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________________ भगवई २७७ श. १५ : सू. ७७ तबोकम्मेणं उई बाहाओ पगिज्झिय- तपः-कर्मणा उर्ध्वं बाह प्रगृह्य-प्रगृह्य पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए सूराभिमुखः आतापनभूम्याम् आतापयन् आयावेमाणे विहरइ। तए णं से गोसाले विहरति। ततः सः गोशालः मंखलिपुत्रः मंखलिपुत्ते अंतो छण्हं मासाणं अन्तः षण्णां मासानां संक्षिप्त-विपुल- संखित्तविउलतेयलेसे जाए॥ तेजोलेश्यः जातः। आतापन भूमि में सूर्य के सामने दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर आतापना लेता है। मंखलिपुत्र गोशाल छह माह के अंतराल में संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या वाला हो गया। गोसालस्स पुचकहा-उवसंहार-पदं गोशालस्य पूर्वकथा-उपसंहार-पदम् गोशाल की पूर्व कथा का उपसंहार-पद ७७. तए णं तस्स गोसालस्स मखलि- ततः तस्य गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य ७७. 'मंखलिपुत्र गोशाल के पास एक दिन ये पुत्तस्स अण्णदा कदायि इमे छ दिसाचरा अन्यदा कदाचित् इमे षट् दिक्चराः छह दिशाचर' प्रकट हुए, जैसे-शान, कलंद, अंतियं पाउभवित्था, तं जहा-साणे, अन्तिकं प्रादुरभूवन् तद्यथा-सानः, कर्णिकार, अच्छिद, अग्नि-वैश्यायन और कलदे, कणियारे, अच्छिदे, अग्गि- कलन्दः, कर्णिकारः, अच्छिदः, अग्नि- अर्जुन गोमायुपुत्र । उन दिशाचरों ने अष्टविध वेसायणे, अज्जुणे, गोमायुपुत्ते। तए णं तं वैश्यायनः, अर्जुनः गोमायुपुत्रः । ततः ते महानिमित्त का पूर्वगत के दसवें अंग से" छ दिसाचरा अट्टविहं पुञ्चगयं मग्गदसमं षट् दिक्चराः अष्टविधं पूर्वगतं अपने-अपने मति दर्शन से नि!हण किया। सरहिं-सएहिं मतिदसणेहिं निज्जूहंति, मार्गदशमं स्वकैः स्वकैः मतिदर्शनैः । निर्वृहण कर मंखलिपुत्र गोशाल के सामने निज्जूहित्ता गोसालं मखलिपुत्तं निप॒थयन्ति, नियूर्थयित्वा गोशालं उपस्थित किया। उस अष्टांग महानिमित्त के उवट्ठाइंसु। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते मंखलिपुत्रम् उपास्थुः । (उवट्ठाइंसु) सामान्य अध्ययन मात्र से सब प्राणी, सब तेणं अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ ततः सः गोशालः मंखलिपुत्रः तेन भूत, सब जीव और सब सत्त्वों के लिए इन उल्लोयमेत्तेणं सब्वेसिं पाणाणं, सब्वेसि अष्टांगस्य महानिमित्तस्य केनचित् छह अनतिक्रमणीय व्याकरणों का व्याकरण भूयाणं, सब्वेसिं जीवाणं, सव्वेसिं उल्लोकमात्रेण सर्वेषां प्राणानाम्, किया, जैसेसत्ताणं इमाई छ अणइक्कमणिज्जाइं वा- सर्वेषां भूतानाम्, सर्वेषां जीवानाम्, गरणाई वागरेति, तं जहा सर्वेषां सत्वानाम् इमानि षट् अनतिक्रमणीयानि व्याकरणानि व्याकरोति, तद्यथालाभं अलाभं सुहं दुक्ख, लाभम् अलाभम् सुखं दुःखं, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवन तथा जीवियं मरणं तहा। जीवितं मरणं तथा। मरण। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते णं ततः सः गोशालः मंखलिपुत्रः तेन मंखलिपुत्र गोशाल अष्टांग महानिमित्त अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ अष्टांगस्य महानिमित्तस्य केनचित् के सामान्य अध्ययनमात्र से श्रावस्ती नगर में उल्लोयमेत्तेणं सावत्थीए नगरीए अजिणे उल्लोकमात्रेण श्रावस्त्यां नगर्याम् अजिन होकर जिन-प्रलापी, अर्हत् न होकर जिणप्पलावी, अणरहा अरहप्पलावी, अजिनः जिनप्रलापी, अनर्हत् अर्हत्- अर्हत् प्रलापी, केवली न होकर केवली. अकेवली केवलिप्पलावी, असवण्णू प्रलापी, अकेवली केवलीप्रलापी, प्रलापी, सर्वज्ञ न होकर सर्वज्ञ-प्रलापी, जिन सवण्णुप्पलावी, अजिणे जिणसद्ध असर्वज्ञः सर्वज्ञप्रलापी, अजिनः जिन- न होकर जिन शब्द से अपने आपको प्रकाशित पगासेमाणे विहरइ, तं नो खलु गोयमा! शब्दं प्रकाशयन् विहरति, तत् नो खलु करता हुआ विहरण करने लगा। इसलिए गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी, गौतम! गोशालः मंखलिपुत्रः जिनः गौतम! मंखलिपुत्र गोशाल जिन होकर जिनअरहा अरहप्पलावी, केवली केवलि-प्प- जिनप्रलापी, अर्हत् अर्हत्प्रलापी प्रलापी नहीं है, अर्हत् होकर अर्हत्-प्रलापी लावी, सव्वण्णू सव्वण्णुष्पलावी, जिणे केवली केवलिप्रलापी, सर्वज्ञः सर्वज्ञ- नहीं है, केवली होकर केवली-प्रलापी नहीं है, जिणसई पगासेमाणे विहरइ, गोसाले णं प्रलापी, जिनः जिन-शब्दं प्रकाशयन् सर्वज्ञ होकर सर्वज्ञ-प्रलापी नहीं है। अजिन मंखलिपुत्ते अजिणे जिणप्पलावी, विहरति, गोशालः मंखलिपुत्रः अजिनः होकर जिन शब्द से अपने आपको प्रकाशित अणरहा अरहप्पलावी, अकेवली जिनप्रलापी, अनर्हत् अर्हत्प्रलापी, करता हुआ विहार कर रहा है। मंखलिपुत्र केवलिप्पलावी, असव्वण्णू सव्वण्णुप्पला- अकेवली केवलिप्रलापी, असर्वज्ञः गोशाल अजिन होकर जिन-प्रलापी है, अर्हत् वी, अजिणे जिणसई पासेमाणे विहरई॥ सर्वज्ञप्रलापी, अजिनः जिनशब्द न होकर अर्हत्-प्रलापी है, केवली न होकर प्रकाशयन् विहरति। केवली-प्रलापी है, सर्वज्ञ न होकर सर्वज्ञप्रलापी है, जिन न होकर जिन शब्द से अपने ' आपको प्रकाशित करता हुआ विहार कर रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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