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कमाग
श. १५ : सू. ६६ २७०
भगवई भाषा, आहार और विचार-ये सब प्राण-शक्ति के ऋणी हैं। प्राणशक्ति कोई व्यक्ति विशिष्ट साधना के द्वारा अपनी इस तेजस तैजस शरीर से निःसृत है।
___ शक्ति को विकसित कर लेता है और किसी व्यक्ति को अनायास प्रश्न होता है कि वह तैजस शरीर किसके द्वारा संचालित है? ही गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है तो साधना में तीव्रता आती है वह प्राणधारा को प्रवाहित अपने आप कर रहा है या किसी के द्वारा और कुंडलिनी का अधिक विकास हो जाता है। जिस व्यक्ति का प्रेरित होकर कर रहा है? यदि अपने आप कर रहा है तो तैजस तैजस शरीर जागृत है, उस व्यक्ति के सान्निध्य में जाने से भी दूसरे शरीर जैसा मनुष्य में है वैसा पशु में भी है, पक्षियों में भी है और व्यक्ति की कुंडलिनी को (तैजस शरीर को) उत्तेजना मिल जाती छोटे-से-छोटे प्राणी में भी है। वनस्पति में भी तैजस शरीर है, प्राण- है और वह अर्द्धजागृत कुंडलिनी पूर्ण जागृत हो जाती है। प्रश्न है विद्युत् है। वनस्पति में भी ओरा होता है, आभामंडल होता है। विद्युत् प्रवाहों का। 'क' और 'ख' दो व्यक्ति हैं। 'क' के विद्युत्आभामंडल (ओरा) उस सूक्ष्म शरीर-तैजस शरीर का विकिरण है। प्रवाह बहुत सक्रिय है। 'ख' के विद्युत्-प्रवाह कमजोर हैं। यदि 'ख' प्रश्न होता है, यह रश्मियों का विकिरण क्यों होता है? यदि तैजस 'क' के पास जाता है तो 'क' के विद्युत्-प्रवाह 'ख' को प्रभावित शरीर का कार्य केवल विकिरण करना ही हो तो मनुष्य इतना ज्ञानी, करेंगे, उसमें एक प्रकार के विद्युत् स्पन्दन पैदा हो जाएंगे। इतना शक्तिशाली और इतना विकसित तथा एक अन्य प्राणी इतना गुरु-कृपा का तात्पर्य है उस व्यक्ति का सान्निध्य जिसका अविकसित क्यों? यह सब तैजस शरीर का कार्य नहीं है। तैजस तैजस शरीर जागृत है। गुरु-कृपा से मिलने वाला यह क्षणिक शरीर के पीछे भी एक प्रेरणा है सूक्ष्मतर शरीर की। वह सूक्ष्मतर अनुभव या जागरण क्षणिक ही होता है, स्थायी नहीं होता। एक शरीर है-कर्म-शरीर
क्षण में अपूर्व अनुभव हुआ और दूसरे क्षण में वह समाप्त हो गया। तीन शरीरों की एक श्रृंखला है-स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और इलैक्ट्रोड लगाने से क्षणिक अनुभव होता है और उसे हटा देने से सूक्ष्मतर शरीर। स्थूल शरीर यह दृश्य शरीर है। सूक्ष्म शरीर है तैजस वह अनुभव भी समाप्त हो जाता है। वैसा ही यह अनुभव होता है। शरीर और सूक्ष्मतर शरीर है-कर्म-शरीर, कार्मण शरीर। प्राणी की अंततः कुंडलिनी का जागरण साधक को स्वयं ही करना पड़ता है। मूलभूत उपलब्धियां तीन हैं-चेतना (ज्ञान), शक्ति और आनंद। कुंडलिनी-जागरण के मार्ग चेतना का तारतम्य अविकास और विकास, शक्ति का प्रेक्षाध्यान, व्यायाम, तपस्या, भक्ति, प्राणायाम, उपवास, तारतम्य-अविकास और विकास, आनंद का तारतम्य-अविकास संगीत आदि अनेक साधन हैं, जिनके माध्यम से कुंडलिनी जागती
और विकास-यह सारा इन शरीरों के माध्यम से होता है। है। पूर्व संस्कारों की प्रबलता से भी कुंडलिनी जागृत हो जाती है। कुंडलिनी : स्वरूप और जागरण
कभी-कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति गिरा, मस्तिष्क पर गहरा कुंडलिनी-जागरण का प्रश्न शरीरों के साथ जुड़ा हुआ है। आघात लगा और कुंडलिनी जाग गयी। कुंडलिनी के जागने के तीन शरीरों में से जो मध्य का शरीर है, तैजस शरीर (सूक्ष्म शरीर), अनेक कारण हैं। औषधियों के द्वारा भी कुंडलिनी जागृत होती है। उसकी एक क्रिया का नाम है 'तेजोलब्धि'। हठयोग तंत्र में इसे अमुक-अमुक वनस्पतियों के प्रयोग से कुंडलिनी के जागरण में 'कुंडलिनी' कहा गया है। कहीं-कहीं इसे 'चित्शक्ति' कहा जाता सहयोग मिलता है। तिब्बत में तीसरे नेत्र के उदघाटन में वनस्पतियों है। जैन साधना-पद्धति में इसे 'तेजोलब्धि' कहा जाता है। हठयोग का प्रयोग भी किया जाता था। पहले शल्यक्रिया करते, फिर वनौषधियों में इसके पर्यायवाची नाम तीस गिनाए गए हैं। उनमें एक नाम है का प्रयोग करते थे। औषधियों का महत्त्व सभी परम्पराओं में मान्य 'महापथ' । जैन साहित्य में महापथ' का प्रयोग मिलता है। भिन्न- रहा है। प्रसिद्ध सूक्त है-अचिन्त्यो हि मणिमंत्रौषधीनां प्रभावः-मणियों, भिन्न साधना-पद्धतियों में यह भिन्न-भिन्न नाम से पहचानी गयी है। मंत्रों और औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। मंत्रों के द्वारा भी यदि इसके स्वरूप-वर्णन में की गयी अतिशयोक्तियों को हटाकर कुंडलिनी को जगाया जा सकता है। विविध मणियों, रत्नों के इसका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो इतना ही फलित निकलेगा विकिरणों के द्वारा भी उसे जागृत किया जा सकता है। कि हमारी प्राणशक्ति का विशेष विकास ही कुंडलिनी का जागरण प्राण-शक्ति की विद्युत् का चमत्कार है। प्राणशक्ति के अतिरिक्त, तैजस शरीर के विकिरणों के अतिरिक्त अंग-संचालन में प्राण-शक्ति का प्रयोग होता है। एक अंगुली कुंडलिनी का अस्तित्व वैज्ञानिक ढंग से सिद्ध नहीं हो सकता। शरीर को हिलाने के लिए भी कितने बड़े तंत्र का सहारा लेना पड़ता है। की सामान्य क्रियाओं में भी कुंडलिनी का अस्तित्व प्रमाणित होता पहले सोचते हैं, मस्तिष्क के ज्ञानतंतु सक्रिय होते हैं और फिर वे है, पर होता है वह सामान्य शक्ति के विस्फोट के रूप में। वह कुछ क्रियावाही तंतुओं को निर्देश देते हैं। वह निर्देश वहां तक पहुंचता ऐसा आश्चर्यकारी तथ्य नहीं है जिसे अमुक योगी ही प्राप्त कर सकते है, तो अंगुली हिलती है। मस्तिष्क की रचना बहुत विचित्र है। कोई हैं या जिसे अमुक-अमुक योगियों ने ही प्राप्त किया है। कोई भी प्राणी वैज्ञानिक हमारे मस्तिष्क जैसे सूक्ष्म अवयवों का कम्प्यूटर बनाना ऐसा नहीं है, जिसकी कुंडलिनी जागृत न हो। वनस्पति के जीवों की चाहे तो आज की पूरी पृथ्वी भर जाए-इससे भी शायद ज्यादा बड़ा भी कुंडलिनी जागृत है। यदि वह जागृत न हो तो वह सचेतन प्राणी होगा। नहीं हो सकता। वह अचेतन होता है। जैन आगम ग्रंथों में कहा बहुत बार ऐसा होता है कि बल्ब लगे रहते हैं किन्तु प्रकाश गया-चैतन्य (कुंडलिनी) का अनंतवां भाग सदा जागृत रहता है। गायब हो जाता है। हम शरीर को देखते हैं, शरीर की भी यही हालत
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