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________________ २८६ भगवई मंखिलपुत्र गोशाल के इस प्रकार कहने पर मैं जहां हालाहाल कुंभकारी का कुंभकारापण था जहां मंखलिपुत्र गोशाल था, वहां आया। श. १५ : सू. १८ तए णं अहं गोसालेणं मखलिपुत्तेणं एवं ततः अहं गोशालेन मंखलिपुत्रेण एवम् वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभ- उक्ते सति यत्रैव हालाहलायाः कारीए कुंभकारावणे, जेणेव गोसाले कुम्भकार्याः कुम्भकारापणः यत्रैव मंखलिपुत्ते, तेणेव उवागच्छामि। गोशालः मंखलिपुत्रः तत्रैव उपागच्छामि। तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते ममं एवं । तत सः गोशाल: मंखलिपुत्रः माम् वयासी-एवं खलु आणंदा! इओ एवमवादीत्-एवं खलु आनन्द! इतः चिरातीयाए अद्धाए केइ उचावया वणिया चिरातीते अध्वनि केचिद् उच्चावचाः एवं तं चेव सव्वं निरवसेस भणियब्वं जाव वणिजः एवं तचैव सर्व निरवशेष नियगं नगरं साहिए। तं गच्छ णं तमं भणितव्यं यावत् निजकं नगरं साधितः। आणंदा! तव धम्मायरियस्स तत् गच्छ त्वम् आनन्द! तव धम्मोवएसगस्स समणस्स नायपुत्तस्स धर्माचार्यस्य धर्मोपदेशकस्य श्रमणस्य एयमद्वं परिकहेहि॥ ज्ञातपुत्रस्य एतमर्थं परिकथय। मंखलिपुत्र गोशाल ने इस प्रकार कहा-चिर अतीत काल में कुछ उच्च तथा निम्न वणिक इस प्रकार पूर्ववत् सर्व निरवशेष वक्तव्य है यावत् अपने नगर पहुंचा दिया। इसलिए आनन्द! तुम जाओ तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र को यह अर्थ कहो। ६८. तं पभू णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तत् प्रभुः भदन्त! गोशाल: मंखलिपुत्रः ६८. भंते! क्या मंखलिपुत्र गोशाल अपने तपः तवेणं तेएणं एगाहचं कूडाहचं भासरासिं तपसा तेजसा एकाहत्यं कूटाहत्यं तेज से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख करेत्तए? विसरणं भंते! गोसालस्स भस्मराशिं कर्तुम? विषयः भदन्त! का ढेर करने में प्रभु है? भंते! क्या तपः-तेज मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहचं गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य तपसा से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का कूडाहचं भासरासिं करेत्तए? समत्थे णं तेजसा एकाहत्यं कूटाहत्यं भस्मराशि ___ढेर करना मंखलिपुत्र गोशाल का विषय है? भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं कर्तुम्? समर्थः भदन्त! गोशालः क्या मंखलिपुत्र गोशाल तपः-तेज से एक एगाहचं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? मंखलिपुत्रः तपसा तेजसा एकाहत्यं । प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर कूटाहत्यं भस्मराशिं कर्तुम् ? करने में समर्थ है? पभू णं आणंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते प्रभुः आनन्द! गोशालः मंखलिपुत्रः आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशाल अपने तपः-तेज तवेणं तेएणं एगाहचं कूडाहचं तपसा तेजसा एकाहत्यं कूटाहत्यं में एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का भासरासिं करेत्तए। विसए णं आणंदा! भस्मराशिं कर्तुम्। विषयः आनन्द! ढेर करने में प्रभु है। आनन्द! अपने तपः-तेज गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं गोशालस्यः मंखलिपुत्रस्य तपसा से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का एगाहचं कूडाहचं भासरासिं करेत्तए। तेजसा एकाहत्यं कूटाहत्यं भस्मराशिं ढेर करना मंखलिपुत्र गोशाल का विषय है। समत्थे णं आणंदा! गोसाले मखलिपुत्ते कर्तुम्। समर्थः आनन्द! गोशालः आनन्द! मंखलिपुत्र गोशाल अपने तपः-तेज तवेणं तेएणं एगाहचं कूडाहचं मंखलिपुत्रः तपसा तेजसा एकाहत्यं से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का भासरासिं करेत्तए, नो चेव णं अरहते __कूटाहत्यं भस्मराशिं कर्तुम् , नो चैव ढेर करने में समर्थ है। किन्तु वह अर्हत् भगवंते, पारियावणियं पुण करेज्जा। अर्हतः भगवतः, पारितापनिकी पुनः भगवान् को एक प्रहार में कूटाघात की भांति जावतिए णं आणंदा! गोसालस्स कुर्यात्। यावत् आनन्द! गोशालस्य राख का ढेर नहीं कर सकता, वह उन्हें मंखलिपुत्तस्स तवे तेए, एत्तो मंखलिपुत्रस्य तपः तेजः, एतस्मात् । परितापित कर सकता है। आनन्द! अणंतगुणविसिट्टतराए चेव तवे तए अनन्तगुणविशिष्टतरकं चैव तपः तेजः मंखलिपुत्र गोशाल का जितना तपः-तेज है, अणगाराणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण अनगाराणां भगवतां, क्षांतिक्षमाः पुनः उससे अनन्त गुण विशिष्टतर तपः-तेज अणगारा भगवंतो। जावइए णं आणंदा! __ अनगाराः भगवंतः। यावत् आनन्द! अनगार भगवान् का है, अनगार भगवान् अणगाराणं भगवंताणं तवे तेए एत्तो ___ अनगाराणां भगवतां तपः तेजः क्षांतिक्षम होते हैं। आनन्द! अनगार भगवान् अणंतगुणविसिट्टतराए चेव तवे तेए एतस्मात् अनंतगुणविशिष्टतरकं चैव का जितना तपःतेज है उससे अनंत गुण थेराणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण थेरा तपः तेजः स्थविराणां भगवतां, विशिष्टतर तपःतेज स्थविर भगवान् का है, भगवंतो। जावतिए णं आणंदा! थेराणं ____क्षांतिक्षमाः पुनः स्थविराः भगवंतः । स्थविर भगवान् क्षांतिक्षम होते हैं। आनन्द! भगवंताणं तवे तेए एत्तो अणंत- यावत् आनन्द! स्थविराणां भगवतां स्थविर भगवान् का जितना तपः-तेज है, गुणविसिट्टतराए चेव तवे तेए अरहंताणं तपः तेजः एतस्मात् अनंतगुणविशिष्ट- उससे अनन्त गुण विशिष्टतर तपः-तेज भगवंताणं, खंतिखमा पुण अरहंता तरकं चैव तपः तेजः अर्हतां भगवतां, अर्हत् भगवान् का है, अर्हत् भगवान् भगवंतो। तं पभू णं आणंदा! गोसाले क्षांतिक्षमाः पुनः अर्हन्तः भगवंतः। क्षांतिक्षम होते हैं। इसलिए आनन्द! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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