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भगवई
श. १५ : सू. १४०,१४१
३०६ आजीविए थेरे सद्दावेइ, सदावेत्ता एवं आजीविकान् स्थविरान् शब्दयति, वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया! ममं शब्दयित्वा एवमवादीत्-यूयं कालगयं जाणित्ता सुरभिणा गंधोदएणं देवानुप्रियाः! मां कालगतं ज्ञात्वा ण्हाणेह, पहाणेत्ता पम्हलसुकुमालाए सुरभिणा गन्धोदकेन स्नपयतः, स्नात्वा गंधकासाईए गायाइं लूहेह, लूहेत्ता पक्ष्मलसुकुमालया गन्धकाषायिणा । सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिं- गात्राणि रूक्षयत, रूक्षयित्वा सरसेन । पह, अणुलिंपित्ता महरिहं हंसलक्षणं गोशीर्षचन्दनेन गात्राणि अनुलिम्पतः, पडसाडग नियंसेह, नियंसेत्ता सव्वा- अनुलिप्य महार्ह हंसलक्षणं पटशटकं । लंकारविभूसियं करेह, करेत्ता पुरिस- 'नियंसेह', 'नियंसेत्ता' सर्वालङ्कारसहस्सवाहिणी सीयं दुरुहेह, दुरुहेत्ता सा- विभूषितं कुरुतः, कृत्वा पुरुषसहस्रवत्थीए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क- वाहिनीं शिबिकाम् (दुरुहेह) चच्चर - चउम्मुह - महापह--पहेसु महया- (दुरुहेत्ता) श्रावस्त्यां नगर्यां शृंगाटकमहया सद्देणं उग्रोसेमाणा-उग्रोसेमाणा त्रिक-चतुष्क-चत्वर-चतुर्मुख-महापथएवं वदह-एवं खलु देवाणुप्पिया! गोसालं पथेषु महता-महता शब्देन मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी, अरहा उद्घोषयन्तः-उद्घोषयन्तः एवं अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, वदत-एवं खलु देवानुप्रियाः ! गोशालः सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिणे जिणसदं मंखलिपुत्रः जिनः जिनप्रलापी, अर्हत् पगासेमाणे विहरित्ता इमीसे ___अर्हत्प्रलापी, केवली केवलिप्रलापी, ओसप्पिणीए चउवीसाए तित्थगराणं सर्वज्ञः सर्वज्ञप्रलापी, जिनः जिनशब्दं चरिमे तित्थगरे, सिद्धे जाव सब- प्रकाशयन् विहृत्य अस्याम् अवसर्पिण्यां दुक्खप्पहीणे-इड्डिसक्कारसमुदएणं मम चतुर्विंशतिः तीर्थकराणां चरमः सरीरगस्स नीहरणं करेह॥
तीर्थकरः, सिद्धः यावत् सर्वदुःखप्रहीण:-ऋद्धिसत्कारसमुदयेन मम शरीरस्य निर्हरणं कुरुतः।
बुलाकर इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो! तुम मुझे मृत्यु को प्राप्त जानकर सुरभित गंधोदक से स्नान करवाना, स्नान करा कर रोएंदार सुकुमार गंध-वस्त्र से शरीर को पौंछना, पौंछकर सरस गोशीर्ष चंदन का गात्र पर अनुलेप करना। अनुलेप कर बहुमूल्य अथवा महापुरुष योग्य हंसलक्षण वाला पट-शाटक पहनाना। पहनाकर सर्व अलंकारों से विभूषित करना, विभूषित कर हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका में चढ़ाना, चढ़ाकर श्रावस्ती नगरी के शृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों और मार्गों पर महान्महान् शब्दों के द्वारा उद्घोष करते हुए, उद्घोष करते हुए इस प्रकार कहनादेवानुप्रियो! मंखलिपुत्र गोशाल जिन होकर जिन-प्रलापी, अर्हत् होकर अर्हत-प्रलापी, केवली होकर केवली-प्रलापी, सर्वज्ञ होकर सर्वज्ञ-प्रलापी, जिन होकर 'जिन' शब्द से अपने आपको प्रकाशित करता हुआ, विहरण कर इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों में अंतिम तीर्थंकर था, उसने सिद्ध यावत् सब दुःखों को क्षीण कर दिया। इस प्रकार ऋद्धि-सत्कार-समुदय के द्वारा मेरे शरीर की मरणोत्तर क्रिया करना।
१४०. तए णं ते आजीविया थेरा ततः ते आजीविकाः स्थविराः १४०. आजीवक-स्थविरों ने मंखलिपुत्र गोशाल
गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमहें गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य एतमर्थं के इस अर्थ को विनयपूर्वक स्वीकार किया। विणएणं पडिसुणेति॥
विनयेन प्रतिशृण्वन्ति।
गोसालस्स परिणाम-परिवत्तणपुव्वं गोशालस्य परिणाम-परिवर्तनपूर्व गोशाल का परिणाम-परिवर्तनपूर्वक कालधम्म-पदं
कालधर्म-पदम्
कालधर्म-पद १४१. तए णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ततः तस्य गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य १४१. 'मंखलिपुत्र गोशाल के सातवीं रात में
सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि पडिलद्ध- सप्तरात्रे परिणमति (परिणममाणंसि) परिणमन करते हुए, सम्यक्त्व के प्राप्त होने सम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झथिए प्रतिलब्धसम्यक्त्वस्य अयमेतद्रूपः पर इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, चिंतिए पथिए मणोगए संकप्पे आध्यात्मिकः चिन्तितः प्रार्थितः अभिलाषात्मक मनोगत संकल्प उत्पन्न समुप्पज्जित्था-नो खलु अहं जिणे ___ मनोगतः संकल्पः समुदपादि-नो खलु -हुआ-मैं जिन होकर जिन-प्रलापी नहीं हूं, जिणप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, अहं जिनः जिनप्रलापी, अर्हत् अर्हत्- अर्हत् होकर अर्हत्-प्रलापी नहीं हूं, केवली केवली केवलिप्पलावी, सवण्णू सव्व- प्रलापी, केवली केवलिप्रलापी, सर्वज्ञः होकर केवली-प्रलापी नहीं हूं, सर्वज्ञ होकर ण्णुप्पलावी, जिणे जिणसदं पगासेमाणे सर्वज्ञप्रलापी, जिनः जिनशब्द सर्वज्ञ-प्रलापी नहीं हूं, मैंने जिन न होकर जिन विहरिते अहण्णं गोसाले चेव मंखलिपत्ते प्रकाशयन् विहरतः अहं गोशालः चैव शब्द से प्रकाशित करते हुए विहार किया। मैं समणघायए समणमारए समणपडिणीए मंखलिपुत्रः चैव श्रमणघातकः श्रमण- ही मंखलिपुत्र गोशाल हूं। मैं श्रमण-घातक, आयरियउवज्झायाणं अयसकारए मारकः श्रमणप्रत्यनीकः आचार्य- श्रमण-मारक, श्रमण-प्रत्यनीक, आचार्यअवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहिं उपाध्यायानाम् अयशकारकः अवर्ण- उपाध्यायों का अयश करने वाला, अवर्ण
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