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भगवई
१. सूत्र १०५-११६
प्राचीन भारत में २५०० - २६०० वर्षों पूर्व भी विभिन्न सम्प्रदायों एवं मतावलम्बियों के बीच वाद-विवाद, टकराव आदि की घटनाओं के प्रचुर उल्लेख प्राच्य साहित्य में उपलब्ध है। प्रस्तुत शतक में गोशालक ने भगवान् महावीर के समवसरण में स्वयं उपस्थित होकर अपने सिद्धांतों को प्रस्तुत कर भगवान् महावीर को असत्य घोषित करने की घटना को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इसी चर्चा प्रसंग में भगवान् महावीर के दो निर्ग्रन्थों-सर्वानुभूति अनगार एवं सुनक्षत्र अनगार द्वारा प्रतिकार किए जाने पर गोशालक क्रोध के आवेश में आकर तेजोलेश्या द्वारा उन्हें भस्मीभूत कर देता है और अंत में स्वयं भगवान् महावीर द्वारा सत्योद्घाटन किए जाने पर क्रुद्ध होकर उन पर भी गोशालक तेजोलेश्या का प्रयोग कर उन्हें गोसालस्स पडिगमण-पदं १२०. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्साए हव्वमागए तमहं असाहेमाणे, रुंदाई पलोएमाणे, दीहुण्हाई नीससमाणे, दाढियाए लोमाई लुंचमाणे, अबडुं कंडूयमाणे, पुयलिं पप्फोडेमाणे, हत्थे विणिगुणमाणे, दोहि वि पाएहिं भूमिं कोट्टेमाणे हा हा अहो! हओहमस्सि ति कट्ट समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सावत्थी नगरी, जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए, मज्जपाणगं पियमाणे, अभिक्खणं गायमाणे, अभिक्खणं नच्चमाणे, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे, सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचिणउदएणं गायाई परिसिंचमाणे विहरइ ॥
सूत्र १२०
शब्द-विमर्श
२६६
भाष्य
मारने की कोशिश करता है। चर्चा में जो विवाद हुआ, उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप पूरे श्रावस्ती नगर में चर्चा फैल जाती है और 'कौन सत्य ?' कौन असत्य ?' के विषय में जन चर्चा चलती है। आखिर गोशालक स्वयं अपनी ही तेजोलेश्या से आहत हो जाता है। भगवान् महावीर पर भी तेजोलेश्या का दुष्प्रभाव छह मास तक तीव्र पीड़ा उत्पन्न करने वाला सिद्ध हुआ।
इस समग्र घटना-प्रसंग के दो पहलू हैं
१. इतना घोर विरोध होने पर भी भगवान् महावीर द्वारा क्षमा का प्रयोग ।
अबडु (अवटू) - गर्दन का पृष्ठ भाग । ' पुलि-वृत्तिकार ने इसे 'पुततलि' माना है।' इससे इसका अर्थ होता है - कूल्हा
पफोडेमाणे- चमरेन्द्र के प्रसंग में 'अप्फोडेमाणे' का अर्थ 'करास्फोटन' किया गया है। उसका तात्पर्य है- हाथों को आकाश में १. भ. वृ. १५/१२० - अवडुं' ति कृकाटिकां ।
२. वही, १५ / १२० - पुयलिं पप्फोडेमाणे' त्ति 'पुततलीं' पुतप्रदेशं प्रस्फोटयन् । ३. भ. वृ. ३ / ११२ - ' अप्फोडेइ' त्ति करास्फोट करोति ।
४. आप्टे प्रस्फोटनं - Striking, beating.
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गोशालस्य प्रतिक्रमण-पदम्
ततः सः गोशालः मंखलिपुत्रः यस्यार्थेन 'हव्वं' आगतः तम् अर्थम् असाधयन् 'रुंदाई' प्रलोकमानः, दीर्घोष्णानि निःश्वसन्, 'दाढियाए' लोमानि लुञ्चन्, अवटुं कण्डुयमानः, 'पुयलिं' प्रस्फोटयन् हस्तान् 'विणिगुणमाणे', द्वाभ्याम् अपि पादाभ्यां भूमिं कुट्टन् हा हा अहो हतः अहम् अस्मि इति कृत्वा श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य अन्तिकात् कोष्ठकात् चैत्यात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव श्रावस्ती नगरी यत्रैव हालाहलायाः कुंभकार्याः कुम्भकारापणे तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य हालाहलायाः कुंभकार्याः कुम्भकारापणे आम्रकूणक- हस्तगतः मद्यपानकं पिबन् अभीक्ष्णं गायन्, अभीक्ष्णं नृत्यन् अभीक्ष्णं हालाहलायाः कुम्भकार्याः अञ्जलिकर्म कुर्वन्, शीतलकेन मृत्तिकापानकेन आतञ्चन उदकेन गात्राणि परिषिञ्चत् विहरति ।
भाष्य
२. गोशालक द्वारा असत्यावलम्बन, तीव्र क्रोध और दो साधुओं पर तेजोलेश्या का घातक प्रयोग तथा भगवान् महावीर पर भी तेजोलेश्या का पीड़ाकारक प्रयोग आदि।
श. १५ : सू. १२०
गोशाल का प्रतिक्रमण-पद
१२०. 'मंखलिपुत्र गोशाल जिस प्रयोजन के लिए शीघ्र आया, उस प्रयोजन को सिद्ध न कर पाने पर, दिशाओं की ओर दीर्घ दृष्टिपात करते हुए, दीर्घ और गर्म निःश्वास लेते हुए, दाढी के बालों को नोचते हुए, गर्दन के पृष्ठ भाग को खुजलाते हुए, कूल्हे के भाग का प्रस्फोट करते हुए, हाथों को मलता हुआ, दोनों पैरों को भूमि पर पटकते हुए 'हा हा, अहो' इस प्रकार बोलता हुआ श्रमण भगवान् महावीर के पास से, कोष्ठक चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर जहां श्रावस्ती नगरी थी, जहां हालाहला कुंभकारी का कुंभकारापण था, वहां आया, आकर हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण में आम्रफल को हाथ में लेकर मद्यपानक को पीते हुए, बार-बार गाते हुए, बार-बार नाचते हुए, बार बार हालाहला कुंभकारी को प्रणाम करते हुए मिट्टी के बर्तन में रहे हुए आतञ्चन उदक से अपने गात्र का परिसिंचन करता हुआ विहरण कर रहा था।
उछालना। यहां पर 'पुतप्रदेश का प्रस्फोट करने' का तात्पर्य है- कूल्हे के भाग को उछालना अथवा उस पर हाथ से प्रहार करना। आचार्य भिक्षु ने इसका अर्थ किया है-साथल को कूटना । *
आयंचिण उदअ ( आतञ्चन - उदक) - दो या अधिक प्रकार के तरल पदार्थों के मिश्रण से बनाया गया तरल पदार्थ जो गाढा बन जाता है।
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५. गोसाला री चौपई, ढाल २० से पूर्व दूहा ४ (भ. जो. खं. ४, पृ. ४१० ) - बले साथल बेहूं कूटतो थको"।
&. Monier-Monier Williams Sanskrit English Dictionary
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