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भगवई
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श. १५ : सू. ६६ व कर्मेन्द्रियों का होना अनिवार्य है। किन्तु जब कोई क्रिया बिना द्वारा यथार्थ बात जान लेती हूं। मैं लोगों के आभामंडल में प्रविष्ट दैहिक माध्यम के, चित्त या मन द्वारा सीधे पदार्थ को प्रभावित करके होकर उनके चरित्र का वर्णन कर सकती हूं। किन्तु शराबी आदमी सम्पन्न होती हो, तो उसे 'परामनोविज्ञान' की श्रेणी में ही रखा के चरित्र को मैं नहीं जान सकती, क्योंकि शराबी आदमी का जाता है। जिस प्रकार बिना दैहिक (ऐन्द्रियिक) माध्यम के मन द्वारा आभामंडल अस्त-व्यस्त हो जाता है। वह इतना धुंधला हो जाता है सीधे ही प्रत्यक्षण कर सकने की क्षमता का विवेचन परामनोवैज्ञानिक कि उसके रंगों का पता नहीं चलता।' कर चुके हैं, उसी प्रकार मन के द्वारा सीधे पदार्थ को प्रभावित करने ओकल्ट साइन्स के वैज्ञानिकों ने यह तथ्य प्रगट किया कि की क्षमता के बारे में भी परामनोविज्ञान में अनुसंधान हुआ है। आदमी जब तक अपने शरीर के विशिष्ट केन्द्रों को चुंबकीय क्षेत्र नहीं तेजोलेश्या 'मनःप्रभाव' की विलक्षण घटना है।
बना लेता-एलेक्ट्रो-मेग्नेटिक फील्ड नहीं बना लेता, तब तक उसमें परामनोविज्ञान में एस्ट्रल प्रोजेक्शन और समुद्घात
पारदर्शन की क्षमता नहीं जाग सकती। चैतन्य-केन्द्रों और चक्रों की ____एक हब्शी महिला है। उसका नाम है-लिलियन। वह अतीन्द्रिय सारी कल्पना का मूल उद्देश्य है-शरीर को विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र प्रयोगों में दक्ष है। उससे पूछा गया-तुम अतीन्द्रिय घटनाएं कैसे ।
बना लेना। सहिष्णुता और समभाव-वृद्धि के प्रयोग-उपवास, आसन, बतलाती हो? उसने कहा, 'मैं एस्ट्रल प्रोजेक्शन के द्वारा उन घटनाओं
प्राणायाम, आतापना, सर्दी-गर्मी को सहने का अभ्यास-इन सारी को जान लेती हूं। प्रत्येक प्राणी में प्राण-धारा होती है। उसे एस्ट्रल
प्रक्रियाओं से शरीर के परमाणु विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र में बदल जाते बॉडी भी कहा जाता है। एस्ट्रल प्रोजेक्शन के द्वारा मैं प्राण शरीर
हैं। और वह क्षेत्र इतना पारदर्शी बन जाता है कि भीतर की चेतना से बाहर निकल कर, जहां घटना घटित होती हैं, वहां जाती हूं और
उस क्षेत्र से बाहर झांक सकती है। सारी बातें जानकर दूसरों को बता देती हूं।'
प्राण-शक्ति का आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक महत्त्व विज्ञान द्वारा सम्मत यह एस्ट्रल प्रोजेक्शन की प्रक्रिया जैन
हमारे शरीर में शक्ति के दो स्रोत हैं-एक है काम की शक्ति परंपरा की समुद्घात प्रक्रिया है। समुद्घात का यही तात्पर्य है कि
का और दूसरा है ज्ञान की शक्ति का। ज्ञान की शक्ति ऊपर रहती जब विशिष्ट घटना घटित होती है तब व्यक्ति स्थूल शरीर से प्राण
है, काम की शक्ति नीचे रहती है। नीचे के स्रोत में कामनाएं, शरीर को बाहर निकाल कर घटने वाली घटना तक पहुंचता है और
वासनाएं, इच्छाएं, हिंसा, असत्य, चोरी की भावना-ये सारी वृत्तियां घटना का पूरा ज्ञान कर लेता है। यह प्राण शरीर बहुत दूर तक जा
पैदा होती हैं। ज्ञान का केन्द्र जो सिर में है, वहां सारी निम्न वृत्तियां सकता है। इसमें अपूर्व क्षमताएं हैं।
समाप्त हो जाती हैं। चेतना का विकास, ज्ञान का विकास, बुद्धि का समुद्घात सात हैं-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात,
विकास, उदारता, परमार्थ-यह महान् चेतना वहां पैदा होती है। मारणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक
शरीर की विद्युत् या प्राण-ऊर्जा जितनी शक्तिशाली बनती समुद्घात और केवली समुद्घात। जब व्यक्ति को क्रोध अधिक
है, उतना शक्तिशाली बनता है जीवन। शरीर का आध्यात्मिक आता है तब उसका प्राण-शरीर शरीर से बाहर निकल जाता है।
मूल्यांकन है उस ऊर्जा की सुरक्षा करना, ऊर्जा को विकसित यह कषाय समुद्घात है। जब आदमी के मन में अति लालच आता
करना और ऊर्जा के स्रोत को मोड़कर नीचे से ऊपर की ओर ले है तब भी प्राण-शरीर बाहर निकल जाता है। इसी प्रकार भयंकर बीमारी में मरने की अवस्था में भी प्राण-शरीर बाहर निकल जाता
जाना। अध्यात्म का मार्ग ऊर्जा के ऊर्चीकरण का मार्ग है। है। आज के विज्ञान के सामने ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई हैं।
ऊपर का स्रोत खुलता है तो प्राणशक्ति का प्रवेश होता एक रोगी ऑपरेशन थियेटर में टेबल पर लेटा हुआ है। उसका
है और नीचे का स्रोत खुला रहता है तो प्राणशक्ति का निर्गमन मेजर ऑपरेशन होना है। डॉक्टर ऑपरेशन कर रहा है। उस समय
होता है, बिजली बाहर चली जाती है और आदमी शक्तिशून्य हो उस व्यक्ति में वेदना समुद्घात घटित हुई। उसका प्राण-शरीर स्थूल
जाता है। शरीर से निकलकर ऊपर की छत के आसपास स्थिर हो गया।
जो इस स्थूल शरीर से परे है, वह इन्द्रियों का विषय नहीं है। ऑपरेशन चल रहा है और वह रोगी अपने प्राण-शरीर से सारा
किन्तु हमारे शरीर में कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जिनके विषय में चिंतन और ऑपरेशन देख रहा है। ऑपरेशन करते-करते एक बिन्दु पर डॉक्टर
अनुभव करते-करते हम अपनी बुद्धि और चिदशक्ति के द्वारा इन्द्रियों ने गलती की। तत्काल ऊपर से रोगी ने कहा, डॉक्टर! यह भूल कर
की सीमा से परे जाकर सूक्ष्म शरीर की सीमा में प्रविष्ट हो सकते रहे हो। डॉक्टर को पता नहीं चला कि कौन बोल रहा है। उसने भूल
हैं। उनमें एक तत्त्व है प्राण-विद्युत्। अग्निदीपन, पाचन, शरीर का सुधारी। वेदना कम होते ही रोगी का प्राण-शरीर पुनः स्थूल शरीर
सौष्ठव और लावण्य, ओज-ये जितनी आग्नेय क्रियाएं हैं, ये सारी में आ जाता है। प्रोजेक्शन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। होश आने सप्त धातुमय इस शरीर की क्रियाएं नहीं हैं। विद्युत् शरीर-तेजस पर रोगी ने डॉक्टर से कहा, छत पर लटकते हुए मैंने पूरा ऑपरेशन
शरीर ही इस स्थूल शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन करता है। देखा है।
उस सूक्ष्म शरीर में से विद्युत् का प्रवाह आ रहा है और उस विद्युत् शरीर-प्रक्षेपण की अनेक प्रक्रियाएं हैं। इन प्रक्रियाओं में प्राण- प्रवाह से सब कुछ संचालित हो रहा है। उस सूक्ष्म शरीर को प्राणशरीर बाहर चला जाता है।
शरीर भी कहा जाता है। यह शरीर प्राण का विकिरण करता है और उस हब्शी महिला लिलियन ने कहा-'मैं एस्ट्रल प्रोजेक्शन के उसी प्राण-शक्ति से क्रियाशीलता आती है। श्वास, मन, इन्द्रियां,
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