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________________ श. १२ : उ. १ : सू. ७-६ वण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबिइ दब्भसंथारोवगए पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ ॥ १. सूत्र ६ शंख ने प्रतिपूर्ण पौषध का संकल्प किया, उसमें प्रतिपूर्ण पौषध का स्वरूप निर्दिष्ट है: • उपवास - चतुर्विध आहार का त्याग। • ब्रह्मचर्य । ७. तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव साई - साइं गिहाई, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, वक्खडावेत्ता अण्णमण्णं सद्दावेंति, सहावेत्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हेहिं से विउले साइमे उवक्खडाविए, संखे य णं समणोवासए नो हव्वमागच्छ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं संखं समणोवासगं सद्दावेत्तए ॥ असणपाण खाइम - ८. तए णं से पोक्खली समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी -अच्छह णं तुब्भे देवाणुपिया ! सुनिव्बुयवीसत्था, अहण्णं संखं समणोवासगं सद्दावेमित्ति कट्ट तेसिं समणोवासगाणं अंतियाओ पडनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सावत्थीए नगरीए मज्झमज्झेणं जेणेव संखस्स समणोवासगस्स गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता संखस्स समणोवासगस्स गिहं अणुपविट्ठे ॥ ६. तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलिं समणोवासयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टा आसणाओ एक: अद्वितीयः दर्भसंस्तारोपगतः पाक्षिकं पौषधं प्रतिजाग्रत् विहरति । Jain Education International ८ भाष्य • मण सुवर्ण का वर्जन | • माला, सुगंधित द्रव्य और विलेपन का वर्जन । • शस्त्र और मूसल की प्रवृत्ति का वर्जन । आनंद श्रावक ने अपनी पौषधशाला में पौषध किया था, वहां यही विवरण मिलता है। ' ततः ते श्रमणोपासकाः यत्रैव श्रावस्ती नगरी यत्रैव स्वकानि-स्वकानि गृहानि, तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागम्य विपुलम् अशनं पानं खाद्यं स्वाद्यम् उपस्कारयन्ति, उपस्कार्य अन्योन्यं शब्दयन्ति शब्दयित्वा एवमवादीत्-एवं खलु देवानुप्रियाः ! अस्माभिः तत् विपुलम् अशन-पान-खाद्य-स्वाद्यम् उपस्कारितम्, शङ्खः च श्रमणोपासकः नो 'हव्वं' आगच्छति, तत् श्रेयः खलु देवानुप्रियाः ! अस्माकं शङ्खः श्रमणोपासकं शब्दयितुम् । ततः सः पुष्कली श्रमणोपासकः तान् श्रमणोपासकान् एवमवादीत्-आसध्वम् यूयं देवानुप्रियाः ! सुनिवृत्त - विश्वस्ताः, अहं शङ्ख श्रमणोपासकं शब्दयामि इति कृत्वा तेषां श्रमणोपासकानाम् अन्तिकात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य श्रावस्त्याः नगर्याः मध्यमध्येन यत्रैव शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य गृहम्, तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य गृहम् अनुप्रविष्टः । ततः सा उत्पला श्रमणोपासिका पुष्कलिं श्रमणोपासकम् आयन्तं पश्यति दृष्ट्वा हृष्टतुष्टा आसनात् भगवई पौषधशाला में ब्रह्मचर्य पूर्वक उपवास किया, सुवर्ण मणि को छोड़कर, माला, सुगंधित चूर्ण और विलेपन से रहित, शस्त्र मूसल आदि का वर्जन कर अकेले, सहाय्य निरपेक्ष होकर दर्भ संस्तारक पर बैठकर पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करने लगा । For Private & Personal Use Only ७. वे श्रमणोपासक जहां श्रावस्ती नगरी थी, जहां अपना अपना घर था, वहां आए । वहां आकर विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को तैयार करवाया, तैयार करवाकर एक-दूसरे को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार बोले- देवानुप्रिय ! हमने वह विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाया है। देवानुप्रिय ! श्रमणोपासक शंख अभी तक नहीं आया, इसलिए यह श्रेयस्कर है कि हम श्रमणोपासक शंख को बुला लाएं। ८. वह श्रमणोपासक पुष्कली उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार बोला- देवानुप्रियो ! तुम अच्छी तरह बैठो, विश्वस्त रहो, मैं श्रमणोपासक शंख को बुला लाता हूं। ऐसा कहकर उसने श्रमणोपासकों के पास से प्रतिनिष्क्रमण किया। प्रतिनिष्क्रमण कर श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच जहां श्रमणोपासक शंख का घर था, वहां आया, वहां आकर श्रमणोपासक शंख के घर में अनुप्रविष्ट हुआ। १. उवा. १/६० - पोषहसालाए पोषहियस्स बंभयारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स ववगयमालावण्णविलेवणस्स निक्खित्तसत्थमूसलस्स एगस्स अबीयस्स दब्भसंथारोवगए............. | ६. श्रमणोपासका उत्पला ने श्रमणोपासक पुष्कली को आते हुए देखा, देखकर हृष्ट तुष्ट हो गई, आसन से उठी, उठकर सात www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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