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श. १५ : सू. १८०-१८२ ३३०
भगवई अणगारं रहसिरेण नोल्लावेहिति॥ अनगारं रथशिरसा नोदयिष्यति उसका रूप रौद्र हो जाएगा, क्रोध की अग्नि (नोल्लावेहिति)।
में प्रदीप्त होकर रथ का अग्रिम हिस्सा सुमंगल अनगार के ऊपर चढ़ाकर उन्हें उछाल कर
नीचे गिराएगा।
भाष्य सूत्र १७६ १. रथ का अग्रिम हिस्सा (रहसिरेण)
२. उछाल कर नीचे गिराएगा (नोल्लावेइहि) रथ के अग्रिम भाग का आकार आगे से तीक्ष्ण और लंबा होता जयाचार्य ने 'अणगारं नोल्लावेइहि' का अर्थ किया हैहै। श्रीमज्जयाचार्य ने इसका अर्थ किया है
'मुनि ऊपर ते फेरस्यै, उलाली न्हाखीस्येह।'' 'रथ ने शिर ए जाणवू, कागमुंहा करि केह।'
इसका तात्पर्य है-राजा तीक्ष्णमुंह वाले रथ को मुनि के ऊपर 'कागमुहौ' शब्द का अर्थ है-वह मकान जो आगे से तीखा चढ़ा कर उन्हें उछाल कर नीचे गिराएगा। वृत्तिकार ने 'नोल्लावेइहि' और लंबा हो; कौवे के मुख के समाना'
का अर्थ किया है 'प्रेरयिष्यति।"
१८०. तए णं से सुमंगले अणगारे विमल- ततः सः सुमंगलः अनगारः विमल- वाहणेणं रण्णा रहसिरेणं नोल्लाविए वाहनेन राज्ञा स्थशिरसा नोदयितः समाणे सणियं-सणियं उठेहेति, उढेत्ता (नोल्लाविए) सन् शनैः-शनैः उत्थास्यति, दोचं पि उहं बाहाओ पगिज्झिय- उत्थाय द्विः अपि ऊर्ध्वं बाहू प्रगृह्यपगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए प्रगृह्य सूराभिमुख: आतापनभूम्याम् आयावेमाणे विहरिस्सति॥
आतापयन् विहरिष्यति।
१८०. तब वह सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा के द्वारा रथ के अग्रिम हिस्से से गिराए जाने पर धीरे-धीरे उठेंगे, उठ कर आतापन भूमि में दूसरी बार दोनों भुजाएं ऊपर उठा कर सूर्य के सामने आतापना लेते हुए विहरण करेंगे।
१८१. तए णं से विमलवाहणे राया सुमंगलं अणगारं दोच्चं पि रहसिरेणं नोल्ला-
ततः सः विमलवाहनः राजा सुमंगलम् अनगारं द्विः अपि रथशिरसा नोदयिष्यति (नोल्लावेहिति)
१८१. तब वह विमलवाहन राजा दूसरी बार भी रथ के अग्रिम हिस्से से सुमंगल अनगार को ऊपर उछाल कर नीचे गिराएगा।
वेहिति॥
१८२. तए णं से सुमंगले अणगारे ततः सः सुमंगलः अनगारः विमल- १८२. तब वह सुमंगल अनगार विमलवाहन विमलवाहणेणं रण्णा दोचं पि रहसिरेणं वाहनेन राज्ञा द्विः अपि स्थशिरसा राजा के द्वारा रथ के अग्रिम हिस्से से दूसरी नोल्लाविए समाणे सणियं-सणियं नोदयितः (नोल्लाविए) सन् शनैः-शनैः बार गिराए जाने पर धीरे-धीरे उठेंगे, उठ कर उद्देहिति, उद्वेत्ता ओहिं पउंजेहिति, उत्थास्यति, उत्थाय अवधिं अवधि (ज्ञान) का प्रयोग करेंगे, प्रयोग कर पउंजित्ता विमलवाहणस्स रण्णो तीतद्धं प्रयोक्ष्यति, प्रयुज्य विमलवाहनस्य विमलवाहन राजा के अतीत-काल को देखेंगे, आभोएहिति, आभोएत्ता विमलवाहणं राज्ञः अतीताध्वानम् आभोगयिष्यति देखकर विमलवाहन राजा को इस प्रकार रायं एवं वइहिति–नो खलु तुम (आभोएहिति) आभोग्य विमलवाहनं कहेंगे-तुम विमलवाहन राजा नहीं हो, तुम विमलवाहणे राया, नो खलु तुम देवसेणे राजानम् एवं वदिष्यति-नो खलु त्वं देवसेन राजा नहीं हो, तुम महापद्म राजा नहीं राया, नो खलु तुम महापउमे राया, विमलवाहनः राजा, नो खलु त्वं हो, तूं इससे पूर्व तीसरे भव में गोशाल नामक तमण्णं इओ तचे भवग्गहणे गोसाले नाम देवसेनः राजा, नो खलु त्वं महापद्मः मंखलिपुत्र था-श्रमणघातक यावत् छद्मस्थमंखलिपुत्ते होत्था-समणघायए जाव राजा, त्वम् इतः तृतीये भवग्रहणे अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ था, उस छउमत्थे चेव कालगए, तं जइ ते तदा गोशालः नाम मंखलिपुत्रः आसीत्- समय यद्यपि सर्वानुभूति अनगार ने प्रभु होने सव्वाणुभूतिणा अणगारेणं पभूणा वि श्रमणघातकः यावत् छद्मस्थः चैव पर भी तुम्हें सम्यक् सहन किया, क्षमा की, होऊणं सम्मं सहियं खमियं तितिक्खियं कालगतः, तत् यदि ते तदा सर्वानु- तितिक्षा की, अधिसहन किया; उस समय अहियासियं, जइ ते तदा सुनक्खत्तेणं भूतिना अनगारेण प्रभुणा अपि भूत्वा यद्यपि सुनक्षत्र अनगार ने प्रभु होने पर भी अणगारेणं पभूणा वि होऊणं सम्म सहियं सम्यक् सोढं क्षमितं तितिक्षितम् तुम्हें सम्यक् सहन किया, क्षमा की, तितिक्षा खमियं तितिक्खियं अहियासियं, जइ ते अध्यासितम्, यदि ते तदा सुनक्षत्रेण की, अधिसहन किया; उस समय श्रमण तदा समणेणं भगवया महावीरेणं पभूणा अनगारेण प्रभुणा अपि भूत्वा सम्यक् भगवान महावीर ने प्रभु होने पर भी तुम्हें १. भ. जो. खण्ड ४, पद्य संख्या १०३८, पृ. ३६६ ।
३. भ. जो. खण्ड ४, पद्य संख्या १०३८, पृ. ३६६ । २. राजस्थानी शब्द कोश, सं. सीताराम लाळस, प्र. राजस्थानी शोध- ४. भ. वृ. १५/१७६ ।
संस्थान, जोधपुर, प्रथम खंड (द्वितीय परिवर्द्धित संस्करण)।
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