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________________ भगवई ३०६ श्रावस्ती में छह दिशाचरों से अष्टविध महानिमित्त की विद्या को प्राप्त कर अपने आपको 'जिनत्व' की प्राप्ति वाला घोषित कर विचरने लगा। भगवान महावीर ने साधना काल के १३ वें वर्ष में अर्थात् ई. पू. ५५७ में कैवल्य प्राप्त किया । " ई.पू. ५४३ में २४ वर्ष की भिक्षु पर्याय वाला गोशाल' श्रावस्ती में अपने आपको अजिन होते हुए भी जिन के रूप में घोषित कर रहा था, तब कैवल्य प्राप्ति के १६ वर्ष पश्चात् भगवान महावीर का श्रावस्ती में आगमन हुआ।' वहीं पर भगवान महावीर ने गोशाल का पूर्व वृत्तांत परिषद् के बीच सुनाया; इसकी चर्चा पूरे श्रावस्ती में फैलने से गोशाल आवेश में आया तथा आतापनभूमि से उतर कर हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण में आया । " तत्पश्चात् वे सारी घटनाएं घटित हुईं जिनका वर्णन भगवती के १५ वें शतक में है तथा अन्त में अपनी ही तेजोलेश्या से हत होकर सातवें दिन गोशाल मृत्यु प्राप्त हुआ। इस प्रकार गोशाल का २४ वर्षीय प्रव्रज्या- जीवन ई. पू. ५६७ से ई. पू. ५४३ तक रहा। इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों एवं अंकों के परिप्रेक्ष्य में यह भलीभांति स्पष्ट होता है कि (१) महावीर गोशाल के साथ प्रथम मिलन से पूर्व ही अचेलक सन् ई. पू. दीक्षा का वर्ष विहार- क्षेत्र ५६६-५६८ पहला ५६८- ५६७ ५६७-५६६ तीसरा ५६६-५६५ चौथा ५६५-५६४ ५६४-५६३ ५६३-५६२ ५६२-५६१ छठा Jain Education International ७वां वां ५६१-५६० ध्वां ५६०-५५६ १० वां ११वां ५५६-५५८ १. आयार धूला १५।३८ । २. भ. १५/२१ ३. वही, १५/१। कुण्डग्राम, ज्ञातखण्डवन, कर्मारग्राम, कोल्लाक सन्निवेश, मोराक-सन्निवेश, दूइज्जंतग आश्रम, अस्थिग्राम (वर्धमान ) । दूसरा मोराक सन्निवेश, दक्षिण- वाचाला, कनकखल आश्रमपद, उत्तर वाचाला, श्वेताम्बी, सुरभिपुर, थूणाक सन्निवेश, राजगृह, नालन्दा । कोल्लाक सन्निवेश, सुवर्णखल, ब्राह्मणग्राम, चम्पानगरी । कालाय सन्निवेश, पृष्ठचंपा, पत्तकालाय, कुमाराक सन्निवेश, चोराक सन्निवेश, पृष्ठचम्पा । पांचवां कयंगला सन्निवेश, श्रावस्ती, हलेदुक-ग्राम, नंगला ग्राम ( वासुदेव मंदिर में), भद्दिया नगरी आवर्त (बलदेव मंदिर में), चौराक सन्निवेश, कलंकबुका सन्निवेश, राढ देश, पूर्णकलश, भद्दिया नगरी । हो गए थे। ( ५६८ ई. पू. नवम्बर) (२) गोशाल महावीर के संपर्क में (५६८ ई. पू., जून-जुलाई) में आया। (३) चार मास तक वह सवस्त्र था तथा उसी रूप में रहकर अचेलक महावीर का शिष्य बनने के लिए प्रार्थना करता रहा, पर सफलता नहीं मिली। (४) नालन्दा बाहिरिका के तंतुवायशाला के वर्षावास के संपन्न होने के पश्चात् जब महावीर कोल्लाक सन्निवेश चले गए थे तब गोशाल तंतुवायशाला में वस्त्र आदि छोड़कर महावीर के पास कोल्लाग सन्निवेश में पणियभूमि में पहुंचता है और पुनः अपनी प्रार्थना को दोहराता है। उस समय अचेलक महावीर द्वारा अचेलक गोशाल को शिष्य के रूप में स्वीकार किया गया। (यह घटना ई. पू. ५६७ के नवम्बर में हुई ) उक्त ऐतिहासिक प्रमाण के पश्चात् यह शंका निर्मूल हो जाती है कि महावीर ने अचेलकत्व की शिक्षा गोशाल से ग्रहण की। साथ ही यह कहना कि 'जैन आगम में वर्णित शिष्य गोशाल वास्तव में महावीर का गुरु था' - यह आरोप भी अपने आपमें निराधार और अप्रमाणित हो जाता है। (यहां भगवान् महावीर का विहार, वर्षावास आदि का काल - क्रम के साथ पूर्ण विवरण दिया जा रहा है - ) श. १५ : सू. १४१ सिद्धार्थपुर, कूर्मग्राम, सिद्धार्थपुर, वैशाली, वाणिज्यग्राम, श्रावस्ती। सानुलट्ठिय सन्निवेश, दृढभूमि, पेढाल ग्राम (पोलास चैत्य में), बालुका, सुयोग, तोसलिगांव, मोसलि, सिद्धार्थपुर, वजगांव, आलंभिया, ४. वही, १५/१४ - ७८ । ५. वही, १५/५० वर्षावास अस्थिक ग्राम (वर्धमान ) For Private & Personal Use Only कदली समागम, जम्बूसंड, तंबाय सन्निवेश, कूपिय सन्निवेश, वैशाली भद्दिया नगरी (कम्मारशाला में ) ग्रामाक सन्निवेश (बिभेलक यज्ञ-मंदिर में ), शालीशीर्ष, भद्दिया नगरी । मगध के विभिन्न भाग, आलंभिया । आलंभिया कुंडाक सन्निवेश ( वासुदेव मंदिर में), भद्दन्न सन्निवेश (बलदेव के मंदिर में), राजगृह बहुसालगग्राम (शालवन के उद्यान में), लोहार्गला, पुरिमताल, ( शकटमुख उद्यान में), उन्नाग, गोभूमि, राजगृह। लाढ (राढ- देश), वज्रभूमि, सुम्हभूमि । नालन्दा सन्निवेश चम्पानगरी पृष्ठ चम्पा वज्रभूमि श्रावस्ती वैशाली www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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