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________________ भगवई १. सूत्र १६ २०. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - कतिविहा णं भंते ! जागरिया पण्णत्ता ? प्रियधर्मा - दृढधर्मा के लिए ठाणं ४ / ४२ का टिप्पण द्रष्टव्य है। तं गोयमा ! तिविहा जागरिया पण्णत्ता, जहा - बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, दक्खुजागरिया ॥ २१. से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइतिविहा जागरिया पण्णत्ता, तं जहाबुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया ? जे इमे अरहंता भगवंतो उप्पण्णनाणदंसणधरा अरहा जिणे केवली तीयपचुप्पन्नमणागयवियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी एए णं बुद्ध बुद्ध जागरंति । उच्चार जे इमे अणगारा भगवंतो रियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तनिक्रखेवणासमिया पासवण - खेल - सिंघाण जल्ल-परिट्ठावणियासमिया मणसमिया वइसमिया कायसमिया मणगुत्ता वइगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभचारी - एए ण अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति । जे इमे समणोवासगा अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंतिएएणं सुदक्खुजागरियं जागरंति । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तं जहा - बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया ॥ १३ Jain Education International भाष्य भदन्त इति ! भगवान् गौतम ! श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवादीत्कतिविधा भदन्त ! जागरिका प्रज्ञप्ता ? गौतम ! त्रिविधाः जागरिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका, सुद्रष्टृजागरिका । तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यतेत्रिविधा: जागरिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाबुद्धजागरिका अबुद्धजागरिका, सुद्रष्टृजागरिका । गौतम ! ये इमे अर्हन्तः भगवन्तः उत्पन्न - ज्ञानदर्शनधराः अर्हाः जिनाः केवलिनः अतीतप्रत्युत्पन्नानागतविज्ञायकाः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनः एते बुद्धाः बुद्धजागरिकायां जाग्रति । ये इमे अनगाराः भगवन्तः ईर्यासमिताः भाषासमिताः एषणासमिताः आदानभाण्डामात्रनिक्षेपणासमिताः उच्चारप्रश्रवण क्ष्वेल - सिंघाण - 'जल्ल' परिष्ठा-पनिकासमिताः मनः समिताः वचः समिताः कायसमिताः मनोगुप्ताः, वाक्- गुप्ताः कायगुप्ताः गुप्ताः गुप्तेन्द्रियाः गुप्तबह्मचारिणः- एते अबुद्धाः अबुद्धजागरिकायां जाग्रति । ये इमे श्रमणोपासकाः अभिगतजीवाजीवाः यावत् यथापरिगृहीतैः तपःकर्मभिः आत्मानं भावयन्तः विहरन्तिएते सुद्रष्टृजागरिकायां जाग्रति । तत् तेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेत्रिविधा: जागरिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाबुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका सुद्रष्टृजागरिका । For Private & Personal Use Only श. १२ : उ. १ : सू. २०, २१ २०. भंते! इस सम्बोधन से संबोधित कर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भंते! जागरिका कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है ? गौतम! जागरिका तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे- बुद्ध जागरिका, अबुद्ध जागरिका और सुद्रष्टा जागरिका । २१. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - जागरिका तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे- बुद्ध जागरिका, अबुद्ध जागरिका और सुद्रष्टा जागरिका । गौतम ! जो अर्हत् भगवान् उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन, केवली, अतीत, वर्तमान और भविष्य के विज्ञाता, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध बुद्धजागरिका करते हैं। जो अनगार भगवान् विवेकपूर्वक चलते हैं, विवेकपूर्वक बोलते हैं, विवेकपूर्वक आहार की एषणा करते हैं, विवेकपूर्वक वस्त्र पात्र आदि को लेते और रखते हैं, विवेकपूर्वक मल, मूत्र, श्लेष्म, नाक के मैल, शरीर के गाढ़े मैल का परिष्ठापन करते हैं, मन, वचन और काया की संयत प्रवृत्ति करते हैं, मन, वचन और काया का निरोध करते हैं, अपने आपको सुरक्षित रखते हैं, इन्द्रियों को सुरक्षित रखते हैं, ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखते हैं, वे अबुद्ध अबुद्ध जागरिका करते हैं। जो ये श्रमणोपासक जीव अजीव को जानने वाले यावत् यथा परिगृहीत तपःकर्म द्वारा आत्मा को भावित करते हुए रह रहे हैं, वे सुद्रष्टा जागरिका करते हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - तीन प्रकार की जागरिका प्रज्ञप्त है, जैसे- बुद्ध जागरिका, अबुद्ध जागरिका, सुद्रष्टा जागरिका। www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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