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________________ श. १५ : सू. १६२-१६४ महावीरस्स पाणिंसि तं सव्वं सम्म निस्सिरति॥ ३२४ भगवतः महावीरस्य पाणौ तत् सर्वं सम्यक् निसृजति (निस्सिरति)। भगवई (चौपतिया शाक) का निसर्जन किया। भगवओ आरोग्ग-पदं भगवतः आरोग्य-पदम् भगवान का आरोग्य-पद १६२. तए णं समणे भगवं महावीरे । ततः श्रमणः भगवान् महावीरः अमूर्छितः १६२. श्रमण भगवान् महावीर ने अमूर्च्छित, अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने अगृद्धः अग्रथितः अनध्युपपन्नः। अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर बिल में बिलमिव पन्नगभएणं अप्पाणेणं तमाहारं बिलमिव पन्नगभूतेन आत्मना तम्। प्रविष्ट सर्प के सदृश अपने आपको बनाकर सरीरकोहगंसि पक्खिवति॥ आहारं शरीरकोष्ठके प्रक्षिपति। उस आहार को शरीर रूप कोष्ठक में डाल दिया। १६३. तए णं समणस्स भगवओ महा- ततः श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य तम् वीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स आहारम् आहरतःसतः सः विपुलः से विपुले रोगायंके खिप्पामेव उवसंते, हटे। रोगातङ्क: क्षिप्रमेव उपशान्तः, हृष्टः जाए, अरोगे, बलियसरीरे। तुट्ठा समणा, जातः अरोगः, बलिकशरीरः। तुष्टाः तुट्ठाओ समणीओ, तुट्ठा सावया, तुट्ठाओ श्रमणाः, तुष्टाः श्रमण्यः, तुष्टाः सावियाओ तुट्ठा देवा, तुट्ठाओ देवीओ, श्रावकाः, तुष्टाः श्राविकाः, तुष्टाः । सदेवमणुयासुरे लोए तुट्टे-हढे जाए समणे देवाः, तुष्टाः देव्यः, सदेवमनुजासुरः । भगवं महावीरे, हटे जाए समणे भगवं लोकः तुष्टः- हृष्टः जातः श्रमणः महावीरे॥ भगवान् महावीरः, हृष्टः जातः श्रमणः भगवान् महावीरः। १६३. श्रमण भगवान् महावीर के उस आहार को लेने पर वह विपुल रोग-आतंक शीघ्र ही उपशांत हो गया, शरीर हृष्ट, अरोग और बलिष्ठ हो गया। श्रमण तुष्ट हो गए, श्रमणियां तुष्ट हो गईं, श्रावक तुष्ट हो गए, श्राविकाएं तुष्ट हो गईं, देव तुष्ट हो गए, देवियां तुष्ट हो गईं। देव, मनुष्य असुर-सहित पूरा लोक तुष्ट हो गया-श्रमण भगवान् महावीर हृष्ट हो गए, श्रमण भगवान् महावीर हृष्ट हो गए। सव्वाणुभूतिस्स उववाय-पदं सर्वानुभूतेः उपपात-पदम् सर्वानुभूति का उपपात-पद १६४. भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं भदन्त ! अयि! भगवान् गौतमः श्रमणं १६४. अयि भंते! भगवान् गौतम ने श्रमण महावीरं बंदति नमसति, वंदित्ता भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, भगवान् महावीर से इस प्रकार कहानमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्-एवं देवानुप्रिय का अंतेवासी पूर्व जनपद का देवाणुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवइ खलु देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासी निवासी सर्वानुभूति नाम का अनगार प्रकृति सब्वाणुभूती नाम अणगारे पगइभदए प्राचीनजानपदः सर्वानुभूतिः नाम से भद्र यावत् विनीत। भन्ते! तब वह जाव विणीए, से णं भंते! तदा गोसालेणं अनगारः प्रकृतिभद्रक: यावत् विनीतः, मंखलिपुत्र गोशाल के तपःतेज से राख का ढेर मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए सः भदन्त ! तदा गोशालेन मंखलि- होने पर कहां गया है? कहां उपपन्न समाणे कहिं गए ? कहिं उववन्ने ? पुत्रेण तपसा तेजसा भस्मराशीकृतः सा तजसा भस्मराशीकृतः हुआ है? __ सन् कुत्र गतः? कुत्र उपपन्नः? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी गौतम! मेरा अंतेवासी पूर्व जनपद का निवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नाम प्राचीनजानपदः सर्वानुभूतिः नाम सर्वानुभूति नाम का अनगार-प्रकृति से भद्र अणगारे पगइभदए जाव विणीए, से णं अनगारः प्रकृतिभद्रकः यावत् विनीतः, यावत् विनीत। मंखलिपुत्र गोशाल के तपःतदा गोसालेणं मखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं स तदा गोशालेन मंखलिपुत्रेण तपसा । तेज से राख का ढेर होने पर ऊर्ध्व चंद्र-सूर्य भासरासीकए समाणे उखु चंदिम-सूरिय तेजसा भस्मराशीकृतः सन् उर्ध्वं । यावत् ब्रह्म, लांतक, महाशुक्र कल्प का जाव बंभ-लंतक-महासुक्के कप्पे चन्द्रमस्-सूर्यं यावत् ब्रह्म-लान्तक- व्यतिक्रमण कर सहसार कल्प में देव रूप में वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। महाशुक्रान् कल्पान् । व्यतिव्रज्य उत्पन्न हुआ है। वहां कुछ देवों की स्थिति तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं अट्ठारस सहसारे कल्पे देवत्वेन उपपन्नः। तत्र अठारह सागरोपम प्रज्ञप्त है। सर्वानुभूति देव सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तत्थ णं अस्त्येककानां देवानाम् अष्टादश की स्थिति अठारह सागरोपम प्रज्ञप्त है। सव्वाणुभूतिस्स वि देवस्स अट्ठारस ___ सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। तत्र सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। सर्वानुभूतेः अपि देवस्य अष्टादश सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। से णं भंते! सव्वाणुभूती देवे ताओ देव- सः भदन्त ! सर्वानुभूतिः देवः तस्मात् भंते! सर्वानुभूति देव उस देवलोक से आयु. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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