SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई सरीरगं अणुष्पविसामि, अणुष्पविसित्ता बावीसं वासाई पढमं पउट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से दोचे उट्टपरिहारे से णं उद्दंडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेयंसि एणेज्जगस्स सरीरगं विष्पजहामि, विष्पजहित्ता मल्लरामस्स सरीरगं अणुष्पविसामि, अणुष्पविसित्ता एकवीस वासाई दोच्चं उट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से तच्चे पउट्टपरिहारे से णं चंपाए नगरीए बहिया अंगमंदिरंसि चेयंसि मल्लरामस्स सरीरगं विष्पजहामि, विष्पजहित्ता मंडियस्स सरीरगं अणुष्पविसामि, अणुष्पविसित्ता वीसं वासाई तच्चं पट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे से णं वाणारसीए नगरीए बहिया काममहावणंसि चेइयंसि मंडियस्स सरीरगं विप्पजहामि, विष्पजहित्ता रोहस्स सरीरगं अणुष्पविसामि, अणुष्पविसित्ता एकूणवीसं वासाई उत्थं पउट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से पंचमे उट्टपरिहारे से णं आलभियाए नगरीए बहिया पत्तकाल - गंसि चेयंसि रोहस्स सरीरगं विप्पजहामि विष्पजहित्ता भारद्दाइस्स सरीरगं अणुष्पविसामि, अणुष्पविसित्ता अट्ठारस वासाई पंचमं पउट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से छट्ठे पउट्टपरिहारे से णं वेसालीए नगरीए बहिया कोंडियायणंसि चेयंसि भारद्दाइस्स सरीरं विष्पजहामि, विष्पजहित्ता अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं अणुष्पविसामि अणुष्पविसित्ता सत्तरस वासाई छठ्ठे पउट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से सत्तमे पउट्टपरिहारे से णं इहेब सावत्थीए नगरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अज्जुणग गोयमपुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं सीयसहं उपहसहं खुहास विविदंसमसगपरीसहोवसग्गसहं थिरसंघयणं ति कट्टु Jain Education International २६१ शरीरकम् अनुप्रविशामि अनुप्रविश्य द्वाविंशतिः वर्षाणि प्रथमं 'पउट्ट परिहारं ' परिहरामि । तत्र यः सः द्वितीयः 'पउट्ट परिहारे' सः उद्दण्डपुरस्य बहिः चन्द्रावतरणे चैत्ये एणेयकस्य शरीरकं विप्रजहामि, विप्रहाय मल्लरामस्य शरीरकम् अनुप्रविशामि अनुप्रविश्य एकविंशतिः वर्षाणि द्वितीयं 'पउट्ट परिहारं' परिहरामि । तत्र यः सः तृतीयः 'पउट्ट परिहारे' सः चम्पायाः नगर्याः बहिः अङ्गमन्दिरे चैत्ये मल्लरामस्य शरीरकं विप्रजहामि, विप्रहाय मण्डितस्य शरीरकम् अनुप्रविशामि अनुप्रविश्य विंशतिः वर्षाणि 'पउट्ट परिहारं ' परिहरामि । तत्र यः सः चतुर्थः 'पउट्ट परिहारे' सः वाणारस्याः नगर्याः बहिः काममहावने चैत्ये मण्डितस्य शरीरकं विप्रजहामि, विप्रहाय रोहस्य शरीरकम् अनुप्रविशामि अनुप्रविश्य एकोनविंशतिः वर्षाणि चतुर्थं 'पउट्ट परिहारं ' परिहरामि । तत्र यः सः पंचमः 'पउट्ट परिहारे' सः आलभिकायाः नगर्याः बहिः प्राप्तकाले चैत्ये रोहस्य शरीरकं विप्रजहामि, विप्रहाय भारद्वाजस्य शरीरकम् अनुप्रविशामि अनुप्रविश्य अष्टादश वर्षाणि पंचमं 'पउट्ट परिहारं ' परिहरामि । तत्र यः सः षष्ठः 'पउट्ट परिहारे' सः वैशाल्याः नगर्याः बहिः कुण्डियायणे चैत्ये भारजस्य शरीरकं विप्रजहामि, विप्रहाय अर्जुनकस्य गौतमपुत्रस्य शरीरकम् अनुप्रविशामि अनुप्रविश्य सप्तदश वर्षाणि षष्ठं 'पउट्ट परिहारं ' परिहरामि । तत्र यः सः सप्तमः 'पउट्ट परिहारे' सः इहैव श्रावस्त्यां नगर्यां हालाहलायाः कुम्भकार्याः कुम्भकारापणे अर्जुनकस्य गौतमपुत्रकस्य शरीरकं विप्रजहामि, विप्रहाय गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य शरीरकम् अलं स्थिरं ध्रुवं धारणीयं शीतसहं उष्णसहं क्षुधासहं विविधदंशमसक परीषहोपसर्गसहं स्थिर For Private & Personal Use Only श. १५ : सू. १०१ अनुप्रवेश कर बाईस वर्ष तक प्रथम 'पोट्ट परिहार' में रहा । दूसरे पोट्ट परिहार में मैंने उद्दण्डपुर नगर के बाहर चंद्रावतरण चैत्य में एणेयक के शरीर को छोड़ा छोड़कर मल्लराम के शरीर में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर इक्कीस वर्ष तक दूसरे पोट्ट परिहार में रहा । तीसरे पोट्ट परिहार में मैंने चंपा नगरी के बाहर अंगमंदिर चैत्य में मल्लराम के शरीर को छोड़ा, छोड़कर मंडित के शरीर में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर बीस वर्ष तक तीसरे पोट्ट परिहार में रहा। चौथे पोट्ट परिहार में मैंने वाराणसी नगरी के बाहर काममहावन चैत्य में मंडित के शरीर को छोड़ा, छोड़कर रोह के शरीर में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर उन्नीस वर्ष तक चौथे 'पोट्ट परिहार' में रहा। पांचवे पोट्ट परिहार में मैंने आलभिका नगरी के बाहर प्राप्तकालक चैत्य में रोह के शरीर को छोड़ा छोड़कर भारद्वाज के शरीर में अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर अठारह वर्ष तक पांचवें 'पोट्ट परिहार' में रहा। छठे पोट्ट परिहार में मैंने वैशाली नगरी के बाहर कोण्डिकायन चैत्य में भारद्वाज के शरीर को छोड़ा, छोड़कर गौतम पुत्र अर्जुनक के शरीर में अनुप्रवेश किया। अनुप्रवेश कर सतरह वर्ष तक छठे पोट्ट परिहार में रहा। सातवें पोट्ट परिहार में मैंने इसी श्रावस्ती नगरी के हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण में गौतमपुत्र अर्जुनक के शरीर को छोड़ा, छोड़कर मैंने मंखलिपुत्र गोशाल के शरीर को समर्थ, स्थिर, ध्रुव, धारण करने योग्य, सर्दी को सहन करने वाला, गर्मी को सहन करने वाला, क्षुधा को सहन करने वाला, विविध दंश, मशक आदि परीषह और उपसर्ग को www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy