्र उपपत्स्यते? कहिं उववन्जिहिति? गोयमा! विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं गौतम! विमलवाहनः राजा सुमंगलेन अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए अनगारेण सहयः यावत् भस्मराशिकृतः समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोस- सन् अधःसप्तम्यां पृथिव्याम् उत्कर्षकालट्टिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए कालस्थितिके नरके नैरयिकत्वेन उववज्जिहिति।
उपपत्स्य ते। से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु सः ततः अनन्तरम् उद्वर्त्य मत्स्येषु उववज्जिहिति। तत्थ वि सत्थवज्झे उपपत्स्यते। तत्र अपि शस्त्रवध्यः दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दाहावक्रान्तिकः (दाहावक्कंतीए) दोचं पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोस- कालमासे कालं कृत्वा द्विः अपि अधःकालहिइयसिं नरयंसि नेरइयत्ताए सप्तम्यां पृथिव्याम् उत्कर्षकालउववज्जिहिति।
स्थितिके नरके नैरयिकत्वेन उपपत्स्यते।
१८६. भन्ते! सुमंगल अनगार के द्वारा घोड़ेसहित यावत् राख का ढेर कर दिए जाने पर राजा विमलवाहन कहां जायेगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम ! सुमंगल अनगार के द्वारा घोड़े-सहित यावत् राख का ढेर कर दिए जाने पर राजा विमलवाहन अधःसप्तमी पृथ्वी में उत्कृष्ट कालस्थितिवाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उद्वृत्त होकर मत्स्य के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल (मृत्यु) को प्राप्त कर दूसरी बार भी अधःसप्तमी पृथ्वी में उत्कृष्ट कालस्थितिवाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उद्वृत्त होकर दूसरी बार भी मत्स्य के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर छट्ठी तमा पृथ्वी में उत्कृष्ट कालस्थितिवाली नरक में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। वह उसके अनन्तर वहां से उवृत्त होकर स्त्री के रूप में उपपन्न होगा। वहां पर भी
से णं तओणंतरं उज्वट्टित्ता दोचं पि मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ णं वि सत्थवज्झे दाहावक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्टिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववन्जिहिति। से णं तओहिंतो अणंतरं उज्वट्टित्ता इत्थियासु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं
सः ततः अनन्तरम् उद्वर्त्य द्विः अपि मत्स्येषु उपपत्स्यते। तत्रापि शस्त्रवध्यः दाहावक्रान्तिकः कालमासे कालं कृत्वा षष्ठ्यां तमायां पृथिव्याम् उत्कर्षकालस्थितिके नरके नैरयिकत्वेन उपपत्स्य ते। सः तस्मात् अनन्तरम् उद्वर्त्य स्त्रीषु उपपत्स्यते। तत्रापि शस्त्रवध्यः
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