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________________ श. १५ : सू. ६०-६४ पच्चायाते बद्धमूले तत्थेव पतिट्ठिए । ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उदाइत्ता - उद्दात्ता तस्सेव तिलथं भगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाता ॥ वेसियायण - बालतवस्सि - पदं ६०. तए णं अहं गोयमा ! गोसालेणं मंखलिपुत्ते सद्धिं जेणेव कुम्मग्गामे नगरे तेणेव उवागच्छामि । तए णं तस्स कुम्मग्गामस्स नगरस्स बहिया वेसियायणे नामं बालतवस्सी छछद्वेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उहुं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरः । आइन्चतेयतवियाओ य से छप्पदीओ सव्वओ समंता अभिनिस्सवंति, पाणभूय - जीव-सत्त- दययाए च ण पडियाओ-पडियाओ 'तत्थेव तत्थेव ' भुज्जो - भुज्जो पचोरुभे ॥ ६१. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवरिंस पासइ, पासित्ता ममं अंतियाओ सणियं -सणियं पच्चोसक्कड़, पच्चोसक्कित्ता जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता वेसियायणं बालतवस्सि एवं वयासी - किं भवं मुणी? मुणिए ? उदाहु जूयासेज्जायरए? ६२. तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमहं नो आढाति, नो परियाणति, तुसिणीए संचि ॥ ६३. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सि दोचं पि तच्चं पि एवं वयासी - किं भवं मुणी? मुणिए ? उदाहु जूयासेज्जायरए १ ६४. तए णं से बेसियायणे बालतवस्सी गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं दोचं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे आसुरुत्ते रुट्ठे कुबिए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे आयावण Jain Education International २६६ तिलस्तम्भकः आश्वस्तः प्रत्याजातः बद्धमूलः तत्रैव प्रतिष्ठितः । ते च सप्त तिलपुष्पजीवाः उद्द्रुत्य - उद्द्रुत्य तस्यैव तिलस्तम्भकस्य एकस्यां तिलसंगलियाए सप्त तिलाः प्रत्याजाताः । वैश्यायन- बालतपस्वि-पदम् ततः अहं गौतम ! गोशालेन मंखलिपुत्रेण सार्धं यत्रैव कुर्मग्रामं नगरं तत्रैव उपागच्छामि। ततः तस्य कूर्मग्रामनगरस्य बहिस्तात् वैश्यायनः नाम बालतपस्वी षष्ठषष्ठेन अनिक्षिप्तेन तपः कर्मणा उर्ध्वं बाहू प्रगृह्य प्रगृह्य सूराभिमुखः आतापनभूम्याम् आतापयन् विहरति । आदित्यतेजस्तप्ताः च तस्य षट्पद्यः सर्वतः समन्तात् अभिनिर्सवन्ति, प्राणभूत जीव-सत्वदयार्थाय दयार्थतायै च पतिताः पतिताः 'तत्रैव तत्रैव' भूयः - भूयः प्रत्यवरोहति । ततः सः गोशालः मंखलिपुत्रः वैश्यायनं बालतपस्विनं पश्यति, दृष्ट्वा मम अन्तिकात् शनैः-शनैः प्रत्यवष्वष्कते प्रत्युष्वष्क्य यत्रैव वैश्यायन: बालतपस्वी तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य वैश्यायनं बालतपस्विनम् एवमवादीत्किं भवान् मुनिः ? ज्ञातः ? उताहो यूकाशय्यातरकः ? ततः सः वैश्यायनः बालतपस्वी गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य एतमर्थं नो आद्रियते, नो परिजानाति, तूष्णीकः सन्तिष्ठते । ततः सः गोशालः मंखलिपुत्रः वैश्यायनं बालतपस्विनं द्विः अपि त्रिः अपि एवमवादीत् किं भवान् मुनिः ? ज्ञातः ? उताहो यूकाशय्यातरकः ? ततः सः वैश्यायनः बालतपस्वी गोशालेन मंखलिपुत्रेण द्विः अपि त्रिः अपि एवम् उक्ते सति आशुरक्तः रुष्टः कुपितः 'चंडिक्किए' 'मिसि For Private & Personal Use Only भगवई के पौधे का रोपण हुआ। वह अंकुरित हुआ, बद्धमूल हुआ और वहीं पर प्रतिष्ठित हो गया। तिल पुष्प के वे सात जीव मर कर उसी तिल के पौधे की एक फली में सात तिलों के रूप में पुनः उपपन्न हो गए। बाल तपस्वी वैश्यायन पद ६०. गौतम! मैं मंखलिपुत्र गोशाल के साथ जहां कूर्मग्राम नगर था, वहां आया। उस कूर्मग्राम नगर के बाहर वैश्यायन नाम का बाल तपस्वी निरंतर षष्ठ- षष्ठ भक्त (दो-दो दिन का उपवास) तपः कर्म में आतापन भूमि में दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर सूर्य के सामने आतापना लेते हुए विहार कर रहा था। सूर्य के ताप से तप्त होकर जूंएं उसकी जटाओं से निकल कर नीचे गिर रही थी, प्राण, भूत, जीव और सत्त्व की दया के लिए वह उन जूंओं को पुनः पुनः सिर में डाल रहा था। ६१. मंखलिपुत्र गोशाल ने बाल तपस्वी वैश्यायन को देखा, देखकर मेरे पास से शनैः शनैः पीछे सरक गया, पीछे सरक कर जहां वैश्यायन बाल तपस्वी था, वहां आया, आकर वैश्यायन बाल तपस्वी को इस प्रकार बोला- क्या तुम मुनि हो, पिशाच हो अथवा जूओं के शय्यातर-जूंओं को आश्रय देने वाले? ६२. बाल तपस्वी वैश्यायन ने मंखलिपुत्र गोशाल के इस अर्थ को आदर नहीं दिया, स्वीकार नहीं किया, वह मौन रहा । ६३. मंखलिपुत्र गोशाल ने बाल तपस्वी वैश्यायन को दूसरी बार भी, तीसरी बार भी इस प्रकार कहा- क्या तुम मुनि हो, पिशाच हो अथवा जूओं के शय्यातर? ६४. मंखलिपुत्र गोशाल के दूसरी बार भी, तीसरी बार भी इस प्रकार कहने पर बाल तपस्वी वैश्यायन तत्काल आवेश में आ गया, रुष्ट हो गया, कुपित हो गया, उसका रूप www.jainelibrary.org
SR No.003596
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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